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भरतनाट्यम शास्त्रीय नृत्य- यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 1: भारतीय इतिहास- भारतीय संस्कृति प्राचीन से आधुनिक काल तक कला रूपों, साहित्य एवं वास्तुकला के मुख्य पहलुओं को सम्मिलित करेगी।
भरतनाट्यम शास्त्रीय नृत्य- प्रसंग
- नृत्य के आठ रूप हैं जिन्हें संगीत नाटक अकादमी द्वारा शास्त्रीय नृत्य के रूप में मान्यता प्रदान की गई है। भरतनाट्यम शास्त्रीय नृत्य उनमें से एक है।
- संगीत नाटक अकादमी अभिनय कला हेतु भारत सरकार द्वारा स्थापित एक राष्ट्रीय स्तर की अकादमी है।
भरतनाट्यम शास्त्रीय नृत्य- मूल
- भरतनाट्यम शास्त्रीय नृत्य के बारे में: भरतनाट्यम शास्त्रीय नृत्यों के सर्वाधिक प्राचीन (लगभग 2000 वर्ष पुराने) रूपों में से एक है, जिसकी उत्पत्ति दक्षिण भारत के मंदिरों, विशेष रूप से तमिलनाडु में हुई थी।
- देवदासी की भूमिका: दक्षिण भारतीय मंदिरों में देवदासी परंपरा ने भरतनाट्यम नृत्य को सदियों तक जीवित रखा, इसलिए इसे दसियाट्टम भी कहा जाता है।
- देवदासी युवा बालिकाएं थीं जिन्हें उनके माता-पिता ने मंदिरों को ‘उपहार’ दिया था एवं जिनका विवाह देवताओं से हुआ था।
- देवदासियों ने मंदिर के प्रांगण में देवताओं को अर्पण के रूप में संगीत एवं नृत्य का प्रदर्शन किया।
- संबद्ध साहित्य: भरतनाट्यम नृत्य की उत्पत्ति का पता ऋषि भरत मुनि के नाट्यशास्त्र से लगाया जा सकता है।
- अभिनय दर्पण: यह नंदिकेश्वर द्वारा ईसा पूर्व चौथी – पांचवीं शताब्दी के आसपास लिखा गया था। अभिनय दर्पण भरतनाट्यम नृत्य में शरीर की गति की तकनीक एवं व्याकरण के अध्ययन में सहायता करने वाला प्रमुख स्रोत है।
- संगम कृतियों जैसे शिलप्पादिकारम एवं मणिमेखलाई में भी भरतनाट्यम नृत्य के अंश हैं।
भरतनाट्यम शास्त्रीय नृत्य- प्रमुख विशेषताएं
- भरतनाट्यम नृत्य तीन महत्वपूर्ण विशेषताओं से निर्मित है- नृत्त (शुद्ध लयबद्ध पहलू), नाट्य (हाथ के हाव भाव एवं चेहरे के भाव जैसे अभिनय के पहलू) एवं नृत्य (लयबद्ध नृत्य एवं भावनाओं की नाटकीय अभिव्यक्ति का मिश्रण)।
- प्रदर्शन: भरतनाट्यम शास्त्रीय नृत्य मूल रूप से केवल मंदिर की महिला नर्तकियों द्वारा संपादित किया जाता था किंतु अब पुरुष एवं महिला दोनों भरतनाट्यम नृत्य का संपादन करते हैं।
- भरतनाट्यम में, समृद्ध श्रृंगार एवं चमकीले आभूषणों का उपयोग किया जाता है, जो कलाकारों के चेहरे के भाव एवं हाव भाव पर जोर देते हैं।
- एकहार्य: भरतनाट्यम को एकहार्य भी कहा जाता है, जहां एक नर्तक एक ही प्रदर्शन में अनेक भूमिकाएं निभाता है।
- हस्तस या मुद्रा: ये भरतनाट्यम नृत्य में प्रयुक्त हावभाव हैं।
- करण: भरतनाट्यम नृत्य में उपयोग की जाने वाली ये मुद्राएं हैं।
- भरतनाट्यम नृत्य के प्रस्तावक: कुछ समकालीन भरतनाट्यम कलाकारों में – मृणालिनी साराभाई, शोभना, यामिनी कृष्णमूर्ति, पद्म सुब्रह्मण्यम, इत्यादि सम्मिलित हैं।
- शास्त्रीय कर्नाटक संगीत का उपयोग: भरतनाट्यम नृत्य में बांसुरी, वायलिन एवं मृदंगम जैसे वाद्य यंत्रों के साथ कर्नाटक संगीत का उपयोग किया जाता है।
भरतनाट्यम शास्त्रीय नृत्य- भरतनाट्यम
- भरतनाट्यम नृत्य व्यवस्थित रूप से निम्नलिखित प्रतिरूप का अनुसरण करता है-
- अलारिप्पू: एक स्तुति गीत है। अलारिप्पू (फूलों से श्रृंगार करना) प्रथम नृत्य पद है। यह एक अमूर्त खंड है जिसमें शुद्ध नृत्य को ध्वनि शब्दांशों के पाठ के साथ जोड़ा जाता है।]
- जातिस्वरम: यह कर्नाटक संगीत के किसी भी राग के संगीत स्वरों की संगत हेतु संपादित किया जाने वाला एक विशुद्ध लघु नृत्य है।
- जातिस्वरम में कोई साहित्य या शब्द नहीं है, किंतु यह अदावस से निर्मित है जो शुद्ध नृत्य अनुक्रम – नृत्त हैं।
- वे भरतनाट्यम नृत्य में प्रशिक्षण का आधार गठित करते हैं।
- अभिनय या नृत्य का माइम पहलू: नृत्य, जहां नर्तक लय एवं माइम के माध्यम से साहित्य की अभिव्यक्ति करता है।
- शब्दम: यह भरतनाट्यम नृत्य प्रदर्शन में जतिस्वरम का अनुसरण करता है। सह-गीत सामान्य तौर पर सर्वोच्च व्यक्ति की आराधना में होता है।
- वर्णम: यह भरतनाट्यम रंगपटल की सूची की सर्वाधिक महत्वपूर्ण रचना है, जिसमें नृत्त एवं नृत्य दोनों सम्मिलित हैं एवं इस शास्त्रीय नृत्य के सार का प्रतीक है।
- यहां नर्तक लय पर नियंत्रण दिखाते हुए दो गति में जटिल सुप्रवणित लयबद्ध प्रतिरूप का प्रदर्शन करता है एवं फिर अभिनय के माध्यम से साहित्य की पंक्तियों को विभिन्न तरीकों से प्रदर्शित करता है।
- यह अभिनय में नर्तक की उत्कृष्टता को प्रदर्शित करता है एवं नृत्य प्रशिक्षक (कोरियोग्राफर) की अंतहीन रचनात्मकता को भी दर्शाता है।
- वर्णम भारतीय नृत्य की अब तक की सर्वाधिक सुंदर रचनाओं में से एक है।