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ऑटिज्म कॉन्क्लेव: ऑटिज्म अथवा ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी), एक तंत्रिका विकासात्मक विकार (न्यूरो डेवलपमेंटल डिसऑर्डर) है, जो संचार, सामाजिक संपर्क, व्यवहार एवं संवेदी प्रसंस्करण में चुनौतियों द्वारा परिलक्षित होता है। यह एक आजीवन स्थिति है जो व्यक्तियों को अलग-अलग तथा अलग-अलग स्तर पर प्रभावित करती है। ऑटिज्म कॉन्क्लेव यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा एवं यूपीएससी मुख्य परीक्षा (जीएस पेपर 2- स्वास्थ्य सेवा तंत्र के विकास हेतु विभिन्न सरकारी पहल) के लिए भी महत्वपूर्ण है।
‘ऑटिज्म कॉन्क्लेव‘ चर्चा में क्यों है?
हाल ही में, ‘ऑटिज्म कॉन्क्लेव’ में अपने उद्घाटन भाषण के दौरान, विकलांग व्यक्तियों के अधिकारिता विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ एंपावरमेंट ऑफ पर्सन्स विद डिसेबिलिटीज/DEPWD) के सचिव ने तीन आवश्यक कारकों: जागरूकता, पहुंच एवं वहनीयता पर प्रकाश डाला, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि विकलांग (दिव्यांगजन) व्यक्तियों के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सके।
- सचिव ने क्षेत्र में कार्यरत सभी DEPWD विभागों के मध्य अभिसरण के महत्व पर बल दिया।
- इसके अतिरिक्त, उन्होंने दिव्यांगजनों के लिए पहल के विकास में “हमारे बिना हमारे बारे में कुछ भी नहीं” (नथिंग अबाउट अस विदाउट अस) वाक्यांश की प्रासंगिकता पर बल दिया, क्योंकि उन्हें अपनी आवश्यकताओं का प्रत्यक्ष ज्ञान होता है तथा वे मूल्यवान इनपुट प्रदान कर सकते हैं।
‘ऑटिज्म कॉन्क्लेव‘ 2023
राष्ट्रीय सामाजिक रक्षा संस्थान (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल डिफेंस/NISD), द्वारका, नई दिल्ली में ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, बौद्धिक अक्षमता एवं बहु-विकलांगता वाले व्यक्तियों के कल्याण के लिए राष्ट्रीय ट्रस्ट ने ‘ऑटिज्म कॉन्क्लेव’ का आयोजन किया।
- ऑटिज़्म कॉन्क्लेव 2023 में विभिन्न विशेषज्ञों, पेशेवरों, रोल मॉडल तथा ऑटिज़्म से प्रभावित व्यक्तियों के माता-पिता ने भाग लिया।
- कॉन्क्लेव का मुख्य आकर्षण श्री तरुण पॉल मैथ्यू, ऑटिज्म से पीड़ित एक गैर-मौखिक किशोर, टाइपर- कम्युनिकेटर तथा फ्री थिंकर एवं सुश्री रक्षिता शेखर, ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्ति एवं पर्पल एंबेसडर द्वारा दिया गया भाषण था।
- तरुण पॉल ने लिखकर अपने विचार व्यक्त किए जबकि सुश्री रक्षिता शेखर ने बताया कि उन्होंने ऑटिज्म से पीड़ित अनेक व्यक्तियों के विचार एकत्र करके अपना भाषण दिया।
राष्ट्रीय समाज रक्षा संस्थान (NISD)
राष्ट्रीय सामाजिक रक्षा संस्थान (NISD) सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन एक स्वायत्त संगठन है।
- इसकी स्थापना 1962 में अनुसंधान, प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण के माध्यम से सामाजिक रक्षा को प्रोत्साहित करने एवं सुदृढ़ करने के उद्देश्य से की गई थी।
- NISD नशीली दवाओं के दुरुपयोग की रोकथाम, विचलित व्यवहार के प्रति सामाजिक रक्षा, वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण एवं सामाजिक रूप से वंचित समूहों के पुनर्वास जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है।
- संस्थान सामाजिक रक्षा के क्षेत्र में कार्यरत पेशेवरों के ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि करने हेतु विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों, कार्यशालाओं तथा अनुसंधान गतिविधियों का आयोजन करता है।
- NISD भारत में सामाजिक रक्षा एवं कल्याण से संबंधित नीतियों तथा कार्यक्रमों को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
राष्ट्रीय समाज रक्षा संस्थान (NISD) के कार्य
राष्ट्रीय समाज रक्षा संस्थान (NISD) भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संगठन के रूप में अपनी भूमिका में कई महत्वपूर्ण कार्य करता है। NISD द्वारा संपादित किए गए कुछ कार्यों में शामिल हैं:
- अनुसंधान एवं दस्तावेजीकरण: NISD नशीली दवाओं के दुरुपयोग की रोकथाम, विचलित व्यवहार, सामाजिक पुनर्वास एवं वरिष्ठ नागरिक कल्याण से संबंधित मुद्दों सहित सामाजिक रक्षा के विभिन्न पहलुओं पर अनुसंधान अध्ययन तथा प्रासंगिक जानकारी का संचालन करता है।
- प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण: NISD सामाजिक रक्षा के क्षेत्र में कार्यरत पेशेवरों के ज्ञान एवं कौशल को संवर्धित करने हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम, कार्यशालाएं तथा सेमिनार आयोजित करता है। इन प्रशिक्षण पहलों का उद्देश्य सामाजिक रक्षा गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों एवं संगठनों की क्षमता का विकास करना है।
- नीति निर्माण एवं पक्ष पोषण: NISD नीति निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाता है, सामाजिक रक्षा एवं कल्याण से संबंधित मामलों पर सरकार को इनपुट तथा सिफारिशें प्रदान करता है। संस्थान प्रासंगिक हितधारकों के सहयोग से प्रभावी नीतियों एवं कार्यक्रमों के विकास तथा कार्यान्वयन का पक्ष पोषण करता है।
- सहयोग एवं नेटवर्किंग: NISD सामाजिक रक्षा के क्षेत्र में साझेदारी को बढ़ावा देने एवं ज्ञान साझाकरण को प्रोत्साहित करने हेतु विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संगठनों, गैर सरकारी संगठनों तथा शैक्षणिक संस्थानों के साथ सहयोग करता है। संस्थान हितधारकों के साथ जुड़ने एवं नेटवर्क बनाने के लिए सम्मेलनों, कार्यशालाओं तथा अन्य प्लेटफार्मों में सक्रिय रूप से भाग लेता है।
- प्रकाशन एवं प्रसार: NISD सामाजिक रक्षा से संबंधित ज्ञान एवं सूचना का प्रसार करने के लिए अनुसंधान निष्कर्ष, प्रशिक्षण सामग्री तथा अन्य संसाधनों को प्रकाशित करता है। ये प्रकाशन क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवरों, नीति निर्माताओं एवं शोधकर्ताओं के लिए मूल्यवान संदर्भ के रूप में कार्य करते हैं।
ऑटिज्म की स्थिति
ऑटिज्म, जिसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) के रूप में भी जाना जाता है, एक जटिल तंत्रिका विकासात्मक (न्यूरो डेवलपमेंटल) स्थिति है जो किसी व्यक्ति के संचार, सामाजिक संपर्क, व्यवहार एवं संवेदी प्रसंस्करण को दुष्प्रभावित करती है। यह आमतौर पर बाल्यावस्था में प्रकट होता है एवं एक व्यक्ति में आजीवन रहता है। आत्मकेंद्रित लक्षणों की एक विस्तृत श्रृंखला एवं गंभीरता के विभिन्न स्तरों की विशेषता है, यही कारण है कि इसे “स्पेक्ट्रम” विकार कहा जाता है।
आत्मकेंद्रिता (ऑटिज्म) की विशेषताएं
ऑटिज्म की कुछ सामान्य विशेषताओं में शामिल हैं:
- संचार संबंधी कठिनाइयाँ: ऑटिज्म वाले व्यक्तियों को मौखिक एवं गैर-मौखिक संचार में चुनौतियां हो सकती हैं। उनके वाक् क्षमता के विकास में विलंब हो सकता है, भाषा को समझने अथवा उपयोग करने में कठिनाई हो सकती है, अथवा संकेतों एवं चेहरे के भावों के साथ कठिनाई हो सकती है।
- सामाजिक संपर्क संबंधी चुनौतियां: ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्तियों के लिए सामाजिक मेलजोल में शामिल होना तथा संबंध विकसित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। उन्हें सामाजिक संकेतों को समझने, सहानुभूति व्यक्त करने अथवा पारस्परिक बातचीत में शामिल होने में कठिनाई हो सकती है।
- पुनरावर्ती व्यवहार एवं दिनचर्या: ऑटिज़्म से पीड़ित अनेक व्यक्ति पुनरावर्ती (दोहराए जाने वाले) व्यवहार प्रदर्शित करते हैं, जैसे दोहराव वाली गतिविधियों (जैसे, हाथ फड़फड़ाना, हिलाना) या दिनचर्या एवं क्रिया पद्धति का सख्ती से पालन करना। वे विशिष्ट विषयों के साथ गहन रुचि या व्यस्तता भी प्रदर्शित कर सकते हैं।
- संवेदी संवेदनशीलता: ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्तियों में ध्वनि, रोशनी, गठन अथवा स्वाद जैसी संवेदी उत्तेजनाओं के प्रति संवेदनशीलता बढ़ी हुई अथवा घटी हुई हो सकती है। इससे संवेदी अधिभार या कुछ वातावरण या उत्तेजनाओं से बचा जा सकता है।
ऑटिज्म का उपचार
ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्तियों को उनकी चुनौतियों का प्रबंधन करने तथा उनकी क्षमता विकसित करने में सहायता करने हेतु विभिन्न चिकित्सीय दृष्टिकोण, जैसे व्यवहारिक हस्तक्षेप, वाक् एवं भाषा चिकित्सा, व्यावसायिक चिकित्सा तथा शैक्षिक सहायता का उपयोग किया जाता है। समाज में आत्मकेंद्रित व्यक्तियों की समावेशिता, समझ एवं स्वीकृति को प्रोत्साहित करना भी महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ऑटिज्म से पीड़ित प्रत्येक व्यक्ति विशिष्ट है तथा लक्षणों की गंभीरता एवं संयोजन व्यापक रूप से भिन्न हो सकते हैं। आरंभिक निदान, हस्तक्षेप तथा समर्थन ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्तियों के लिए जीवन की गुणवत्ता में अत्यधिक सुधार कर सकते हैं।
ऑटिज्म के बारे में प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न
प्र. ऑटिज्म क्या है?
उत्तर. ऑटिज्म अथवा ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD), एक तंत्रिका विकासात्मक विकार (न्यूरो डेवलपमेंटल डिसऑर्डर) है, जो संचार, सामाजिक संपर्क, व्यवहार एवं संवेदी प्रसंस्करण में चुनौतियों द्वारा परिलक्षित होता है।
प्र. ऑटिज्म किसके कारण होता है?
उत्तर. ऑटिज्म का सटीक कारण अज्ञात है। ऐसा माना जाता है कि यह अनुवांशिक एवं पर्यावरणीय कारकों के संयोजन से उत्पन्न होता है। शोध से ज्ञात होता है कि कुछ जीन ऑटिज्म के विकास के जोखिम को बढ़ा सकते हैं, किंतु अतिरिक्त कारक इसके विकास में योगदान दे सकते हैं।
प्र. ऑटिज्म के आरंभिक लक्षण क्या हैं?
उत्तर. आत्मकेंद्रिता (ऑटिज्म) के आरंभिक लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं, किंतु उनमें प्रायः विलंबित वाक् अथवा वाक् की कमी, सीमित सामाजिक संपर्क, पुनरावृतिक व्यवहार, विशिष्ट वस्तुओं अथवा विषयों पर निर्धारण एवं संवेदी संवेदनाएं शामिल होती हैं। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ऑटिज्म से पीड़ित सभी व्यक्तियों में ये संकेत मौजूद नहीं हो सकते हैं।
प्र. क्या ऑटिज्म ठीक हो सकता है?
उत्तर. वर्तमान में, ऑटिज्म का कोई ज्ञात उपचार नहीं है। हालांकि, प्रारंभिक अंतःक्षेप तथा उचित समर्थन के साथ, आत्मकेंद्रित व्यक्ति कौशल विकसित कर सकते हैं, संचार में सुधार कर सकते हैं एवं अपनी चुनौतियों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन कर सकते हैं।