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क्रिया हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण तत्व है, जो कार्य या क्रियाओं को व्यक्त करती है। यह वाक्य में मुख्य भूमिका निभाती है और यह बताती है कि कोई व्यक्ति, वस्तु, या प्राणी क्या कर रहा है। क्रिया के द्वारा हम कार्य के समय, स्वरूप, और परिप्रेक्ष्य को स्पष्ट कर सकते हैं। हिंदी में क्रिया के विभिन्न प्रकार होते हैं, जैसे कर्म क्रिया, संप्रदान क्रिया, अपादान क्रिया आदि, जो वाक्य की संपूर्णता को बढ़ाते हैं और विचारों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करते हैं। क्रिया का सही प्रयोग वाक्य की अर्थवत्ता और प्रभाव को बढ़ाने में सहायक होता है।
क्रिया किसे कहते हैं
जिस शब्द से किसी काम का होना या करना समझा जाय उसे क्रिया कहा जाता है अर्थात क्रिया का अर्थ काम होता है; जैस खाना, पीना, जाना आदि।क्रिया (Verb) व्याकरण में वर्णों का एक महत्वपूर्ण भाग होता है और यह वर्ण भाषा में क्रिया या कार्य को प्रकट करता है। क्रिया वर्ण किसी कार्य, संघटन, घटना, अथवा स्थिति को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त होता है। क्रिया वर्ण किसी क्रिया के आदिक, मध्य, या अंत में होता है और वाक्य का क्रिया के संदर्भ को स्पष्ट करता है।
धातु
क्रिया के मूल रूप को धातु कहा जाता है अर्थात् जिस शब्द से क्रिया पद का निर्माण हों उसे धातु कहा जाता है। अतः कहा जा सकता है, कि क्रिया के सभी रूपों में धातु उपस्थित रहती है; जैसे- चलना क्रिया में चल धातु है| पढ़ना क्रिया में पढ़ धातु है। प्रायः धातु में ‘ना” प्रत्यय जोड़ने से क्रिया का निर्माण होता है। क्रिया का मूल ‘धातु’ है। ‘धातु’ क्रियापद के उस अंश को कहते है, जो किसी क्रिया के प्रायः सभी रूपों में पाया जाता है। तात्पर्य यह कि जिन मूल अक्षरों से क्रियाएँ बनती हैं, उन्हें ‘धातु’ कहते है
धातु दो प्रकार के होते हैं –
- मूल धातु: वह धातु जो किसी दूसरे पर निर्भर नहीं होता है अर्थात् जो स्वतंत्र होती है, वह मूल धातु कहलाती है जैसे – जा, खा, पढ़, चल आदि।
- यौगिक धातु (क्रिया): यह धातु किसी मूल धातु में संज्ञा या विशेषण में प्रत्यय लगाकर बनायी जाती है, अर्थात् यह धातु स्वतंत्र नहीं होती है। जैसे – चलना से चला, पढना से पढ़ा आदि।
यौगिक धातु की रचना
- धातु में प्रत्यय लगाने से सकर्मक और प्रेरणार्थक धातुएं बनती हैं।
- कई धातुओं को संयुक्त करने से संयुक्त धातु बनती है।
- संज्ञा या विशेषण से नाम धातु बनती है।
यौगिक धातु चार प्रकार के होते हैं –
- प्रेरणार्थक क्रिया
- संयुक्त यौगिक क्रिया
- नाम धातु क्रिया
- अनुकरणात्मक क्रिया
- प्रेरणार्थक क्रिया धातु – वह क्रिया जिसके द्वारा यह पता चलता है कि कर्त्ता स्वयं न काम करके किसी दूसरे को कार्य करने के लिए प्रेरित करता हो, वह प्रेरणार्थक क्रिया कहलाती है; जैसे – मोहन ने सोहन को जगाया, यहां पर सोहन, मोहन की प्रेरणा से जागा है। इस प्रकार प्रायः सभी धातुओं के दो-दो प्रेरणार्थक रूप होते हैं- प्रथम वह जिस धातु में ‘आ’ लगता हो जैसे – कर से करा, सुन से सुना और द्वितीय वह जिस धातु में ‘वा’ लगता हो, जैसे- सुन – सुनवा, कर – करवा, हट, हटवा आदि।
मूलधातु | प्रेरणार्थक क्रिया |
---|---|
उठ-ना | उठाना, उठवाना |
पी-ना | पीलाना, पीलवाना |
कर-ना | कराना, करवाना |
सो-ना | सुलाना, सुलवाना |
खा-ना | खिलाना, खिलवाना |
2. यौगिक/संयुक्त क्रिया (धातु) – दो या दो से अधिक धातुओं के संयोग से जिस क्रिया का निर्माण होता है, वह यौगिक/संयुक्त क्रिया (धातु) कहलाती है; जैसे – रोना – धोना, उठना – बैठना, चलना – फिरना आदि।
3. नाम धातु (क्रिया) – वह धातु जो संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण की सहायता से बनती है, वह नाम धातु कहलाती है; जैसे- बात से बतियाना, अपना से अपनाना, गरम से गरमाना आदि।
4. अनुकरणात्मक क्रियाएं- वह वास्तविक या कल्पित ध्वनि जिसे क्रियाओं के रूप में अपना लिया जाता है, वह अनुकरणात्मक क्रियाएं कहलाती हैं; जैसे – खटखट से खटखटाना, थपथप से थपथपाना आदि।
क्रिया के भेद क्या हैं?
- सकर्मक क्रिया – वैसी क्रिया जिसके साथ कर्म से होती है या कर्म होने की संभावना होती हो तथा जिस क्रिया का फल कर्म पर पड़े, उसे सकर्मक क्रिया कही जाती है; जैसे – राम आम खाता है। इसमें खाना क्रिया के साथ आम कर्म है। मोहन पढ़ता है। यहां पढ़ना क्रिया के साथ पुस्तक कर्म की संभावना बनती है।
- अकर्मक क्रिया – वैसी क्रिया जिसके साथ कोई कर्म न हो तथा क्रिया का फल कर्ता पर पड़े उसे अकर्मक क्रिया कही जाती है। जैसे – राम हंसता है। इस वाक्य मे कर्म का अभाव है तथा क्रिया का फल राम (कर्ता) पर पड़ रहा है। नोट – क्रिया को पहचानने का नियम – क्रिया की पहचान के लिए क्या और किसको से प्रश्न करने पर अगर उत्तर मिलता है तो समझना चाहिए कि क्रिया सकर्मक है, और अगर उत्तर न मिले तो समझना चाहिए कि क्रिया अकर्मक है।
जैसे –
- राम सेब खाता है। (इस वाक्य में प्रश्न करने पर कि राम क्या खाता है, उत्तर मिलता है सेब। अतः ‘खाना’ सकर्मक क्रिया है।
- सीता सोयी है। (इस वाक्य में प्रश्न करने पर कि सीता क्या सोयी है उत्तर कुछ नहीं मिलता, सीता किसको सोयी है. इसका भी काई उत्तर नहीं मिलता है। अत: ‘सोना क्रिया अकर्मक क्रिया है।
क्रिया के कुछ अन्य भेद हैं –
- सहायक क्रिया – वह क्रिया जो मुख्य क्रिया के साथ प्रयुक्त होकर वाक्य के अर्थ को स्पष्ट एवं पूर्ण-करने में सहायता प्रदान करती है. वह सहायक क्रिया कहलाती है। जैसे – मैं बाजार जाता हूँ (यहां ‘जाना’ मुख्य क्रिया है तथा ‘हूँ’ सहायक क्रिया है।
- पूर्वकालिक क्रिया – वह क्रिया जिसके द्वारा कर्ता एक क्रिया को समाप्त कर दूसरी क्रिया को प्रारंभ करता है। तब पहली क्रिया को पूर्वकालिक क्रिया कहा जाता है; जैसे – श्याम भोजन करके सो गया (यहां ‘भोजन करके’ पूर्वकालिक क्रिया है, जिसे करने के बाद दूसरी क्रिया ‘सो जाना संपन्न की है।
- नामबोधक क्रिया – वह क्रिया जो संज्ञा अथवा विशेषण के साथ जुड़ने से बनती है, वह नामबोधक । क्रिया कहलाती है; जैसे –
संज्ञा + क्रिया नामबोधक क्रिया
लाठी + मारना लाठी मारता
पानी+ खौलना पानी खौलना
विशेषण + क्रिया नामबोधक क्रिया
दुःखी + होना दुःखी होना
4. अनेकार्थक क्रियाएं – वैसी क्रियाएं जिसका प्रयोग अनेक अर्थो में किया जाता हो, वे अनेकार्थक क्रियाएं कहलाती है। जैसे – खाना क्रिया के अनेक अर्थ होते हैं – वह भात खाता है, वह मार खाता है, राम दूसरों की कमाई खाता है. लोहे को जंग खाती है, वह घूस खाता है आदि।
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