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व्यंजन सन्धि परिभाषा
व्यंजन के बाद स्वर या व्यंजन आये तो उनके मिलने से जो विकार होता है उसे व्यंजन सन्धि कहते है।
उदाहरण:
- सत् + आचार = सदाचार (यहाँ “त” और “आ” मिलकर “दा” बनते हैं)
- उत् + सर्ग = उत्सर्ग (यहाँ “त” और “स” मिलकर “त्स” बनते हैं)
- सु + चंद्र = सुंदर (यहाँ “न” और “च” मिलकर “न” बनते हैं)
व्यंजन सन्धि के भेद
व्यंजन सन्धि के मुख्यतः चार भेद होते हैं:
प्रकार | नियम | उदाहरण |
---|---|---|
स्वर-संयोग | स्वर मिलने पर कोई परिवर्तन नहीं होता | राम + ईश्वर = रामेश्वर |
व्यंजन-संयोग | कुछ व्यंजन बदल सकते हैं | सत् + आचार = सदाचार |
विसर्ग-संयोग | विसर्ग बदल सकता है | उत् + सर्ग = उत्सर्ग |
अनुस्वार-संयोग | अनुस्वार बदल सकता है | सु + चंद्र = सुंदर |
1. स्वर-संयोग:
जब दो स्वर मिलते हैं, तो उनके बीच कोई परिवर्तन नहीं होता है।
उदाहरण:
- राम + ईश्वर = रामेश्वर
- गंगा + आसन = गंगासन
2. व्यंजन-संयोग:
जब दो व्यंजन मिलते हैं, तो उनमें से एक या दोनों व्यंजन बदल सकते हैं।
उदाहरण:
- सत् + आचार = सदाचार
- तत् + भव = तद्भव
3. विसर्ग-संयोग:
जब विसर्ग (ः) किसी अन्य व्यंजन से मिलता है, तो विसर्ग बदल सकता है।
उदाहरण:
- उत् + सर्ग = उत्सर्ग
- अहम् + भाव = अभिभाव
4. अनुस्वार-संयोग:
जब अनुस्वार (ं) किसी अन्य व्यंजन से मिलता है, तो अनुस्वार बदल सकता है।
उदाहरण:
- सु + चंद्र = सुंदर
- पुनः + आगमन = पुनरागमन
व्यंजन सन्धि के नियम
- वर्ग के पहले वर्ण का तीसरे वर्ण में परिवर्तन किसी वर्ग के पहले वर्ण (क, च, ट्; त, प,) का मेल किसी स्वर अथवा प्रत्येक वर्ग के तीसरे, चौथे वर्ण अथवा अंतःस्थ व्यंजन से होने पर वर्ग का पहला वर्ण तीसरे वर्ण में परिवर्तित हो जाता है।
वर्ण का परिवर्तन | संधि उदाहरण |
क का ग होना | दिक् + गज = दिग्गज |
च् का ज् होना | अच् + अन्त = अजन्त दिक् + अन्त = दिगन्त अच् + आदि = अजादि दिक् + विजय = दिग्विजय वाक् + ईश = वागीश |
ट का ड़ होना | षट + आनन = षडानन |
त का द् होना | भगवत् + भजन = भगवद् भजन |
प का थ् होना | अप् + ज = अब्ज उत् + योग = उद्योग सुप् + अन्त = सुवन्त सत् + भावना = सद्भावना सत् + गुण = सदगुण |
2. वर्ग के पहले वर्ण का पाँचवें वर्ग में परिवर्तन – यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मेल किसी अनुनासिक वर्ण (केवल न, म) से हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है जैसे-
क् का ड् होना | वाक् + मय = वाङ्मय |
ट का ण होना | षट् + मुख = षण्मुख |
त का न होना | उत् + मत्त = उन्मत्त तत् + मय = तन्मय चित् + मय = चिन्मय जगत् + नाथ = जगन्नाथ |
3. ‘छ’ सम्बन्धी नियम – किसी भी हस्व स्वर या ‘आ’ का मेल ’छ’ से होने पर, ’छ’ से पहले च् जोड़ दिया जाता है जैसे –
स्व + छन्द = स्वच्छन्द
परि + छेद = परिच्छेद
अनु + छेद = अनुच्छेद
वि + छेद = विच्छेद
4. त् सम्बन्धी नियम —
वर्ण का परिवर्तन | संधि उदाहरण |
त् के बाद यदि च, छ हो तो त् का च् हो जाता है। | उत् + चारण = उच्चारण, उत् + चरित = उच्चरित जगत् + छाया = जगच्छाया, सत् + चरित्र = सच्चरित्र |
त् का मेल→ ज/झ हो, तो त् ज् में बदल जाता है | सत् + जन = सज्जन, जगत् + जननी = जगज्जननी उत् + झटिका = उज्झटिका, उत् + ज्वल = उज्ज्वल |
‘त’ के बाद यदि ट, ड हो तो त् क्रमशः ट, ड में बदल जाता है, जैसे– | उत् + डयन = उड्डयन वृहत् + टीका = बृहट्टीका |
‘त’ के बाद यदि ‘ल’ हो तो त्, ल् में बदल जाता है – | उत् + लास = उल्लास तत् + लीन = तल्लीन उत् + लेख = उल्लेख |
त के बाद यदि श् हो तो त् का च् और श् का ‘छ’ हो जाता है – | उत् + श्वास = उच्छ्वास सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र |
त् के बाद यदि ‘ह‘ हो तो ‘त’, द में और ह, ध में बदल जाता है | उत् + हार = उद्धार उत् + हत = उद्धत |
म का मेल ‘क’ से लेकर ‘ह’ तक किसी भी व्यंजन से हो तो म अनुस्वार हो जाता है। | सम् + कलन = संकलन, सम् + गति = संगति सम् + चय = संचय, परम् + तु = परंतु सम् + पूर्ण = संपूर्ण, सम् + योग = संयोग सम् + रक्षण = संरक्षण, सम् + लाप = संलाप सम् + विधान = संविधान, सम् + सार = संसार सम् + हार = संहार |
म् के बाद यदि म् आये तो म् में कोई परिवर्तन नही होता है | सम् + मान = सम्मान, सम् + मति = सम्मति |
5. ‘स्’ सम्बंधी नियम — ‘स’ से पहले अ, आ से भिन्न स्वर हो तो ’स’ का ‘ष’ हो जाता है
सु + समा = सुषमा,
वि + सम = विषम
वि + साद = विषाद