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Hindi Grammar serves as the primary language section in various TET and teaching recruitment examinations, such as CTET, EMRS , RPSC, and others. Additionally, Hindi Pedagogy is included in certain TET and teaching recruitment exams, focusing on the study of teaching methods, educational objectives, and strategies for achieving language teaching goals in Hindi. The Hindi Pedagogy section typically comprises application-based questions and is considered relatively straightforward.
Today, our topic of discussion is ‘पठन कौशल,’ which translates to ‘Reading Skills’ in English. Language skills hold significant importance within the realm of Hindi Pedagogy, as they are a recurring theme in most TET and teaching recruitment exams. In this session, we will delve into the detailed understanding of ‘पठन कौशल,’ encompassing its definition, significance, objectives, and types
भाषा कौशल– पठन कौशल
पठन का अर्थ
पठन का अर्थ लिखी हुई सामग्री को पढ़ते हुए उसका अर्थ ग्रहण करने, उसके पश्चात् उस पर अपना मंतव्य (सोच, विचार) स्थिर करने और फिर उसके अनुसार व्यवहार करने से है। अर्थात् अर्थ एवं भाव को ध्यान में रखकर किसी लिखित भाषा को पढ़ना ही पठन कौशल कहलाता है।
पठन के अन्तर्गत निम्नलिखित बातें शामिल हैं:
- ध्वनि के प्रतीक को देखकर पहचानना।
- वर्गों के प्रयोग से शब्दों का निर्माण करना।
- शब्दों को सार्थक इकाइयों में बाँटकर पढ़ना।
- पठित सामग्री के विचारों को समझाना।
- पठित सामग्री पर अपना मंतव्य स्थिर करना।
पठन कौशल के उद्देश्य
- वर्णमाला के सभी अक्षरों को पहचान कर पढ़ना।
- विद्यार्थियों को तीव्र गति से पठन का अभ्यास कराना।
- स्वाध्याय की आदत का विकास करना।
- आत्मविश्वास जागृत करना।
- छात्रों में एकाग्रता, तत्परता, रूचि जागृत करना।
- उचित हाव-भाव के साथ पढ़ने के योग्य बनना।
- दृश्य इन्द्रियों को क्रियाशील करना।
- लेखक के मनोभावों को स्पष्ट ढंग से समझने की योग्यता विकसित करना।
पठन कौशल की विधियाँ
- वर्ण उच्चारण विधि
- अक्षर बोध विधि
- ध्वनि साम्य विधि
- देखो और कहो विधि
- अनुकरण विधि
Hindi Language Study Notes for all Teaching Exams
पठन शिक्षण की विधियाँ
- वर्ण विधि
- शब्द विधि
- वाक्य विधि
- ध्वनिसाम्य विधि
- कविता विधि
- साहचर्य/संगति विधि।
- संयुक्त विधि
वर्ण विधि
- वर्ण विधि में शिक्षक एक-एक वर्ण को श्यामपट्ट पर लिखकर उसका उच्चारण करता है।
- छात्र श्यामपट्ट पर लिखी या पुस्तक में प्रकाशित वर्ण की आकृति को देखते हैं और शिक्षक का अनुकरण करते हुए वर्ण का उच्चारण करते हैं।
- इसमें छात्र क्रमानुसार वर्गों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। इस विधि में सबसे पहले स्वर, फिर व्यंजन, तत्पश्चात् मात्राओं तथा शब्दों को पढ़ना सिखाया जाता है।
शब्द-विधि
- इस विधि में प्रारम्भ से ही बच्चों को शब्दों का परिचय कराया जाता है।
- इसके बाद उस शब्द में विद्यमान वर्गों का ज्ञान कराया जाता है।
- शब्दों का ज्ञान कराने के लिए चित्रों की सहायता ली जाती अध्यापक चित्र दिखाकर, चित्र के नीचे लिखे उसके नाम को उच्चारण कराता है तथा छात्र उसका अनुकरण करते हैं।
- इस विधि में क्रमबद्ध तरीके से स्वरों एवं व्यंजनों का ज्ञान दिया जाता है।
- यह एक मनोवैज्ञानिक, आकर्षक व रोचक विधि है।
- इस विधि में ‘पूर्ण से अंश की ओर’, ‘ज्ञात से अज्ञात की ओर तथा ‘सरल से कठिन की ओर’ आदि शिक्षण सूत्रों का पालन किया जाता है।
वाक्य विधि
- वाक्य विधि शब्द विधि का ही विस्तार है। इसमें पठन का प्रारम्भ वाक्य से होता है। इसमें शिक्षक चार्ट पर लिखकर वाक्य प्रस्तुत करता है।
- शिक्षक वाक्य को पढ़ता है तथा छात्र उसका अनुकरण करते हैं।
- बार-बार वाक्य पढ़ने से छात्र शब्दों से परिचित हो जाते हैं। इसके बाद वाक्य में प्रयुक्त शब्दों को अलग क्रम में बच्चों के सामने रखते हैं; जैसे- यह मेरा घर है। यह घर मेरा है। मेरा है यह घर आदि।
ध्वनिसाम्य विधि
- ध्वनि साम्य विधि में बालकों के सामने वे ही शब्द रखे जाते हैं जिनकी ध्वनियों में समानता होती है। समान ध्वनि के शब्दों को एक साथ पढ़ाया जाता है। जैसे- कल, चल, छल, पल, फल, नल, बल, हल आदि।
- इस विधि में एक ही वर्ण का बार-बार उच्चारण करने से ध्वनियों का पर्याप्त अभ्यास हो जाता है।
कविता विधि
- बच्चों की संगीत में स्वाभाविक रूचि होती है। इसी को ध्यान में रखकर कविता विधि का विकास किया गया। इसकी प्रक्रिया कहाना विधि जैसी है।
- इस विधि में कहानी की अपेक्षा सरल वाक्यों वाली कविता होती है। बच्चों से कविता का गायन करवाया जाता है।
- बच्चे धीरे-धीरे शब्दों और वर्णों को पहचानने लगते हैं। इसके बाद वर्गों का क्रम से ज्ञान कराया जाता है।
साहचर्य/ संगति विधि
- साहचर्य विधि का प्रयोग मांटेसरी ने किया था।
- इस विधि में बालक की अनुभव सीमा में आने वाले पदार्थों के चित्रों को कमरे में रख दिया जाता है या दीवार आदि पर टाग दिया जाता है।
- बच्चे चित्रों के नीचे लिखे नामों तथा कार्डों पर लिखे नामी में साहचर्य/संगति स्थापित करते हैं।
- अध्यापक इन शब्दों या वर्णों का उच्चारण कराकर बच्चों की उनसे पहचान कराता है। बच्चे खेल-खेल में सक्रिय होकर वाचन करना सीख जाते हैं।
संयुक्त विधि
- उपर्युक्त विधियों में से कोई भी विधि पूर्णतः दोष मुक्त नहीं है। अत: जिस-जिस विधि में जो-जो अच्छी बातें हों, उनको ग्रहण कर लेना चाहिए। जो अंश जिस विधि से ठीक ढंग से सिखाया जा सके, उसे उसी विधि से सिखा दिया जाए। इस मिश्रित रूप को ही संयुक्त विधि कहते हैं।
- जैसे- देखो और कहो विधि से वर्णों की पहचान कराना, ध्वनिसाम्य विधि से एक-एक वर्ण से अनेक शब्द बनाकर वर्णों को पढ़ना सिखाना, कहानी विधि या वाक्य विधि से वाक्य का पठन सिखाया जा सकता है।
पठन कौशल का मूल्यांकन
- क्या छात्र वर्णमाला के सभी वर्गों को पहचानकर पढ़ सकता है?
- क्या छात्र वर्णों के मेल से शब्द निर्माण कर सकता है?
- क्या छात्र वाक्यों को समुचित रूप से पढ़ पाता है?
- क्या छात्र उचित लय के साथ कविता-पाठ कर सकता है?
- क्या छात्र सभी विधाओं को उपयुक्त तरीके से पढ़ पाता है?
- क्या छात्र पठन-सामग्री का अर्थ-ग्रहण कर सकता है?
- क्या छात्र मुहावरों, लोकोक्तियों व सूक्तियों के सन्दर्भ के अनुसार अर्थ को समझता है?
- क्या छात्र स्पष्ट व शुद्ध उच्चारण के साथ पढ़ सकता है?
- क्या छात्र हाव-भाव, आरोह-अवरोह व बलाघात के साथ पढ़ता
- क्या छात्र एकाग्रता के साथ पढ़ सकता है?
- क्या छात्र यति, गति, विराम चिह्नों आदि को ध्यान में रखकर पढ़ सकता है?
- क्या छात्र पठित अंश के केन्द्रीय भाव को समझता है?
- क्या छात्र श्रोताओं की संख्या एवं अवसर के अनुकूल वाणी को नियंत्रित कर सकता है?
- क्या छात्र पठित सामग्री से तथ्यों, भावों एवं विचारों का चयन कर सकता है?
- क्या छात्र पठित सामग्री के सारांश को बता सकता है?
- क्या छात्र पठित सामग्री से पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दे सकता है?
- क्या छात्र पठित सामग्री से निष्कर्ष निकाल सकता है?