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अहोम विद्रोह (1828) – यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 1: आधुनिक भारतीय इतिहास- स्वतंत्रता संग्राम – इसके विभिन्न चरण एवं देश के विभिन्न हिस्सों से महत्वपूर्ण योगदान / योगदानकर्ता।
अहोम विद्रोह (1828)
- 1828 का अहोम का विद्रोह प्रथम आंग्ल बर्मा युद्ध (124-26) का परिणाम था। अहोम विद्रोह ब्रिटिश साम्राज्य के असम प्रांत में हुआ।
अहोम विद्रोह के कारण (1828)
- प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध (1824-26): अंग्रेजों ने प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध की समाप्ति के पश्चात अहोम क्षेत्रों को छोड़ने का वादा किया था।
- इसके स्थान पर, उन्होंने अहोम क्षेत्रों को ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन हड़प लेने का प्रयत्न किया, ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध अहोम जनजाति को क्षुब्ध कर दिया एवं 1828 के अहोम विद्रोह को अग्रसरकिया।
- अहोम विद्रोह को अहोम राजकुमार गोमधर कुंवर ने अपनी प्रजा जैसे धनंजय बोरगोहेन तथा जयराम खारघरिया फुकन के समर्थन से आयोजित किया था।
अहोम विद्रोह के नेता (1828)
- अहोम विद्रोह अहोम राजकुमार गोमधर कोंवर के नेतृत्व में आयोजित हुआ जिन्होंने प्राचीन अहोम राजशाही की स्थापना एवं अंग्रेजों को निष्कासित करने का प्रयत्न किया।
- अहोम विद्रोह के अन्य महत्वपूर्ण नेताओं में शामिल हैं- धनजय बोरगोहेन एवं जयराम खारघरिया फुकन।
अहोम विद्रोह (1828) के बारे में
- एक नए राजा की स्थापना: जोरहाट नामक स्थान पर एक बैठक आयोजित की गई जहां विद्रोहियों ने औपचारिक रूप से 1828 में गोमधर कुंवर को अहोम राजवंश के राजा के रूप में पदारूढ़ किया।
- अहोम विद्रोह की तैयारी: गोमधर कुंवर ने रंगपुर में ब्रिटिश गढ़ को अपने नियंत्रण में लाने की योजना बनाई। जिसके लिए उन्हें सैनिकों की आवश्यकता थी।
- इस कारण से, गोमधर कुंवर ने सैनिकों की भर्ती करना तथा हथियार एकत्रित करना प्रारंभ कर दिया और अपनी सेना को ब्रिटिश करों का भुगतान बंद करने का निर्देश भी दिया।
- विद्रोह का दिन: गोमधर कुंवर के नेतृत्व में अहोम विद्रोहियों ने नवंबर 1828 में रंगपुर में ब्रिटिश गढ़ पर हमला करने एवं नियंत्रण करने हेतु रंगपुर की ओर बढ़ना प्रारंभ किया।
- अहोम विद्रोह की विफलता: अंग्रेजों को अहोम विद्रोहियों की योजनाओं के बारे में पता चला एवं मरियानी में उन्हें पकड़ लिया तथा उन पर हमला कर दिया।
- अहोम विद्रोह के अनेक विद्रोहियों ने आत्मसमर्पण कर दिया, जबकि कई अन्य भाग गए।
अहोम विद्रोह का परिणाम (1828)
- गोमधर कुंवर का परिणाम: अहोम विद्रोह की विफलता के पश्चात, गोमधर एवं उनके मित्रों ने नागा पहाड़ियों में शरण ली। बाद में, उसने आत्मसमर्पण कर दिया तथा अन्य को हिरासत में ले लिया गया।
- उन सभी पर अंग्रेजों द्वारा मुकदमा चलाया गया जिन्होंने उन्हें राजद्रोह का दोषी ठहराया एवं उन्हें मृत्युदंड दिया गया।
- हालांकि, एक सुलह के संकेत के रूप में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनकी सजा को घटाकर निर्वासन में सात वर्ष कर दिया।
- मैत्रीपूर्ण दृष्टिकोण: बाद में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक समझौतावादी दृष्टिकोण अपनाने का विकल्प चुना। इसने ऊपरी असम को महाराजा पुरंदर सिंह नरेंद्र को दे दिया। इसलिए, अहोम साम्राज्य के एक हिस्से को असमिया शासक के अंतर्गत बहाल किया गया।
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