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बेनामी कानून- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- सामान्य अध्ययन III- धन शोधन एवं इसकी रोकथाम।
बेनामी कानून चर्चा में क्यों है?
- उच्चतम न्यायालय ने 2016 में बेनामी संपत्ति लेनदेन अधिनियम, 1988 में प्रस्तुत किए गए संशोधनों को “असंवैधानिक तथा स्पष्ट रूप से मनमाना” घोषित किया है, जो भूतलक्षी रूप से लागू होते हैं एवं किसी व्यक्ति को तीन वर्ष के लिए जेल भेज सकते हैं, भले ही यह केंद्र को बेनामी लेनदेन के अधीन “किसी भी संपत्ति को जब्त करने का अधिकार प्रदान करता है”।
बेनामी संपत्ति क्या है?
- बेनामी शब्द का हिंदी में अर्थ होता है बिना नाम के।
- अतः, किसी व्यक्ति द्वारा खरीदी गई संपत्ति, जो उसके नाम से नहीं है, बेनामी संपत्ति है जिसमें पति या पत्नी अथवा बच्चे के नाम पर रखी गई संपत्ति शामिल हो सकती है, जिसके लिए राशि का भुगतान आय के ज्ञात स्रोतों से किया जाता है।
- भाई, बहन या अन्य रिश्तेदारों के साथ एक संयुक्त संपत्ति जिसके लिए राशि का भुगतान आय के ज्ञात स्रोतों से किया जाता है, वह भी बेनामी संपत्ति के अंतर्गत आता है।
- ऐसी खरीद में शामिल लेनदेन को बेनामी लेनदेन कहा जाता है।
- बेनामी लेनदेन में निम्नलिखित में से किसी भी प्रकार की संपत्ति खरीदना शामिल है – चल, अचल, मूर्त, अमूर्त, कोई अधिकार या ब्याज अथवा कानूनी दस्तावेज।
बेनामी कानून क्या है?
- बेनामी संपत्तियों के विरुद्ध पहला अधिनियम 1988 में बेनामी संपत्ति लेनदेन निषेध अधिनियम, 1988 के रूप में पारित किया गया था।
- सभी खामियों को दूर करने के लिए सरकार ने जुलाई 2016 में मूल अधिनियम में संशोधन करने का निर्णय लिया।
- अतः, आगे संशोधन के बाद, 1 नवंबर 2016 को बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम, 2016 प्रवर्तन में आया।
- पीबीपीटी अधिनियम बेनामी लेनदेन को परिभाषित करता है, उन्हें प्रतिबंधित करता है एवं आगे प्रावधान करता है कि पीबीपीटी अधिनियम का उल्लंघन कारावास एवं आर्थिक दंड (जुर्माना) के साथ दंडनीय है।
- पीबीपीटी अधिनियम वास्तविक स्वामित्वधारी द्वारा बेनामीदार से बेनामी संपत्ति की वसूली पर रोक लगाता है। ऐसी संपत्तियां सरकार द्वारा मुआवजे के भुगतान के बिना जब्त करने के लिए दायी हैं।
संशोधन
- 2016 के कानून ने 1988 के मूल बेनामी अधिनियम में संशोधन किया, इसे मात्र नौ धाराओं से 72 धाराओं तक विस्तारित किया।
- धारा 3(2) एवं 5 को बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम, 2016 के माध्यम से समाविष्ट किया गया था।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना की अगुवाई वाली एक खंडपीठ (बेंच) ने इस संशोधन के माध्यम से समाविष्ट की गई धारा 3 (2) तथा 5 को असंवैधानिक घोषित किया।
धारा 3(2)
- इसके अनुसार, धारा के अस्तित्व में आने से पहले 28 वर्ष पूर्व दर्ज किए गए बेनामी लेनदेन के लिए किसी व्यक्ति को सलाखों के पीछे भेजा जा सकता है।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश (चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया/CJI) श्री रमना ने माना कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 20(1) का उल्लंघन करता है। अनुच्छेद 20(1) में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को ऐसे अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए, जो “अपराध के रूप में कृत्य के कारित किए जाने के समय” लागू नहीं था।
धारा 5
- इसने कहा कि “किसी भी बेनामी संपत्ति को केंद्र सरकार द्वारा जब्त किया जा सकता है”। न्यायालय ने माना कि इस जब्ती प्रावधान को भूतलक्षी रूप से लागू नहीं किया जा सकता है।
- भारत के मुख्य न्यायाधीशI ने सरकार के इस संस्करण को अस्वीकृत कर दिया कि 2016 के अधिनियम के तहत संपत्ति के समपहरण, अधिग्रहण एवं जब्ती अभियोजन की प्रकृति में नहीं थी तथा इसे अनुच्छेद 20 के तहत प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।
बेनामी लेनदेन पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है
- काले धन को नकदी के रूप में जमा करने के स्थान पर, कर अपवंचक अपने संचित अवैध धन को बेनामी संपत्ति खरीदने में निवेश करते हैं।
- पूरी प्रक्रिया राज्य की वृद्धि एवं विकास में बाधा डालने वाली सरकार के राजस्व सृजन को प्रभावित करती है।
- चूंकि देश में करदाताओं का प्रतिशत अत्यंत कम है, अतः सरकार संसाधनों की कमी के कारण अपनी नीतियों एवं योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू करने में विफल रहती है।
- बेनामी लेनदेन भी धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) के अवैध उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं।
आगे की राह
- बेनामी संपत्तियों के विरुद्ध कठोर कानून बनाने के लिए कानून की सम्यक प्रक्रिया का अक्षरशः पालन किया जाना चाहिए, जो भ्रष्टाचार की जांच के लिए समय की आवश्यकता है।