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हिंदी साहित्य में छंद एक महत्वपूर्ण काव्य संरचना है, जो कविता की लय, गति और ध्वनि को नियंत्रित करती है। यह कविता के रूप को व्यवस्थित करने का तरीका है, जिसमें प्रत्येक पंक्ति या चरण में विशेष प्रकार की मात्राएँ और लय होती हैं। छंद का उद्देश्य कविता में संगीतात्मकता और सौंदर्य लाना है, जिससे पाठक या श्रोता पर गहरी छाप छोड़ी जा सके।
इस लेख में, हम छंद की परिभाषा, इसके प्रकारों (भेदों) और उनके वास्तविक जीवन के उदाहरणों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। आप जानेंगे कि किस प्रकार वर्णिक, मात्रिक, और यमक छंद साहित्य में प्रयोग किए जाते हैं और इनकी विशिष्टताएँ क्या हैं। साथ ही, हम छंद के अध्ययन से यह भी समझेंगे कि कैसे यह कविता को प्रभावी और आकर्षक बनाता है।
छंद किसे कहते हैं
छंद को हिंदी साहित्य में कविता या गीत के गढ़ने का एक तरीका कहा जाता है, जिसमें विशेष प्रकार के लय और गति का पालन किया जाता है। यह कविता के गीतात्मक रूप को नियंत्रित करता है और इसमें प्रत्येक पंक्ति की मात्राएँ और उस पर आधारित विशिष्ट पैटर्न होते हैं। छंद शब्द ‘छद्’ धातु से ‘असुन’ प्रत्यय के जुड़ने से बना है शब्दकोश के अनुसार छंद शब्द के निम्नानुसार अनेक अर्थ ग्रहण किये जाते है।
- बांधना
- आच्छादित करना
- प्रसन्न करना
- फुसनाना
- आंकाक्षा या कामना करना
- अक्षर संख्या का परिणाम करना
छंद की परिभाषा
छंद वह विशिष्ट रचना है जिसमें वर्ण और मात्राओं का संयोजन एक निश्चित लय और ताल के अनुसार होता है। यह संयोजन कविताओं में सजीवता और संगीतता का संचार करता है, जिससे पाठक या श्रोता को एक सुखद अनुभव प्राप्त होता है। व्याकरण ग्रंथो में छंद की परिभाषा के लिए निम्नलिखित दो सूत्र प्रतिपादित किये गए है|
- सूत्र – ‘‘यदक्षरपरिमाणः तच्छन्दः’’ । (यत अक्षर परिमाणः तद् छन्दः) अर्थात् ऐसी रचना जिसमें अक्षरों की मात्रा का ध्यान रखा जाता हे उसे छंद कहते हैं।
- सूत्र – ‘‘जातिर्वृत्याख्या मर्यादा छंदः’’। (जातिः वृति आख्या मर्यादा छंदः) अर्थात् ऐसी रचना जिसमें मात्राओं एवं वर्णो के मर्यादा का पालन किया जाता है उसे छंद के नाम से पुकारा जाता है। सामान्यतः यति, गति, तुक पाद या चरण, दल मात्राओं गण इत्यादि के नियमों से युक्त रचना छन्द कहलाती है।
छन्द के भेद
छंद के तीन भेद किए गए हैं-
- मात्रिक छंद,
- वर्णिक छंद
- लयात्मक छंद.
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मात्रिक छंद: यह उन छंदों को संदर्भित करता है, जिन्हें प्रत्येक पंक्ति में मात्राओं की संख्या के अनुसार परिभाषित किया जाता है।
- सम : यह उन छंदों को संदर्भित करता है जहां सभी पंक्तियों में मात्राओं या वर्णों की संख्या समान होती है।
- अर्द्ध सम: यह उन छंदों को संदर्भित करता है जहां पंक्तियों के बीच मात्राओं या वर्णों की संख्या में बदलाव का एक सुसंगत पैटर्न होता है।
- विषम : यह उन छंदों को संदर्भित करता है जहां मात्राओं या वर्णों की संख्या पंक्ति दर पंक्ति बदल सकती है।
- वर्णिक छंद: यह उन छंदों को संदर्भित करता है, जिन्हें प्रत्येक पंक्ति में वर्णों की संख्या के अनुसार परिभाषित किया जाता है।
-
लयबद्ध छंद: यह उन छंदों को संदर्भित करता है, जिन्हें कविता के समग्र लयबद्ध पैटर्न के अनुसार परिभाषित किया जाता है।
- साधारण : यह लोकप्रिय और प्रचलित छंदों को संदर्भित करता है।
- दण्डक: यह एक विशिष्ट उपसमूह है जिसमें विशिष्ट संख्या में पंक्तियां और एक विशिष्ट मीटर होता है।
- मुक्त छंद : यह उन छंदों को संदर्भित करता है जो उपरोक्त किसी भी वर्गीकरण में नहीं आते हैं।
छंद के प्रकार
भारतीय साहित्य में छंदों के कई प्रकार हैं। यहाँ कुछ प्रमुख छंदों का विवरण दिया गया है:
दोहा
दोहा छंद का सबसे प्रचलित रूप है। इसमें दो पंक्तियाँ होती हैं, प्रत्येक पंक्ति में 13-11 मात्राओं का क्रम होता है। दोहा सामान्यतः नीति, भक्ति और शृंगार रस की अभिव्यक्ति करता है।
चौपाई
चौपाई छंद चार पंक्तियों का होता है, जिसमें प्रत्येक पंक्ति में 16-16 मात्राएँ होती हैं। चौपाई का प्रयोग तुलसीदास के ‘रामचरितमानस’ में व्यापक रूप से हुआ है।
सोरठा
सोरठा छंद में भी दो पंक्तियाँ होती हैं, लेकिन इसका क्रम दोहे से उल्टा होता है। इसमें पहली पंक्ति में 11 और दूसरी पंक्ति में 13 मात्राएँ होती हैं। सोरठा छंद में प्रेम और भक्ति की भावना को सुंदर तरीके से व्यक्त किया जाता है।
रोला
रोला छंद में प्रत्येक पंक्ति में 24 मात्राएँ होती हैं। यह छंद विशेष रूप से वीर और शृंगार रस की कविताओं में प्रयोग होता है।
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