कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म/सीबीएएम): कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म यूरोपीय संघ (यूरोपियन यूनियन/EU) द्वारा प्रस्तावित एक नीति उपकरण है जो कार्बन रिसाव को हल करने तथा निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करने के निमित्त है। इसका उद्देश्य आयातित वस्तुओं पर उनके सन्निहित कार्बन उत्सर्जन के आधार पर कार्बन मूल्य रखना है, जो यूरोपीय संघ के उत्पादकों को यूरोपीय संघ के उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (यूरोपियन यूनियन एमिशंस ट्रेडिंग सिस्टम/EU ETS) के तहत सामना करना पड़ता है। कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा एवं यूपीएससी मुख्य परीक्षा (जीएस पेपर 2- अंतर्राष्ट्रीय संबंध; जीएस पेपर 3- पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी) के लिए भी महत्वपूर्ण है।
हाल ही में, यूरोपीय आयोग के सह-विधि निर्माताओं ने कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) पर हस्ताक्षर किए। कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) उपकरण को यूरोपीय संघ में प्रवेश करने वाले कार्बन-गहन वस्तुओं के उत्पादन से जुड़े कार्बन उत्सर्जन के लिए एक समान लागत स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना गया है। इसका उद्देश्य न केवल यूरोपीय संघ के भीतर बल्कि यूरोपीय संघ के बाहर के देशों में भी स्वच्छ औद्योगिक व्यवहार को प्रोत्साहित करना है।
कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) उस परिदृश्य से संबंधित है जहां यूरोपीय संघ के निर्माता कार्बन-गहन उत्पादन को कम कठोर जलवायु नीतियों वाले देशों में स्थानांतरित करते हैं, जिससे यूरोपीय संघ निर्मित वस्तुओं के आयात के साथ उच्च कार्बन फुटप्रिंट होता है। इसका प्राथमिक उद्देश्य ‘कार्बन रिसाव’ को रोकना है।
इस तंत्र का प्राथमिक उद्देश्य कार्बन रिसाव को रोकना है तथा साथ ही गैर-यूरोपीय संघ के देशों में उत्पादकों द्वारा पर्यावरण के अनुकूल विनिर्माण पद्धतियों को अपनाने को प्रोत्साहित करना है।
प्रारंभ में, कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) उन विशिष्ट वस्तुओं एवं पूर्ववर्तियों पर लागू होगा जिनके पास उच्च कार्बन फुटप्रिंट हैं तथा कार्बन रिसाव का खतरा है। इसमें सीमेंट, लौह एवं इस्पात, एल्यूमीनियम, उर्वरक, विद्युत तथा हाइड्रोजन जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
2019 एवं 2021 के मध्य, कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) से प्रभावित पांच क्षेत्रों में भारत का निर्यात यूरोपीय संघ (EU) को इसके कुल निर्यात का 2% से भी कम का प्रतिनिधित्व करता है। जबकि विनियमन का तत्काल प्रभाव सीमित प्रतीत हो सकता है, इसके दीर्घकालिक परिणाम अनेक कारणों से गंभीर हो सकते हैं।
उद्घाटनात्मक यूरोपीय संघ-भारत व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद के दौरान, एक संयुक्त वक्तव्य में यह घोषणा की गई थी कि दोनों पक्षों ने कार्बन सीमा उपायों पर अपनी भागीदारी बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की है, जो इस विषय पर चर्चा को और गहन करने की इच्छा का संकेत देता है।
प्र. कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) क्या है?
उत्तर. कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिक यूरोपीय संघ (ईयू) द्वारा प्रस्तावित एक नीति उपकरण है जो कार्बन रिसाव को हल करने तथा निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करने के निमित्त है। इसका उद्देश्य आयातित वस्तुओं पर उनके सन्निहित कार्बन उत्सर्जन के आधार पर कार्बन मूल्य रखना है, जो यूरोपीय संघ के उत्पादकों को यूरोपीय संघ के उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ईयू ईटीएस) के तहत सामना करना पड़ता है।
प्र. सीबीएएम क्यों पेश किया जा रहा है?
उत्तर. सीबीएएम को कार्बन रिसाव को रोकने के लिए पेश किया गया है, जो तब होता है जब उद्योग कम कठोर जलवायु नीतियों वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित होते हैं, जिससे वैश्विक उत्सर्जन में वृद्धि होती है। सीबीएएम यह सुनिश्चित करता है कि आयातित वस्तुओं को यूरोपीय संघ-निर्मित वस्तुओं के समतुल्य कार्बन मूल्य का सामना करना पड़े, यह एक समान स्तर के प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करता है तथा विश्व स्तर पर हरित निर्माण पद्धतियों को प्रोत्साहित करता है।
कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिक यूरोपीय संघ (ईयू) द्वारा प्रस्तावित एक नीति उपकरण है जो कार्बन रिसाव को हल करने तथा निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करने के निमित्त है। इसका उद्देश्य आयातित वस्तुओं पर उनके सन्निहित कार्बन उत्सर्जन के आधार पर कार्बन मूल्य रखना है, जो यूरोपीय संघ के उत्पादकों को यूरोपीय संघ के उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ईयू ईटीएस) के तहत सामना करना पड़ता है।
सीबीएएम को कार्बन रिसाव को रोकने के लिए पेश किया गया है, जो तब होता है जब उद्योग कम कठोर जलवायु नीतियों वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित होते हैं, जिससे वैश्विक उत्सर्जन में वृद्धि होती है। सीबीएएम यह सुनिश्चित करता है कि आयातित वस्तुओं को यूरोपीय संघ-निर्मित वस्तुओं के समतुल्य कार्बन मूल्य का सामना करना पड़े, यह एक समान स्तर के प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करता है तथा विश्व स्तर पर हरित निर्माण पद्धतियों को प्रोत्साहित करता है।
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