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Alankar Ki Paribhasha
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अलंकार की उत्पत्ति
अलंकार शब्द का सबसे पहले प्रयोग संस्कृत के विद्वान आचार्य भामह ने किया था। उन्होंने इसे सौंदर्यशास्त्र के उपकरण के रूप में प्रस्तुत किया, जिसका उपयोग भाषा की विशिष्ट सुंदरता और प्रभाव को उजागर करने के लिए किया जाता है।
अलंकार की परिभाषा
अलंकार का अर्थ है– अलंकृत करना या सजाना। अलंकार सुन्दर वर्णो से बनते हैं और काव्य की शोभा बढ़ाते हैं। ‘अलंकार शास्त्र’ में आचार्य भामह ने इसका विस्तृत वर्णन किया है। वे अलंकार सम्प्रदाय के प्रवर्तक कहे जाते हैं।
अलंकार के भेद
- (1)शब्दालंकार– ये वर्णगत, वाक्यगत या शब्दगत होते हैं; जैसे-अनुप्रास, यमक, श्लेष आदि।
- (2)अर्थालंकार– अर्थालंकार की निर्भरता शब्द पर न होकर शब्द के अर्थ पर आधारित होती है। मुख्यतः उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, दृष्टांत, मानवीकरण आदि मुख्य अर्थालंकार हैं।
- (3)उभयालंकार–जहाँ काव्य में शब्द और अर्थ दोनों से चमत्कार या सौन्दर्य परिलक्षित हो, वहाँ उभयालंकार होता है।
अलंकार के भेद | ||
1 | शब्दालंकार | अनुप्रास अलंकार |
यमक अलंकार | ||
श्लेष अलंकार | ||
2 | अर्थालंकार | उपमा अलंकार |
रूपक अलंकार | ||
उत्प्रेक्षा अलंकार | ||
अतिशयोक्ति अलंकार | ||
मानवीकरण अलंकार | ||
3 | उभयालंकार | – |
शब्दालंकार, अर्थालंकार और उभयालंकार में अंतर
काव्य की शोभा बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अलंकारों को तीन मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है: शब्दालंकार, अर्थालंकार और उभयालंकार।
अलंकार | आधार | उदाहरण |
---|---|---|
शब्दालंकार | शब्दों की ध्वनि या संरचना | अनुप्रास, यमक, वीप्सा |
अर्थालंकार | काव्य का अर्थ या भाव | उपमा, रूपक, अतिशयोक्ति |
उभयालंकार | शब्द और अर्थ दोनों | (शब्दालंकार + अर्थालंकार का समावेश) |
शब्दालंकार
शब्दालंकार वे अलंकार हैं, जो काव्य में शब्दों की विशेष ध्वनि, लय, या पुनरावृत्ति से सौंदर्य उत्पन्न करते हैं। यह अलंकार मुख्य रूप से शब्दों की रचना, उनके चयन और प्रयोग पर आधारित होते हैं। शब्दालंकार के माध्यम से कविता या गद्य को लयात्मक और आकर्षक बनाया जाता है।
(1)अनुप्रास अलंकार
वर्णो की आवृत्ति से अनुप्रास अलंकार होता है। उदाहरण-
- (अ) मधुर मृदु मंजुल मुख मुसकान।- ‘म’ वर्ण की आवृत्ति से अनुप्रास अलंकार है।
- (ब) सुरुचि सुवास सरस अनुरागा।- ‘स’ वर्ण की आवृत्ति से अनुप्रास अलंकार है।
(2)यमक अलंकार
यमक अर्थात् ‘युग्म’। यमक अलंकार में एक शब्द की दो या अधिक बार आवृत्ति होती है और अर्थ भिन्न-भिन्न होते हैं; जैसे-
- (अ)कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय। वा खाये बौराय नर वा पाये बौराय।।-यहाँ ‘कनक’ शब्द की दो बार आवृत्ति है। ‘कनक’ के दो अर्थ हैं- धतूरा तथा सोना, अतः यहाँ यमक अलंकार है।
- (ब)वह बाँसुरी की धुनि कानि परे, कुल कानि हियो तजि भाजति है।-यहाँ ‘कानि शब्द की दो बार आवृत्ति है। प्रथम ‘कानि’ का अर्थ ‘कान’ तथा दूसरे ‘कानि’ का अर्थ ‘मर्यादा’ है, अतः यमक अलंकार है।
(3)श्लेष अलंकार
श्लेष अलंकार में एक शब्द से अधिक अर्थो का बोध होता है, किन्तु शब्द एक ही बार प्रयुक्त होता है; जैसे-
- (अ) माया महा ठगिनि हम जानी। तिरगुन फाँस लिए कर डोलै, बोलै मधुरी बानी।- तिरगुन– (i) रज, सत, तम नामक तीन गुण। (ii) रस्सी (अर्थात् तीन धागों की संगत), अतः श्लेष अलंकार है।
- (ब) जो रहीम गति दीप की कुल कपूत गति सोय।बारे उजियारे करे, बढ़े अँधेरो होय।।- ‘दीप’ शब्द के दो अर्थ हैं-दीपक तथा संतान। बारे = छोटा होने पर (संतान के पक्ष में), जलाने पर दीपक के पक्ष में।, बढ़े = बड़ा होने पर, बुझा देने पर, अतः श्लेष अलंकार है।
अर्थालंकार
अर्थालंकार वे अलंकार होते हैं, जो काव्य में शब्दों के अर्थ और भावों के सौंदर्य को बढ़ाते हैं। यह अलंकार मुख्यतः भाव, विचार, और अर्थ की गहराई उत्पन्न करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। अर्थालंकार से रचना में कल्पना, भावुकता, और प्रभावशीलता बढ़ती है, जिससे पाठक या श्रोता के मन में गहरी अनुभूति उत्पन्न होती है।
(1) उपमा अलंकार
-उपमा अर्थात् तुलना या समानता उपमा में उपमेय की तुलना उपमान से गुण, धर्म या क्रिया के आधार पर की जाती है।
- (1) उपमेय-वह शब्द जिसकी उपमा दी जाए।
- (2) उपमान-वह शब्द जिससे उपमा या तुलना की जाए।
- (3) समानतावाचक शब्द-जैसे, ज्यों, सम, सा, सी आदि।
- (4) समान धर्म-वह शब्द जो उपमेय व उपमान की समानता को व्यक्त करने वाले होते हैं।
उदाहरण–
- (i) प्रातः नभ था, बहुत गीला शंख जैसे। यहाँ उपमेय-नभ, उपमान-शंख, समानतावाचक शब्द-जैसे, समान धर्म-गीला| इस पद्यांश में ‘नभ’ की उपमा ‘शंख’ से दी जा रही है। अतः उपमा अलंकार है।
- (ii) मधुकर सरिस संत, गुन ग्राही। यहाँ उपमेय-संत, उपमान-मधुकर, समानतावाचक शब्द-सरिस, समान धर्म-गुन ग्राही| संतों के स्वभाव की उपमा मधुकर से दी गई है। अतः उपमा अलंकार है।
(2) रूपक अलंकार
-इसमें उपमेय पर उपमान का अभेद आरोप किया जाता है। जैसे-
- (i) आए महंत बसंत। यहाँ बसंत पर महंत का आरोप होने से रूपक अलंकार है।
- (ii) बंदौ गुरुपद पदुप परागा। इस पद्यांश में गुरुपद में पदुम (कमल) का आरोप होने से रूपक अलंकार है।
(3)उत्प्रेक्षा अलंकार–
यहाँ उपमेय में उपमान की संभावना की जाती है। इसमें मानो, जानो, जनु, मनु आदि शब्दों का प्रयोग होता है। उदाहरण–सोहत ओढ़ै पीत पट स्याम सलोने गात। मनो नीलमनि सैल पर आतप परयो प्रभात।।अर्थात् श्रीकृष्ण के श्यामल शरीर पर पीताम्बर ऐसा लग रहा है मानो नीलम पर्वत पर प्रभाव काल की धूप शोभा पा रही हो।
(4)अतिशयोक्ति अलंकार-
जब किसी की अत्यन्त प्रशंसा करते हुए बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बात की जाए तो अतिशयोक्ति अलंकार होता है। उदाहरण–हनुमान की पूँछ में, लगन न पाई आग। लंका सगरी जरि गई,गए निशाचर भाग।। इस पद्यांश में हनुमान की पूँछ में आग लगने के पहले ही सारी लंका का जलना और राक्षसों के भाग जाने का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया है, अतः अतिशयोक्ति अलंकार है।
(5)मानवीकरण अलंकार-
जहाँ कवि काव्य में भाव या प्रकृति को मानवीकृत कर दे, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है। जैसे- बीती विभावरी जाग री, अंबर पनघट में डुबो रहीं, ताराघट उषा नागरी। यहाँ उषा (प्रातः) का मानवीकरण कर दिया गया है। उसे स्त्राी रूप में वर्णित किया गया है, अतः मानवीकरण अलंकार है।
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