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संधि (Sandhi) एक महत्वपूर्ण विषय है जो हिंदी व्याकरण के संदर्भ में शिक्षा भर्ती परीक्षाओं में, जैसे कि सीटीईटी, केवीएस, डीएसएसबी, टेट आदि, में शामिल होता है। संधि के संबंध में कई प्रश्न परीक्षा में पूछे जाते हैं, जैसे कि “संधि किसे कहते हैं?”, “संधि के भेद कितने होते हैं?”, “संधि के प्रकार”। इसलिए, आज हम संधि के बारे में और अधिक जानेंगे – संधि की परिभाषा, भेद और उदाहरण।
संधि – संधि की परिभाषा, भेद और उदाहरण
संधि के तीन प्रकार होते हैं: स्वर संधि, व्यंजन संधि, और विसर्ग संधि। स्वर संधि के पाँच उप-प्रकार हैं: दीर्घ, गुण, वृद्धि, यण, और अयादि। ‘संधि’ शब्द का अर्थ है मेल। दो निकटवर्ती वर्णों या ध्वनियों के बीच होने वाले आपसी मेल से होने वाले परिवर्तन को संधि कहा जाता है।
संधि की परिभाषा
संधि (Sandhi) शब्द संस्कृत के “सम्” और “धा” से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है “मिलना” या “जोड़ना”। व्याकरण में, संधि दो या दो से अधिक वर्णों (स्वर या व्यंजन) के मिलने से उत्पन्न विकार (परिवर्तन) को कहते हैं। जब दो वर्ण पास-पास आते हैं, तो उनके उच्चारण में कुछ बदलाव हो सकता है। यह बदलाव स्वरों और व्यंजनों के आधार पर भिन्न होता है।
सन्धि के तीन भेद
सन्धि के तीन भेद होते हैं-
- (1) स्वर-सन्धि
- (2) व्यंजन सन्धि
- (3) विसर्ग सन्धि
स्वर- सन्धि
स्वर के बाद स्वर अर्थात दो स्वरों के मेल को स्वर सन्धि कहते है। स्वर सन्धि के 5 भेद होते है-
- दीर्घ सन्धि
- गुण सन्धि
- वृद्धि सन्धि
- यण सन्धि
- अयादि सन्धि
- दीर्घ सन्धि- हस्व या दीर्घ ‘आ’, ‘इ’, ‘उ’, के पश्चात क्रमशः हस्व या दीर्घ ‘आ’, ‘इ’, ‘उ’ स्वर आएं तो दोनों को मिलाकर दीर्घ आ, ई, ऊ हो जाते है, जैसे
दीर्घ सन्धि | |
अ + अ = आ |
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आ + आ = आ |
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आ + अ =आ |
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इ + इ = ई |
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इ + ई = ई |
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ई + इ = ई | मही + इन्द्र = महीन्द्र |
ई + ई = ई |
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उ + उ = ऊ | भानु + उदय = भानूदय |
उ + ऊ = ऊ |
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ऊ + उ = ऊ | वधू + उत्सव = वधूत्सव |
ऊ + ऊ = ऊ |
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गुण-सन्धि
यदि अ और आ के बाद इ या ई, उ या ऊ तथा ऋ स्वर आए तो दोनों के मिलने के क्रमशः ए, ओ और अर हो जाते है, जैसे या, ऊ ,तथा , ऋ
गुण-सन्धि | |
आ + इ = ए | नर + इन्द्र = नरेन्द्र |
अ + ई = ए | नर + ईश = नरेश सुर + इन्द्र = सुरेन्द्रसोम + ईश्वर = सोमेश्वर |
आ + इ = ए | रमा + इन्द्र = रमेन्द्र |
आ + ई + ए |
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अ + उ = ओ | वीर + उचित = वीरोचित |
अ + ऊ = ओ |
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आ + उ = ओ | महा + उदय = महोदय |
आ + ऊ = ओ |
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अ + ऋ = अर |
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वृद्धि-सन्धि
- अ या आ के बाद ए या ऐ आए तो ‘ऐ’ और ओ और औ आए तो औ हो जाता हो।
अ + ए = ऐ , एक + एक = एकैक, लोक + एषण = लोकैषणा
अ + ऐ = ऐ, मत + ऐक्य = मतैम्य, धन + ऐश्वर्य = धनैश्वर्य
आ + ए = ऐ , सदा + एव = सदैव, तथा + एव = तथैव
आ + ऐ = ऐ , महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य , रमा + ऐश्वर्य = रमैश्वर्य
अ + ओ = औ, वन + ओषधि = वनौषधि, दन्त + ओष्ठ = दंतौष्ठ
अ + औ = औ , परम + औदार्य =परमौदार्य
आ + औ = और, महा + ओज = महौज
आ + औ = और, महा + औदांर्य = महौदार्य
यण सन्धि
यदि इ, ई, उ, ऊ और ऋ के बाद भिन्न स्वर आये तो इ और ई का ‘य’ तथा उ और ऊ का व और का ऋ हो जाता है-
इ + अ = य , अति + अधिक = अत्यधिक, यदि + अपि = यद्यपि
इ + आ = या , इति + आदि = इत्यादि, अति + आचार = अत्याचार
इ + उ = यु , उपरि + उक्त = उपर्युक्त, प्रति + उपकार = प्रत्युपकार
इ +ऊ = यू, नि + ऊन = न्यून , वि + ऊह = व्यूह
इ + ए = ये , प्रति + एक = प्रत्येक, अधि + एषणा = अध्येषणा
ई + आ = या, देवी +आगमन = देव्यागमन
इ + ऐ = ये , सखी + ऐश्वर्य =
उ + अ = व , सु + अच्छ = स्वच्छ , अनु + अन्य = अन्वय
उ + आ = व, सु़ +आगत = स्वागत
उ + इ = वि, अनु + इति = अन्विति
उ + ए = वे, अनु + एषण = अन्वेषण
ऊ + आ = वा, वधू + आगमन = वध्वागमन
ऋ + अ = र, पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा, मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा
ऋ + इ = रि मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा
अयादि सन्धि
यदि ए, ऐ, ओ, औ, स्वरों का मेल दूसरे स्वरों से हो तो ए का अय, ऐ का आय, ओ का अव और औ का आव हो जाता है
ए + अ =अय ने़ + अन =नयन,
शे + अन = शयन गै + अन = गायन
ऐ + अ =आय नै + अक = नायक
ऐ + इ = आयि गै + इका = गायिका
ओ + अ = अव पो+ अन = पवन,
भो + अन = भवन सौ + अन = सावन
औ + अ = आव पौ + अन = पावन,
ओ + इ = अवि पो + इत्र = पवित्र
औ + इ =आवि नौ + इक = नाविक
औ + इ =आवु भौ + उक = भावुक
व्यंजन सन्धि
व्यंजन के बाद स्वर या व्यंजन आये तो उनके मिलने से जो विकार होता है उसे व्यंजन सन्धि कहते है।
व्यंजन सन्धि के नियम- वर्ग के पहले वर्ण का तीसरे वर्ण में परिवर्तन किसी वर्ग के पहले वर्ण (क, च, ट्; त, प,) का मेल किसी स्वर अथवा प्रत्येक वर्ग के तीसरे, चौथे वर्ण अथवा अंतःस्थ व्यंजन से होने पर वर्ग का पहला वर्ण तीसरे वर्ण में परिवर्तित हो जाता है।
क का ग होना- दिक् + गज = दिग्गज
च् का ज् होना – अच् + अन्त = अजन्त
दिक् + अन्त = दिगन्त
अच् + आदि = अजादि
दिक् + विजय = दिग्विजय
वाक् + ईश = वागीश
ट का ड़ होना- षट + आनन = षडानन
त का द् होना- भगवत् + भजन = भगवद् भजन प का थ् होना-
अप् + ज = अब्ज
उत् + योग = उद्योग
सुप् + अन्त = सुवन्त
सत् + भावना = सद्भावना
सत् + गुण = सदगुण
वर्ग के पहले वर्ण का पाँचवें वर्ग में परिवर्तन – यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मेल किसी अनुनासिक वर्ण (केवल न, म) से हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है जैसे-
क् का ड् होना – वाक् + मय = वाङ्मय
ट का ण होना – षट् + मुख = षण्मुख
त का न होना – उत् + मत्त = उन्मत्त
तत् + मय = तन्मय
चित् + मय = चिन्मय
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
‘छ’ सम्बन्धी नियम – किसी भी हस्व स्वर या ‘आ’ का मेल ’छ’ से होने पर, ’छ’ से पहले च् जोड़ दिया जाता है जैसे –
स्व + छन्द = स्वच्छन्द
परि + छेद = परिच्छेद
अनु + छेद = अनुच्छेद
वि + छेद = विच्छेद
त् सम्बन्धी नियम —
(i) त् के बाद यदि च, छ हो तो त् का च् हो जाता है।
उत् + चारण = उच्चारण
उत् + चरित = उच्चरित
जगत् + छाया = जगच्छाया
सत् + चरित्र = सच्चरित्र
(ii) त् का मेल→ ज/झ हो, तो त् ज् में बदल जाता है जैसे –
सत् + जन = सज्जन, जगत् + जननी = जगज्जननी
उत् + झटिका = उज्झटिका, उत् + ज्वल = उज्ज्वल
(iii) ‘त’ के बाद यदि ट, ड हो तो त् क्रमशः ट, ड में बदल जाता है, जैसे–
उत् + डयन = उड्डयन
वृहत् + टीका = बृहट्टीका
(iv) ‘त’ के बाद यदि ‘ल’ हो तो त्, ल् में बदल जाता है –
उत् + लास = उल्लास
तत् + लीन = तल्लीन
उत् + लेख = उल्लेख
(v) त के बाद यदि श् हो तो त् का च् और श् का ‘छ’ हो जाता है –
उत् + श्वास = उच्छ्वास
सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र
(vi) त् के बाद यदि ‘ह‘ हो तो ‘त’, द में और ह, ध में बदल जाता है
उत् + हार = उद्धार
उत् + हत = उद्धत
म का मेल ‘क’ से लेकर ‘ह’ तक किसी भी व्यंजन से हो तो म अनुस्वार हो जाता है।
सम् + कलन = संकलन, सम् + गति = संगति
सम् + चय = संचय, परम् + तु = परंतु
सम् + पूर्ण = संपूर्ण, सम् + योग = संयोग
सम् + रक्षण = संरक्षण, सम् + लाप = संलाप
सम् + विधान = संविधान, सम् + सार = संसार
सम् + हार = संहार
(ii) म् के बाद यदि म् आये तो म् में कोई परिवर्तन नही होता है
सम् + मान = सम्मान,
सम् + मति = सम्मति
‘स्’ सम्बंधी नियम — ‘स’ से पहले अ, आ से भिन्न स्वर हो तो ’स’ का ‘ष’ हो जाता है
सु + समा = सुषमा,
वि + सम = विषम
वि + साद = विषाद
विसर्ग सन्धि
विसर्ग-सन्धि – विसर्ग के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो विकार होता है उसे विसर्ग सन्धि कहते है।
- विसर्ग का ‘ओ’ हो जाना– यदि विसर्ग के पहले अ और बाद में अ अथवा तीसरा वर्ण, चौथा वर्ण, पाँचवा वर्ण अथवा य, र, ल, व, ह हो तो विसर्ग का ओ हो जाता है।
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल,
तपः + बल = तपोबल
अधः + गति = अधोगति,
तपः + भूमि = तपोभूमि
वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध,
पयः + द = पयोद
मनः + रथ = मनोरथ,
मनः + योग = मनोयोग
मनः + हर = मनोहर
पुनः + जन्म = पुनर्जन्म,
अंतः + धान = अंतर्धान
- विसर्ग का र हो जाना– यदि विसर्ग से पहले अ, आ को छोडकर कोई दूसरा स्वर हो और बाद में आ, उ, ऊ, तीसरा वर्ण, चौथा वर्ण, पाँचवा वर्ण या य, र, ल, व में से कोई हो तो विसर्ग का ‘र’ हो जाता है।
निः + आशा = निराशा,
निः + धन = निर्धन
निः + बल = निर्बल,
आशीः + बाद = आशीर्वाद
दुः + उपयोग = दुरुपयोग
- विसर्ग का ‘श’ हो जाता है– यदि विसर्ग के पहले कोई, स्वर हो और बाद में च, छ, या श हो तो विसर्ग का श् हो जाता है
निः + चिन्त =निश्चिन्त
निः+ छल = निश्छल
दुः + शासन = दुश्शासन
दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
- विसर्ग का ब् हो जाता है– विसर्ग के पहले इ, उ, और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ मे से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ‘ष’ हो जाता है–
निः + कपट = निष्कपट,
धनु + टकांर = धनुष्टंकार
निः + ठुर = निष्ठुर
निः + प्राण = निष्प्राण
निः + फल = निष्फल
- विसर्ग का ‘स’ हो जाना – विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग का स् हो जाता है
निः + तेज = निस्तेज,
निः + सार = निस्सार
मनः + ताप = मनस्ताप
नमः + ते = नमस्ते
दुः + तर = दुस्तर
दुः + साहस = दुस्साहस
- विसर्ग का लोप हो जाना–
(i) यदि विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो विसर्ग लुप्त हो जाता है और उससे पहले का स्वर दीर्घ हो जाता है–
निः + रोग = नीरोग
निः + रस = नीरस
(ii) यदि विसर्ग से पहले अ या आ हो तो और विसर्ग के बाद कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग लुप्त हो जाता है
अतः + एव = अतएव
- विसर्ग में परिवर्तन ने होना– यदि विसर्ग के पूर्व ‘अ’ हो तथा बाद में ‘क’ या ‘प’ हो तो विसर्ग में परिवर्तन नही होता
प्रातः + काल = प्रातः काल
अन्तः + पुर = अन्तः पुर
अधः + पतन = अधः पतन