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अरत्तुपुझा वेलायुधा पनिकर- ए रिफॉर्मर- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- सामान्य अध्ययन I- आधुनिक भारतीय इतिहास।
अरत्तुपुझा वेलायुधा पनिकर
- हाल ही में रिलीज हुई मलयालम फिल्म पथोनपथम नूट्टंडु (‘उन्नीसवीं सदी’) केरल में एझवा समुदाय के एक समाज सुधारक अरत्तुपुझा वेलायुधा पनिकर के जीवन पर आधारित है, जो 19वीं शताब्दी में रहते थे।
अरत्तुपुझा वेलायुधा पनिकर कौन थे?
- केरल के अलप्पुझा जिले में व्यापारियों के एक संपन्न परिवार में जन्मे पनिकर राज्य में सुधार आंदोलन में सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तित्व में से एक थे।
- उन्होंने उच्च जातियों या ‘सवर्णों’ के वर्चस्व को चुनौती दी तथा पुरुषों एवं महिलाओं दोनों के जीवन में बदलाव लाए।
- 19वीं शताब्दी में केरल में सामाजिक सुधार आंदोलन ने राज्य में मौजूदा जाति पदानुक्रम एवं सामाजिक व्यवस्था के बड़े पैमाने पर ध्वंस किया।
- पनिकर की 1874 में 49 वर्ष की आयु में उच्च जाति के पुरुषों के एक समूह द्वारा हत्या कर दी गई थी। यह उन्हें केरल पुनर्जागरण का ‘प्रथम शहीद’ बनाता है।
सामाजिक सुधारों को आरंभ करने में पनिकर की भूमिका
- पनिकर को हिंदू भगवान शिव को समर्पित दो मंदिरों के निर्माण का श्रेय दिया जाता है, जिसमें सभी जातियों एवं धर्मों के सदस्यों को प्रवेश की अनुमति थी।
- एक मंदिर का निर्माण 1852 में उनके अपने गांव अरट्टुपुझा में किया गया था एवं एक 1854 में थन्नीरमुकोम में, अलाप्पुझा जिले के एक अन्य गांव में किया गया था।
- उनके कुछ सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान केरल के पिछड़े समुदायों से संबंधित महिलाओं के अधिकारों के लिए विरोध करना थे।
- 1858 में, उन्होंने अलाप्पुझा के कायमकुलम में अचिप्पुडव समरम हड़ताल का नेतृत्व किया।
- इस हड़ताल का उद्देश्य उत्पीड़ित समूहों की महिलाओं को घुटनों से आगे तक नीचे के वस्त्र पहनने का अधिकार दिलाना था।
- 1859 में, इसे एथाप्पु समरम में विस्तारित किया गया, जो पिछड़ी जातियों की महिलाओं द्वारा ऊपरी शरीर के कपड़े पहनने के अधिकार के लिए संघर्ष था।
- 1860 में, उन्होंने निचली जाति की महिलाओं को ‘मुक्कुठी’ या नाक का छल्ला एवं अन्य सोने के गहने पहनने के अधिकार के लिए, पठानमथिट्टा जिले के पंडलम में मुक्कुठी समरम का नेतृत्व किया।
- इन संघर्षों ने सामाजिक व्यवस्था को चुनौती देने एवं सार्वजनिक जीवन में समाज के निचले तबके की महिलाओं की गरिमा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अन्य सामाजिक कार्य
- महिलाओं से संबंधित मुद्दों के अतिरिक्त, पनिकर ने केरल में खेतिहर मजदूरों की प्रथम हड़ताल का भी नेतृत्व किया, जो सफल रहा।
- उन्होंने 1861 में एझवा समुदाय के लिए पहला कथकली योगम भी स्थापित किया, जिसके कारण एझवा तथा अन्य पिछड़े समुदायों द्वारा कथकली प्रदर्शन किया गया।