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केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) डिजिटल रुपया- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- सामान्य अध्ययन III- अर्थव्यवस्था।
केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) चर्चा में क्यों है?
- भारतीय रिजर्व बैंक (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया/आरबीआई) का डिजिटल रुपया – सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) – चालू वित्त वर्ष में थोक व्यवसायों के साथ प्रारंभ होने वाले चरणों में पेश किया जा सकता है।
सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) क्या है?
- सीबीडीसी एक डिजिटल रूप में एक केंद्रीय बैंक द्वारा जारी की गई विधिक मुद्रा है एवं यह एक फिएट मुद्रा के समान है एवं अधिदिष्ट मुद्रा के साथ एकल रूप से विनिमय योग्य है।
- ब्लॉकचेन द्वारा समर्थित वॉलेट का उपयोग करके डिजिटल अधिदिष्ट (फिएट) मुद्रा या सीबीडीसी का लेन-देन किया जा सकता है।
- हालांकि सीबीडीसी की अवधारणा प्रत्यक्ष रुप से बिटकॉइन से प्रेरित थी, यह विकेन्द्रीकृत आभासी मुद्राओं एवं क्रिप्टो परिसंपत्तियों से पृथक है, जो राज्य द्वारा जारी नहीं की जाती हैं एवं ‘विधिक मुद्रा’ स्थिति का अभाव है।
- सीबीडीसी उपयोगकर्ता को घरेलू एवं सीमा पार दोनों तरह के लेनदेन करने में सक्षम बनाता है जिसके लिए किसी तीसरे पक्ष या बैंक की आवश्यकता नहीं होती है।
सीबीडीसी के लाभ
- सीबीडीसी एक उच्च सुरक्षा वाला डिजिटल युक्ति है एवं इसका उपयोग भुगतान, खाते की एक इकाई तथा मूल्य के भंडार के लिए किया जा सकता है।
- कागजी मुद्रा की भांति, जाली मुद्रा को रोकने के लिए प्रत्येक इकाई विशिष्ट रूप से पहचान योग्य है।
- यह भौतिक मुद्रा की भांति ही केंद्रीय बैंक का दायित्व है।
- यह एक डिजिटल भुगतान साधन है जिसे सभी प्रकार की डिजिटल भुगतान प्रणालियों एवं सेवाओं द्वारा संग्रहित, स्थानांतरित तथा प्रसारित किया जा सकता है।
- यह छपाई की तुलना में अधिक कुशल है।
- यह लेनदेन के जोखिम को कम करता है।
- यह कर संग्रह को पारदर्शी बनाता है।
- धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) को रोकता है।
सीबीडीसी किस प्रकार सहायता करेगा?
- सीबीडीसी का प्रारंभ महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करने की क्षमता है, जैसे कि नकदी पर कम निर्भरता, निम्न लेन-देन लागत के कारण उच्च सिक्का ढलाई मुनाफा एवं कम निपटान जोखिम।
- सीबीडीसी की शुरुआत से संभवत: अधिक मजबूत, कुशल, विश्वसनीय, विनियमित एवं विधिक मुद्रा-आधारित भुगतान विकल्प का मार्ग प्रशस्त होगा।
- भारतीय रिजर्व बैंक ने भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 में संशोधन का प्रस्ताव दिया था, जो इसे सीबीडीसी का प्रारंभ करने करने में सक्षम करेगा।
- सरकार उस समय संसद में एक विधेयक प्रस्तुत करने की योजना बना रही थी जो “कुछ अपवादों” के साथ “भारत में सभी निजी क्रिप्टोकरेंसी” को प्रतिबंधित करेगा।
- डिजिटल रूप में मुद्रा को सम्मिलित करने हेतु ‘बैंक नोट’ की परिभाषा के दायरे में वृद्धि करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 में संशोधन हेतु सरकार को अक्टूबर 2021 में भारतीय रिज़र्व बैंक से एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ है।
सीबीडीसी को क्रिप्टोकुरेंसी पर प्राथमिकता- कारण
- क्रिप्टोकरेंसी उपभोक्ताओं के लिए जोखिम उत्पन्न करती है एवं इसकी कोई संप्रभु प्रत्याभूति (सॉवरेन गारंटी) नहीं होती है एवं इसलिए ये विधिक मुद्रा नहीं हैं।
- उनका सट्टा स्वभाव भी उन्हें अत्यधिक अस्थिर बनाता है।
- यदि उपयोगकर्ता अपना निजी खो देता है तो उपयोगकर्ता अपनी क्रिप्टोकरेंसी तक पहुंच खो देता है।
- कुछ मामलों में, इन निजी कुंजियों को तकनीकी सेवा प्रदाताओं (क्रिप्टोक्यूरेंसी एक्सचेंज या वॉलेट) द्वारा संग्रहित किया जाता है, जो मैलवेयर या हैकिंग के लिए प्रवण होते हैं।
- क्रिप्टोकरेंसी आपराधिक गतिविधि एवं मनी लॉन्ड्रिंग के प्रति अधिक संवेदनशील हैं क्योंकि वे अन्य भुगतान विधियों की तुलना में अधिक अनामता प्रदान करते हैं क्योंकि लेन-देन में संलग्न सार्वजनिक कुंजी को प्रत्यक्ष रुप से किसी व्यक्ति से नहीं जोड़ा जा सकता है।
- एक केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में क्रिप्टोकरेंसी की आपूर्ति को विनियमित नहीं कर सकता है जो देश की वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिम उत्पन्न कर सकता है यदि उनका उपयोग व्यापक हो जाता है।
- चूंकि लेन-देन को मान्य करना ऊर्जा-गहन है, अतः देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए इसके प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, 2018 में बिटकॉइन माइनिंग का कुल विद्युत उपयोग स्विट्जरलैंड जैसे मध्यम आकार की अर्थव्यवस्थाओं के समतुल्य था।
भारत में आवश्यकता
- भारत डिजिटल भुगतान में अग्रणी है, किंतु छोटे मूल्य के लेन-देन के लिए नकदी प्रमुख बनी हुई है जिसे कुछ हद तक सीबीडीसी द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
- भारत में मुद्रा-से-जीडीपी अनुपात काफी अधिक है।
- एक आधिकारिक डिजिटल मुद्रा बिना किसी अंतर-बैंक निपटान के वास्तविक समय के भुगतान को सक्षम करते हुए मुद्रा प्रबंधन की लागत को कम करेगी।