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आंग्ल-नेपाल युद्ध – यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 1: भारतीय इतिहास- अठारहवीं शताब्दी के मध्य से लेकर वर्तमान तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्वपूर्ण घटनाएं, व्यक्तित्व, मुद्दे।
आंग्ल-नेपाल युद्ध की पृष्ठभूमि
- गोरखाओं ने 1760 में नेपाल क्षेत्र में अपना नियंत्रण स्थापित किया एवं 1767 से उन्होंने अपने प्रभुत्व के क्षेत्र को आसपास के क्षेत्रों में भी विस्तारित करना प्रारंभ कर दिया।
- उनके लिए नेपाल के दक्षिणी भाग (अर्थात भारतीय क्षेत्र) में अपने क्षेत्रीय नियंत्रण का विस्तार करना सरल था क्योंकि उत्तरी भागों पर चीनियों का नियंत्रण था।
- इस संदर्भ में, अंग्रेजों ने उत्तर में अपनी क्षेत्रीय शक्ति में वृद्धि करने की महत्वाकांक्षा की, जिससे उन्हें नेपाल के गोरखाओं के आमने सामने ला दिया।
आंग्ल-नेपाल युद्ध के कारण
- अंग्रेजों की आर्थिक महत्वाकांक्षाएं: वे तिब्बत क्षेत्र के साथ व्यापारिक संबंध चाहते थे। इसके लिए नेपाल साम्राज्य के शासकों को अंग्रेजों के लिए मार्ग देना पड़ता जिसे गोरखाओं ने अस्वीकार कर दिया।
- गोरखा अपने देश को विदेशियों के लिए खोलने के विचार के विरुद्ध थे।
- तात्कालिक कारण: भारत एवं नेपाल के मध्य सीमा विवाद ने 1814-16 के आंग्ल-नेपाल युद्ध के लिए चिंगारी प्रदान की।
- अंग्रेजों ने 1801 में गोरखपुर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया एवं अवध के नवाब से भूमि भी हासिल कर ली, जिसने नेपाल के साम्राज्य के साथ अंग्रेजों को आमने सामने ला दिया।
- चूंकि भारत-नेपाल सीमा स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं थी, इसलिए उनके मध्य संघर्ष अपरिहार्य था।
आंग्ल-नेपाल युद्ध 1814-16 का विकास क्रम
- नेपाल साम्राज्य के शासक भीमसेन थापा ने ब्रिटिश गवर्नर-जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स (1813-23) से क्षुब्ध होकर बुटवल एवं शिवराज की तराई पर नियंत्रण स्थापित कर लिया।
- 1814 में, गवर्नर-जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स ने ब्रिटिश सेना को नेपाल पर आक्रमण करने के लिए भेजा, जिससे 1814-16 के आंग्ल नेपाल युद्ध का प्रारंभ हुआ।
- आंग्ल-नेपाल युद्ध दो वर्ष तक चला एवं इसके बीच में कई लड़ाइयाँ लड़ी गईं। आंग्ल-नेपाली युद्ध की कुछ महत्वपूर्ण लड़ाइयाँ नीचे सूचीबद्ध हैं-
- नलपानी का युद्ध
- जैतकी का युद्ध
- मालाओं का युद्ध
- 1816 में मालाओं के युद्ध में, नेपाली सेना का प्रधान सेनापति (कमांडर इन चीफ) अमर सिंह थापा, जो गोरखा सेना का नेतृत्व कर रहे थे, युद्ध में हताहत हुए।
- इससे गोरखाओं की आंग्ल नेपाल युद्ध में पराजय हुई जो 1816 में सुगौली की संधि पर हस्ताक्षर के साथ संपन्न हुई थी।
सुगौली की संधि 1816
- क्षेत्र का नुकसान: गोरखाओं ने सिक्किम, कुमाऊं एवं गढ़वाल के क्षेत्रों तथा तराई की अधिकांश भूमि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को गँवा दी।
- बदले में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने तराई क्षेत्र से आय के नुकसान की भरपाई के लिए 200,000 रुपये प्रतिवर्ष देने का वादा किया।
- नेपाल में ब्रिटिश प्रभाव में वृद्धि:
- नेपाल ने अपनी राजधानी में एक ब्रिटिश रेजिडेंट को रखना को स्वीकार किया।
- नेपाल को अंग्रेजों की पूर्व अनुमति के बिना किसी भी यूरोपीय को अपनी सेवा में नियुक्त करने से रोक दिया गया था।
- वफादार समर्थक: गोरखाओं को ब्रिटिश सेना में भर्ती होने की अनुमति दी गई थी। इसके साथ गोरखा भारत में अंग्रेजों के वफादार सहयोगी बन गए तथा इसने उन्हें भारत पर प्रभुत्व स्थापित करने में सहायता की।