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CTET is the main teaching eligibility test that will be released by CBSE. Hindi as a language is the main subject in both papers of CTET 2022. The students always choose Hindi as a language 1 or 2 in the CTET exam. The examination pattern and syllabus of Hindi subject contain for both papers i.e. Hindi paragraph comprehension, Hindi Poem comprehension, and Hindi pedagogy. This section total contains 30 marks.
Here we are providing you with Study notes related to the detailed Hindi syllabus of the CTET exam which will help you in your better preparation.
लेखन कौशल
भावों एवं विचारों की अभिव्यक्ति जब लिखित रूप में होती है तो इसे लेखन कौशल कहते है।
लेखन के प्रकार
लेखन के प्रकार निम्नलिखित है –
सुलेख
- सुंदर लेख को सुलेख कहते हैं। सुलेख का लेखन कौशल शिक्षण में विशेष स्थान है।
एक सुंदर लेख में निम्नलिखित गुण होने चाहिए –
- परस्पर वर्णों में तथा वर्णों का मात्राओं के साथ आकार की दृष्टि से अनुपात हो।
- देवनागरी लिपि के वर्गों में पाई (π) का चिह्न लेख को सुंदर बनाने में बहुत महत्त्व रखता है। यदि पाई सीधी होगी तो वर्ण सुंदर बनेगे। पाई का कोण 90 अंश पर होना चाहिए।
- देवनागरी लिपि के वर्गों पर शिरोरेखा लगाना अनिवार्य माना जाता है। अत: प्रत्येक शब्द पर शिरोरेखा अवश्य हो। शिरारेखा बिल्कुल सीधी होनी चाहिए।
- वर्गों में मात्राओं का योग ठीक से हो। विशेष रूप से ‘ई’ की मात्रा से पूर्व आधे व्यंजन के योग में तथा ‘र’ के साथ लगने वाली ‘उ’ व ‘क’ की मात्राओं में विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है।
- वर्णों, शब्दों, वाक्यों तथा पंक्तियों की परस्पर दूरी समुचित रूप से होनी चाहिए। यह दूरी न तो बहुत अधिक हो और न ही बहुत कम।
- लेख को समुचित अनुच्छेदों में विभाजित किया जाना चाहिए। अनुच्छेद निर्माण एक कला है। अलग-अलग विचार के लिए अलग-अलग अनुच्छेद की रचना की जानी चाहिए। ध्यान रहे, न तो एक ही विचार के लिए कई अनुच्छेद बनाए जाएँ और न ही एक अनुच्छेद में कई विचारों का समावेश हो।
- लिखते समय पृष्ठ के बाँयी ओर उचित हाशिया छोड़ा जाना भी सुलेख के लिए अनिवार्य है।
अनुलेख
- किसी आदर्श लिखाई का हुबहू अनुकरण करना अनुलेख या अनुलिपि कहलाता है।
- इसमें छात्र शिक्षक के आदर्श लेख का बिल्कुल हुबहू अनुकरण करते हैं। शिक्षक तख्ती या कॉपी पर वर्ण या शब्द लिख देता है
- और बच्चे देखकर ठीक वैसा ही लिखने का अभ्यास करते हैं।
श्रुतलेख
- श्रुतलेख में छात्र सुनी हुई ध्वनियों को लेखनीबद्ध करते हैं।
- श्रुतलेख में सुंदर लेख का इतना महत्त्व नहीं है, जितना भाषा की शुद्धता का।
- श्रुतलेख का उद्देश्य छात्रों की श्रवणेन्द्रिय को पूर्ण शिक्षित करना भी है ताकि वह भाषा के शुद्ध रूप को सावधानी से सुन सकें।
- इसमें बच्चे की लिखावट में सुडौलता, स्पष्टता व गति लाना भी उद्देश्य रहता है।
लेखन कौशल के उद्देश्य
- वर्णों को ठीक-ठीक लिखना सीखना।
- सुन्दर लेख का अभ्यास करना।
- शुद्ध अक्षर विन्यास का ज्ञान कराना।
- वाक्य रचना के नियमों से परिचित होना।
- विचार तार्किक क्रम में प्रस्तुत करना।
- अनुभवों का लेखन करना।
- लिपि, शब्द, मुहावरों का ज्ञान होना।
- वाक्य रचना, शुद्ध वर्तनी, विराम चिन्हों का प्रयोग सिखाना।
- छात्रों को सृजनात्मक शक्ति और मौलिक रचना करने में निपुण बनाना।
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लेखन कौशल की विधियाँ
खंडशः लेखन विधि
सार्थक रेखाओं को खींचने के अभ्यास के बाद वर्णों का खंडश: लेखन कराया जाना चाहिए। इस विधि में पूरे वर्ण को एक बार लिखना न सिखाकर उसे खंडों में लिखना सिखाया जाता है। इस विधि से बच्चे के लिए लिखना सीखना सुगम हो जाता है; जैसे –
- व् व क = क
- व् व ब = व
- प् प फ = फ
- प् प ष = ष
रूप अनुसरण या रेखा अनुसरण विधि
- यह एक अत्यन्त पुरानी व परम्परागत विधि है।
- यह लेखन अभ्यास के लिए अत्यंत उपयोगी विधि है। इस विधि में अध्यापक तख्ती पर पेंसिल से वर्ण लिखता है, बच्चे उस लिखें हुए वर्ण पर कलम चलाते हैं और स्याही फेरते हैं।
- छात्र उन बिन्दुओं को जोड़कर वर्ण की आकृति बनाना सीख जाते हैं। धीरे-धीरे छात्र उस अवस्था तक पहुंच जाते हैं जिसमें शिक्षक ऊपर की पंक्ति में शब्द लिखता है।
- इस विधि में अध्यापक को छात्रों का हाथ पकड़कर वर्ण की आकृति बनाने में उनकी सहायता करनी चाहिए।
मांटेसरी विधि
- इस विधि में सबसे पहले बच्चे को लकड़ी, गते आदि से बने वर्ण दिए जाते हैं।
- छात्रों को उन पर उंगली फेरने के लिए कहा जाता है। उंगली फेरने के अभ्यास के बाद छात्रों को उन वर्गों के बीच पेसिल चलाने को कहा जाता है।
- जब बच्चों की उंगलियाँ सघ जाती हैं तब उन्हें स्वतंत्र रूप से लिखने के लिए कहा जाता है। इस अभ्यास के बाद बालक स्वतंत्र रूप से गत्ते व लकड़ी के वर्गों के बिना लिखना प्रारम्भ कर देते हैं।
पेस्टालॉजी की रचनात्मक विधि
- इस विधि में लकड़ी व प्लास्टिक आदि से बने वर्गों के टुकड़ों को संकलित किया जाता है। ये टुकड़े रेखा, वृत्त, अर्धवृत्त आदि होते हैं।
- छात्र किसी वर्ण को देखकर टुकड़ों को ढूंढकर और उन्हें जोड़कर वैसा ही वर्ण बनाने का प्रयास करते है। इसमें विभिन्न टुकड़ों को मिलाकर धीरे-धीरे सभी वर्गों को बनाना सिखाया जाता है।
- इसमें सरल वर्णों को पहले तथा कठिन वर्गों को बाद में सिखाते है।
परम्परागत विधि
- इस विधि में पहले स्वर, फिर व्यंजन, फिर शब्द, उसके बाद मात्राएँ तथा वाक्य लिखने सिखाए जाते हैं।
समान आकृति समूह विधि
- इस विधि में वर्गों को कुछ समूहों में विभाजित कर लिया जाता है तथा एक समूह के वर्गों को एक साथ लिखना सिखाया जाता है। इस विधि में थोड़े से प्रयास से ही छात्रों को यह अनुभव होने लगता है कि उन्होंने बहुत कुछ सीख लिया है।
जैसे-
- अ, आ, ओ, औ
2 . व ब क
- ड ड ङ
- न म भ
जेकासर विधि
- इस विधि में बच्चों के सामने पूरा वाक्य प्रस्तुत किया जाता है। बालक अनुकरण करते हुए वाक्य के एक-एक शब्द को लिखते है।
- पूरे वाक्य को लिखकर उसे वाक्य के मूल रूप से मिलाया जाता है तथा उसकी शुद्धता को सुनिश्चित किया जाता है।
लेखन कार्य का मूल्यांकन
शिक्षक को छात्रों के लेखन कार्य का मूल्यांकन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –
- क्या शिक्षार्थी दिए गए व्यंजन, मात्रा, संयुक्ताक्षर व शब्दों को देखकर लिख सकता है?
- क्या शिक्षार्थी स्वर, व्यंजन, मात्रा संयुक्ताक्षर, शब्द, वाक्य आदि का श्रुतलेख लिख सकता है?
- क्या शिक्षार्थी सुपाठ्य लेख लिख सकता है?
- क्या शिक्षार्थी उचित गति के साथ लिख सकता है?
- क्या शिक्षार्थी उचित वाक्य विन्यास करते हुए लिखता है?
- क्या शिक्षार्थी शुद्ध वर्तनी के साथ लिख सकता है?
- क्या शिक्षार्थी शुद्ध विराम चिह्नों का समुचित प्रयोग करते हुए लिख सकता है?
- क्या शिक्षार्थी यथोचित अनुच्छेदों का निर्माण करते हुए लिखता है?
- क्या शिक्षार्थी प्रसंगानुकूल शब्दों, मुहावरों तथा लोकोक्तिया का प्रयोग कर सकता है?
- क्या शिक्षार्थी विचारों को क्रमबद्ध रूप से लिखकर व्यक्त करता है?
- क्या शिक्षार्थी अपनी रचना में विचारों की सुसंबद्धता का बनाए रखता है?
- क्या शिक्षार्थी विषय तथा अभिव्यक्ति के अनुकूल शैली के प्रयोग करते हुए लिखता है?
- क्या शिक्षार्थी सृजनात्मक और रचनात्मक लेखन कर सकी है।
लेखन-दोष
लेखन दोष निम्नलिखित कारणों पर आधारित होता है।
व्यक्तिगत कारण
- कई बार लेखन दोष कुछ व्यक्तिगत कारणों से होता है। यदि किसी बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं हो तो वह लिखना कुछ चाहता है और लिख कुछ बैठता है। बच्चे का शारीरिक दोष भी उसके लेखन दोष का कारण बन जाता है।
स्वभावगत कारण
- कुछ बच्चे लेखन में लापरवाही बरतते हैं। वे लेखन के प्रति उदासीन होते हैं तथा उपेक्षाभाव बरतते हैं। बार-बार अशुद्धियों का ध्यान दिलाने पर भी वे उनको सुधारने की ओर प्रत्यनशील नहीं होते। वे एक ही शब्द को एक ही पृष्ठ पर एक बार शुद्ध तो दूसरी बार अशुद्ध लिख देते हैं, अर्थात् इस प्रकार के छात्र लापरवाह स्वभाव के कारण अशुद्धियों को गंभीरता से नहीं लेते।
व्याकरणिक कारण
- लेखन में कुछ अशुद्धियों का कारण व्याकरण का अधूरा ज्ञान होता है। कहीं लिंग सम्बन्धी अशुद्धियाँ होती हैं; जैसे नाक, दही, पतंग आदि शब्दों के लिंगों का प्रयोग छात्र प्रायः गलत करते हैं तथा कहीं वचन सम्बन्धी गलतियाँ होती हैं।