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जैव विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021: प्रासंगिकता
- जीएस 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन।
जैव विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021: प्रसंग
- सरकार ने हाल ही में जैव विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021 को लोकसभा में प्रस्तुत किया है ताकि अनुसंधान, पेटेंट आवेदन प्रक्रिया एवं अनुसंधान परिणामों के हस्तांतरण में तीव्र अनुपथन (ट्रैकिंग) की सुविधा प्राप्त हो सके।
जैव विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021: मुख्य बिंदु
- उक्त अधिनियम जैविक विविधता एवं नागोया प्रोटोकॉल के अभिसमय के अंतर्गत भारत के दायित्वों को पूरा करने का प्रयत्न करता है।
- विधेयक औषधीय पौधों की खेती को प्रोत्साहन देकर वन्य (जंगली) औषधीय पौधों पर दबाव को कम करने का प्रयास करता है।
- विधेयक में आयुष चिकित्सकों को जैविक संसाधनों या ज्ञान तक अभिगम हेतु भयभीत करने वाले जैव विविधता बोर्डों से उन्मुक्ति प्रदान करने का प्रस्ताव करता है।
- यह विधेयक अनुसंधान के अनुपथन में तीव्रता लाता है, पेटेंट आवेदन प्रक्रिया को सरल बनाता है, कुछ अपराधों को अपराध से मुक्त करने की सुविधा भी प्रदान करता है।
- विधेयक राष्ट्रीय हितों से समझौता किए बिना जैविक संसाधनों, अनुसंधान, पेटेंट एवं वाणिज्यिक उपयोग में अधिक विदेशी निवेश लाता है।
- विधेयक विनियमन पर ध्यान केंद्रित करता है कि कौन जैविक संसाधनों एवं ज्ञान का उपयोग कर सकता है तथा किस प्रकार अभिगम का अनुश्रवण किया जाएगा।
- विधेयक ने राज्य जैव विविधता बोर्डों की भूमिका को भी स्पष्ट एवं सुदृढ़ किया है।
- अपराधों का विअपराधीकरण: जैविक संसाधनों तक अभिगम एवं समुदायों के साथ लाभ-साझाकरण से संबंधित कानून का उल्लंघन, जिन्हें वर्तमान में दंडनीय अपराध माना जाता है एवं गैर-जमानती हैं, को सिविल अपराध बनाने का प्रस्ताव दिया गया है।
जैव विविधता अधिनियम 2002 में संशोधन क्यों किया जा रहा है?
- आयुष चिकित्सा से संबंधित व्यक्तियों ने सरकार से सहयोगात्मक अनुसंधान एवं निवेश के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराने हेतु अनुपालन भार को सरल, सुव्यवस्थित एवं कम करने का आग्रह किया।
- उन्होंने पेटेंट आवेदन प्रक्रिया को सरल बनाने, अभिगम (पहुंच) के दायरे को व्यापक बनाने एवं स्थानीय समुदायों के साथ लाभ साझा करने की भी मांग की।
- आयुष कंपनियां लाभ-साझाकरण प्रावधानों में शिथिलता प्रदान करने की मांग कर रही हैं।
- केस स्टडी: उत्तराखंड में स्वामी रामदेव एवं आचार्य बालकृष्ण द्वारा स्थापित दिव्य फार्मेसी। उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड (यूबीबी) ने 2016 में दिव्य फार्मेसी को एक नोटिस भेजा था जिसमें कहा गया था कि कंपनी, बोर्ड को सूचित किए बिना अपने आयुर्वेदिक निरूपण हेतु राज्य से जैविक संसाधनों का उपयोग करने के लिए जैव विविधता अधिनियम का उल्लंघन कर रही है तथा यह अभिगम एवं लाभ-साझाकरण शुल्क का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है। ।
- कंपनी ने भारतीय कंपनियों द्वारा लाभ-साझाकरण निर्धारित करने से संबंधित जैव विविधता बोर्ड की शक्तियों को चुनौती देते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की।
- 2018 मेंन्यायालय ने अपने निर्णय में जैव विविधता बोर्ड की शक्तियों को बरकरार रखा।
- जैव विविधता अधिनियम 2002 के अंतर्गत, राष्ट्रीय एवं राज्य जैव विविधता बोर्डों को जैविक संसाधनों के उपयोग से संबंधित कोई भी निर्णय लेते समय जैव विविधता प्रबंधन समितियों से परामर्श करना आवश्यक है।
जैव विविधता अधिनियम संशोधन विधेयक के संबंध में
- विधेयक का मुख्य फोकस, जैव विविधता के संरक्षण एवं सुरक्षा एवं स्थानीय समुदायों की जानकारी के विरोध के रूप में जैव विविधता में व्यापार को सुविधाजनक बनाना है।
- विधेयक में संशोधन जैविक विविधता अधिनियम, 2002 के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों के नितांत विपरीत प्रतीत होते हैं।