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उपचारात्मक शिक्षण- महत्त्व, उद्देश्य, विधियाँ Download PDF

उपचारात्मक शिक्षण का उपयोग करते समय, हिंदी पेडागोजी में यह महत्वपूर्ण है कि शिक्षक विभिन्न विषयों को अवधारणात्मक रूप से पेश करें और छात्रों को गतिविधियों, आलेखों, कहानियों, गद्य पठन, नाटकों, कविताओं, बोलचाल के प्रदर्शन और रचनात्मक लेखन के माध्यम से सहयोग प्रदान करें। इससे छात्रों का अभिरुचि उत्पन्न होता है, संवेदनशीलता विकसित होती है, उनकी समस्या हल करने की क्षमता विकसित होती है और उनका संचार मजबूत होता है। इस प्रकार, उपचारात्मक शिक्षण हिंदी पेडागोजी में एक उपयोगी और प्रभावी तकनीक है जो छात्रों को संपूर्णता के साथ विकसित करने में मदद करती है।

उपचारात्मक शिक्षण

उपचारात्मक शिक्षण हिंदी शिक्षण-प्रणाली में एक महत्वपूर्ण तत्व है। इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों के सामाजिक, भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक विकास को प्रोत्साहित करना है। यह शिक्षा प्रदान करने का एक विशेष तरीका है जिसमें छात्रों को स्वयं-सहायता और संचालना कौशल प्राप्त करने का अवसर मिलता है।

उपचारात्मक शिक्षण की प्रणाली में छात्रों के मनोवैज्ञानिक विकास को महत्व दिया जाता है और उनके भावनात्मक संतुलन को सुधारने का प्रयास किया जाता है। इसके लिए, विभिन्न शिक्षानियों, संगठनात्मक गतिविधियों, उदाहरण, गतिविधियाँ, रचनात्मक प्रक्रियाएँ, समाधान निर्माण और समस्या हल करने के उपायों का उपयोग किया जाता है।

उपचारात्मक शिक्षण के महत्त्व

भाषा में शैक्षणिक निदान व उपचार का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसकी उपेक्षा करने से न केवल भाषा – शिक्षा अपितु पूरी शिक्षा – व्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है। भाषा शिक्षण में दुष्प्रभाव से बचने के लिए शैक्षणिक निदान एवं उपचार पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

  1. उपचारात्मक शिक्षक से विद्यार्थी अपनी अशुद्धियों को समझने लगते हैं तथा भविष्य में उनके प्रति सावधान हो जाते हैं।
  2. इससे अध्यापक विद्यार्थियों के दोषों का ज्ञान प्राप्त करके उन्हें सुधारने के लिए प्रयत्नशील होते हैं।
  3. इससे शिक्षकों को भी अपनी त्रुटियों का ज्ञान होता है। उन त्रुटियों को दूर करके वे अपने शिक्षण को प्रभावशाली बनाने का प्रयास करते हैं।
  4. इससे विद्यार्थियों की विभिन्न कठिनाइयों; जैसे – मानसिक, बौद्धिक, संवेगात्मक, सामाजिक, शारीरिक आदि को दूर करने में सहायता मिलती है।
  5. इससे विद्यार्थियों को बुरी आदतों को दूर करने तथा अच्छी आदतों को अपनाने में मदद मिलती है।
  6. उपचारात्मक शिक्षण से विद्यार्थियों को हीन – भावना से बचाकर उनमें आत्मविश्वास विकसित किया जा सकता है।
  7. इससे विद्यार्थियों की अंतर्निहित प्रतिभा को विकसित किया जा सकता है।

उपचारात्मक शिक्षण का उद्देश्य

  1. विद्यार्थियों की भाषा सम्बन्धी अशुद्धियों को दूर करना तथा इनको दूर करके कक्षा के अन्य विद्यार्थियों के बहुमूल्य समय को नष्ठ होने से बचाना।
  2. विद्यार्थियों की ज्ञान – प्राप्ति के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों एवं समस्याओं को दूर करना।
  3. विद्यार्थियों की संवेगात्मक समस्याओं का समाधान करके उनको असमायोजन से बचाना तथा उनको मानसिक रूप से स्वस्थ तथा शिक्षण ग्रहण करने के योग्य बनाना।
  4. विद्यार्थियों को सर्वांगीण विकास की ओर अग्रसर करना अर्थात् निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देना।
  5. विद्यार्थियों को भाषा – सम्बन्धी दोषों से परिचित कराना तथा उनके प्रति सावधान करना तथा दोषों को दूर करने के लिए प्रेरित करना।
  6. शिक्षक द्वारा अपने शिक्षण को प्रभावशाली बनाना तथा विद्यार्थियों को अपनी शक्ति व क्षमता के अनुसार शैक्षिक प्रगति के अवसर प्रदान करना।

उपचारात्मक शिक्षण – विधियाँ

विद्यार्थियों की भाषा – सम्बन्धी अशुद्धियों को दूर करने के लिए प्रायः निम्नलिखित विधियों का प्रयोग किया जाता है –

  1. व्यक्तिगत विधि,
  2. सामूहिक विधि

व्यक्तिगत विधि

  • व्यक्तिगत विधि में विद्यार्थियों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ध्यान रखा जाना चाहिए। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि प्रत्येक बालक एक – दूसरे से भिन्न होता है। अत: व्यक्तिगत उपचार के लिए बालक के मानसिक एवं बौद्धिक स्तर को आधार बनाना चाहिए।
  • व्यक्तिगत उपचार की सफलता के लिए आवश्यक है कि उपचाराधीन विद्यार्थी की समस्याओं एवं कठिनाइयों का गम्भीरता से अध्ययन किया जाए। उसकी विभिन्न परिस्थितियों तथा विवशताओं को ध्यान में रखा जाए। अध्ययन व विश्लेषण में चूक से उलटा परिणाम भी निकल सकता है।
  • उपचार करते समय परिस्थितियों, मजबरियों एवं वातावरण का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
  • उपचार हेतु दण्ड आवश्यक नहीं है। प्रेम व सहानभति के साथ व्यक्तिगत उपचार करना चाहिए।
  • कक्षा में विद्यार्थी अलग – अलग ढंग से गलतियाँ करते हैं, अतः उपचार भी अलग – अलग ढंग से किया जाना चाहिए।

सामूहिक विधि

  • सामूहिक उपचार विधि का अर्थ है – सभी विद्यार्थियों का एक स्थान पर उपचार करना। कुछ अशुद्धियाँ ऐसी होती हैं जिन्हें अधिकांश विद्यार्थी करते हैं। अध्यापक विद्यार्थियों की कॉपियाँ देखकर या उनके वाचन का निरीक्षण करके ऐसी गलतियों को ढूंढ़ निकालता है। ये अशुद्धियाँ पिछली कक्षा में गलत शिक्षण के कारण, भ्रमपूर्ण धारणाओं के कारण या परिवेश के कारण पैदा हो सकती हैं।
  • इन गलतियों का सामूहिक उपचार करने से सभी छात्रों को लाभ पहुँच सकता है।
  • सामूहिक उपचार की एक और विधि भी है जिसमें समूची कक्षा की अशुद्धियों का एक साथ उपचार नहीं किया जाता अपितु अशुद्धियों के आधार पर कक्षा को तीन – चार वर्गों में बाँटा जाता है। फिर प्रत्येक वर्ग की अशुद्धियों का सामूहिक उपचार किया जाता है। प्रत्येक वर्ग को अतिरिक्त समय देकर उनके विभिन्न दोषों का उपचार करके उनको भाषा के शुद्ध प्रयोग का अभ्यास कराया जाता है।
  • श्रम साध्य होने पर भी यह विधि उपयोगी है। इस विधि में छात्र एक – दूसरे की सहायता भी कर सकते हैं।
  • उपचारात्मक शिक्षण का मूल उद्देश्य विद्यार्थियों की अशुद्धियों का निवारण करना है।
  • उपचार करते समय अध्यापक को विद्यार्थियों के प्रति प्रेम तथा सहानुभूति का व्यवहार करना चाहिए।
  • विद्यार्थियों को प्रेरित व प्रोत्साहित करते रहना चाहिए। कठिनाइयाँ दूर होते ही विद्यार्थियों की प्रगति आरम्भ हो जाती है।

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FAQs

उपचारात्मक शिक्षण क्या है?

उपचारात्मक शिक्षण हिंदी शिक्षण-प्रणाली में एक महत्वपूर्ण तत्व है जिसका मुख्य उद्देश्य छात्रों के सामाजिक, भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक विकास को प्रोत्साहित करना होता है।

उपचारात्मक शिक्षण क्यों महत्वपूर्ण है?

उपचारात्मक शिक्षण के माध्यम से छात्रों का अभिरुचि उत्पन्न होता है, संवेदनशीलता विकसित होती है, उनकी समस्या हल करने की क्षमता विकसित होती है और उनका संचार मजबूत होता है। इससे छात्रों को संपूर्णता के साथ विकसित करने में मदद मिलती है।

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