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सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम

सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

  • सामान्य अध्ययन III- संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौतियां, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया एवं सोशल नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की मूलभूत बातें; धन शोधन तथा इसकी रोकथाम।

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सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम चर्चा में क्यों है

असम में 28 जिलों, नागालैंड में 7 जिलों एवं मणिपुर में 6 जिलों में अफस्पा को निरसित किया गया है, जबकि एनएसएफ के अध्यक्ष केगवेहुन टेप ने कहा कि इसे सभी पूर्वोत्तर राज्यों में निरसित किया जाना चाहिए।

सशस्त्र सीधे शब्दों में कहें तो सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम, सशस्त्र बलों को “अशांत क्षेत्रों” में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने की शक्ति प्रदान करता है।

  • अफस्पा (AFSPA) सशस्त्र बलों को उचित चेतावनी देने के पश्चात बल प्रयोग करने या गोली चलाने का अधिकार देता है यदि उन्हें लगता है कि कोई व्यक्ति कानून का उल्लंघन कर रहा है।
  • अधिनियम में आगे प्रावधान है कि यदि “उचित संदेह मौजूद है,” तो सशस्त्र बल बिना वारंट के किसी व्यक्ति को गिरफ्तार भी कर सकते हैं; बिना वारंट के परिसर में प्रवेश कर सकते हैं अथवा तलाशी ले सकते हैं एवं आग्नेयास्त्रों के स्वामित्व पर प्रतिबंध लगा सकते हैं।

 

अफस्पा (AFSPA)की पृष्ठभूमि

  • AFSPA, 1958 दशकों पूर्व पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद के संदर्भ में लागू हुआ था।
  • यह सशस्त्र बलों को “विशेष शक्तियां” प्रदान करता है एवं सेना, वायुसेना तथा केंद्रीय अर्धसैनिक बलों  इत्यादि पर लागू होता है।
  • यह लंबे समय से विवादित बहस रही है कि क्या अफस्पा (AFSPA) के तहत दी गई “विशेष शक्तियां” सशस्त्र बलों को उनके द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई के लिए पूर्ण उन्मुक्ति प्रदान करती हैं।

 

विशेष शक्तियां क्या हैं?

  • बल प्रयोग करने की शक्ति: अशांत क्षेत्र में पांच या अधिक व्यक्तियों के एकत्रित होने या आग्नेयास्त्र एवं हथियार ले जाने इत्यादि पर प्रतिबंध लगाने वाले निषेधाज्ञा लागू होने पर, गोली चलाने सहित, यहां तक ​​कि मृत्यु का कारण बनने की सीमा तक;
  • संरचनाओं को नष्ट करने की शक्ति: छिपने के ठिकाने, प्रशिक्षण शिविर अथवा ऐसे स्थान के रूप में उपयोग किया जाता है जहां से हमले  किए जाते हो अथवा किए जाने की संभावना है, इत्यादि;
  • गिरफ्तार करने की शक्ति: वारंट के बिना तथा उद्देश्य के लिए बल प्रयोग करने हेतु;
  • परिसर में प्रवेश करने एवं तलाशी लेने की शक्ति: बिना वारंट के बंधकों, हथियारों एवं गोला-बारूद  तथा चोरी की संपत्ति इत्यादि की गिरफ्तारी अथवा बरामदगी।

 

ऐसे क्षेत्रों को कौन घोषित/अधिसूचित कर सकता है?

  • केंद्र सरकार या राज्य का राज्यपाल अथवा केंद्र शासित प्रदेश का प्रशासक राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संपूर्ण भाग को अथवा उसके हिस्से को अशांत क्षेत्र घोषित कर सकता है।

 

अफस्पा (AFSPA) के साथ मुद्दे

  • जान से मारने की शक्ति: अधिनियम की धारा 4 ने अधिकारियों को मौत का कारण बनने तक “कोई भी कार्रवाई करने” का अधिकार प्रदान किया है।
  • सशस्त्र बलों द्वारा यौन दुराचार: सशस्त्र बलों की कार्रवाइयों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन का मुद्दा 2012 में गठित आपराधिक कानून (जस्टिस वर्मा समिति के रूप में लोकप्रिय) में संशोधन पर समिति के विचाराधीन था। इसने देखा कि- संघर्ष वाले क्षेत्रों में महिलाओं के लिए कानूनी सुरक्षा की उपेक्षा की गई थी।
  • निरंकुशता: वास्तविकता यह है कि सशस्त्र बलों या अर्धसैनिक बलों के किसी भी अधिकारी के विरुद्ध उनकी ज्यादतियों के लिए उनके विरुद्ध किए गए किसी भी कार्रवाई का कोई साक्ष्य नहीं है।

 

अफस्पा को निरस्त करने की सिफारिशें

  • न्यायमूर्ति बी.पी. जीवन रेड्डी आयोग: 2004 की समिति की अध्यक्षता न्यायमूर्ति बी.पी. जीवन रेड्डी, जिसकी रिपोर्ट को सरकार ने कभी भी आधिकारिक रूप से प्रकट नहीं किया, ने अफस्पा को निरस्त करने की सिफारिश की थी।
  • एआरसी II: प्रशासनिक सुधार आयोग (एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स कमेटी/एआरसी) ने ‘लोक व्यवस्था’ पर अपनी 5वीं रिपोर्ट में भी अफस्पा को निरस्त करने की सिफारिश की थी।

 

अफस्पा (AFSPA) को क्यों निरस्त किया जाना चाहिए?

  • मानवाधिकारों का उल्लंघन: अफस्पा का निरसन न केवल संवैधानिक स्वस्थचित्तता को पुनर्स्थापित करने के लिए, बल्कि नागालैंड में हमारे आचरण के काले इतिहास को स्वीकार करने के एक तरीके के रूप में भी आवश्यक है।
  • व्यक्तिगत गरिमा सुनिश्चित करने की आवश्यकता: यदि भारतीय संविधान की व्यक्तिगत गरिमा की गारंटी को विस्तारित नहीं किया जाता है, तो नागालैंड (एवं अन्य सभी क्षेत्रों में जहां यह कानून लागू होता है) का राजनीतिक समावेश बाधित हो जाएगा।
  • अपवाद की स्थिति नहीं: हम प्रायः “अपवाद की स्थिति” के संदर्भ में अफस्पा का वर्णन करते हैं। किंतु यह सैद्धांतिक शब्द भ्रामक है। 1958 से लगभग निरंतर अस्तित्व में रहे एक कानून को “अपवाद” के रूप में कैसे वर्णित किया जा सकता है।
  • मानवीय सहानुभूति का अभाव: अफस्पा (AFSPA) के मूल में मानवीय सहानुभूति का गहन विघटन है।

 

निष्कर्ष

  • पूर्वोत्तर में स्थायी शांति लाने के लिए, सरकार को कमजोर बनाने वाले शांति समझौतों के जाल से बचने की  आवश्यकता है। जबकि अफ्सपा को वापस लेने का कदम स्वागत योग्य है, इसे धीरे-धीरे समाप्त करने की जरूरत है। इसके लिए जमीनी हालात में बदलाव महत्वपूर्ण होगा। केवल धुएँ के संकेत या ढोल पीटने से काम नहीं चल सकता।

 

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