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कार्बन तटस्थ कृषि पद्धतियां

कार्बन तटस्थ कृषि पद्धतियां: यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता

  • जीएस 3: प्रौद्योगिकी मिशन

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कार्बन तटस्थ कृषि पद्धतियां: संदर्भ

  • केरल कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का शमन करने के लिए कार्बन-तटस्थ कृषि विधियों को  प्रारंभ करने वाला भारत का प्रथम राज्य बनने के लिए तैयार है।

 

कार्बन न्यूट्रल कृषि पद्धतियां केरल: प्रमुख बिंदु

  • राज्य चयनित स्थलों पर में कार्बन-तटस्थ कृषि पद्धतियों को प्रारंभ करेगा, जिसके लिए सरकार ने 2022-23 के बजट में 6 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
  • पहले चरण में 13 फार्मों में कार्बन न्यूट्रल फार्मिंग क्रियान्वित की जाएगी एवं अलुवा स्थित  राज्य बीज फार्म (स्टेट सीड फार्म) को कार्बन न्यूट्रल फार्म में रूपांतरित करने हेतु कदम उठाए जा रहे हैं।
  • दूसरे चरण में सभी 140 विधानसभा क्षेत्रों में आदर्श कार्बन न्यूट्रल फार्म विकसित किए जाएंगे।

 

कार्बन तटस्थ कृषि पद्धतियां: क्यों महत्वपूर्ण है

  • पर्यावरण संतुलन एवं बेहतर स्वास्थ्य  तथा आने वाली पीढ़ियों के सुरक्षित भरण-पोषण के लिए कार्बन- तटस्थ कृषि समय की आवश्यकता बनती जा रही है।
  • केरल वैश्विक तापन एवं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को झेल रहा है, जैसा कि हाल के दिनों में अप्रत्याशित भारी वर्षा  एवं बाढ़ से प्रमाणित हुआ था।
  • ऐसे में राज्य के लिए यह आवश्यक है कि वह नवीन एवं नवोन्मेषी कृषि पद्धतियों को अपनाए।
  • कार्बन न्यूट्रल कृषि कार्बन उत्सर्जन को कम करेगी तथा कार्बन को  मृदा में संग्रहित करने में सहायता करेगी।

 

कार्बन तटस्थ कृषि केरल

  • राज्य सरकार ने राज्य के भीतर सुरक्षित आहार का उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए 2022 में जैविक कृषि मिशन की स्थापना का निर्णय लिया है।
  • मिशन के हिस्से के रूप में, किसानों को कृषि पद्धतियों में प्रशिक्षित किया जाएगा जो कार्बन डाइऑक्साइड जैसी हरितगृह गैसों के उत्सर्जन को कम करते हैं।
  • इसके अतिरिक्त, पारिस्थितिक अभियांत्रिकी, खाद बनाने, मृदा में कार्बनिक कार्बन के स्तर में वृद्धि करने तथा मृदा में कार्बन पृथक्करण पर अधिक बल दिया जाएगा।
  • प्रत्येक पंचायत में कार्बन तटस्थ कृषि पर कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा।

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कार्बन न्यूट्रल कृषि क्या है?

  • कार्बन फार्मिंग कृषि प्रबंधन की एक प्रणाली है जो भूमि को अधिक कार्बन संग्रहित करने में सहायता करती है एवं हरित कृषि गैसों की मात्रा को कम करती है जो इसे वातावरण में मुक्त करते है।
  • उदाहरण के लिए, भारतीय किसान जलमार्गों के किनारे वृक्षों के आवरण सहित वनस्पतियों को संरक्षित एवं पुनर्स्थापित करने के लिए अपनी चरागाह की भूमि का प्रबंधन कर सकते हैं।
  • इसी तरह, किसान वनस्पति में संग्रंथित हरितगृह गैसों की मात्रा को कम करने के लिए खाद या बायोचार  का उपयोग करने जैसी उर्वरक न्यूनीकरण रणनीतियों को भी लागू कर सकते हैं।

 

कार्बन कृषि की आवश्यकता

  • कृषि तथा जलवायु परिवर्तन निकट रूप से संबंधित हैं।
  • कृषि को कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) एवं मीथेन (CH4) के मुख्य स्रोतों में से एक माना जाता है, दो शक्तिशाली ग्रीन हाउस गैसें, यद्यपि, इसमें पौधों, वृक्षों एवं मृदा में कार्बन को पृथक करने तथा संग्रहित करने की एक विशाल क्षमता है।
  • एक अधिक कार्बन तटस्थ कृषि संभव है, यदि कृषि प्रणालियों में कार्बन संतुलन को अनुकूलित करने के लिए उचित कृषि प्रबंधन पद्धतियों को अपनाया जाता है।
  • इनमें पशुधन द्वारा मिथेन उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से पद्धतियां सम्मिलित हो सकती हैं,  ऐसी पद्धतियां जिनके परिणामस्वरूप कृषि आदानों (जैसे ईंधन, कीटनाशक, उर्वरक) का कम उपयोग होता है या ऐसी पद्धतियां जो मृदा में कार्बन को संग्रहित रखने में सहायता करती हैं।

 

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