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केंद्रीय मीडिया प्रत्यायन दिशा निर्देश 2022

केंद्रीय मीडिया प्रत्यायन दिशा निर्देश 2022: प्रासंगिकता

  • जीएस 2: विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकार की नीतियां और हस्तक्षेप और उनके डिजाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

Indian Polity

केंद्रीय मीडिया प्रत्यायन दिशा निर्देश 2022: संदर्भ

  • हाल ही में, केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने केंद्रीय मीडिया प्रत्यायन दिशा निर्देश-2022 जारी किया है, जिसके अंतर्गत उसने कुछ शर्तें निर्धारित की हैं जिसके तहत पत्रकारों की मान्यता वापस ले ली जाएगी या निलंबित कर दी जाएगी।

 

प्रावधान जिनके अंतर्गत एक पत्रकार की मान्यता वापस ली जा सकती है

  • केंद्रीय मीडिया प्रत्यायन दिशा निर्देश-2022 ने मान्यता वापस लेने की शर्तों को रेखांकित किया है कि यदि कोई पत्रकार इस तरह से कार्य करता है जो निम्नलिखित के लिए हानिकारक हो
    • देश की सुरक्षा, संप्रभुता एवं अखंडता
    • विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध,
    • सार्वजनिक व्यवस्था अथवा गंभीर संज्ञेय अपराध का आरोप लगाया गया है।
  • अधिकांश प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19(2) से लिए गए हैं, जिन्हें प्रेस एवं मीडिया के लिए दिशा-निर्देश के रूप में समझा जाता है।

 

केंद्रीय मीडिया प्रत्यायन दिशा निर्देश 2022: यह अतीत से कैसे भिन्न है?

  • आलोचक कह रहे हैं कि दिशा निर्देश आदेश के स्थान पर प्रतिबंध की प्रकृति में अधिक हैं।
  • मान्यता वापस लेने के लिए शर्तें निर्धारित करने में, ये दिशा निर्देश दिशा-निर्देशों के स्थान पर सेंसरशिप नियमों के रूप में अधिक कार्य करते हैं।
  • विगत दिशा निर्देश प्रकृति में अधिक सामान्य थे तथा इसमें उल्लेख किया गया था कि यदि दुरुपयोग पाया जाता है तो मान्यता वापस ले ली जाएगी।
  • नए दिशानिर्देशों में, हालांकि, 10 प्रावधान उल्लेखित हैं जिसके तहत एक पत्रकार को मान्यता वापस ली जा सकती है।

 

केंद्रीय मीडिया प्रत्यायन दिशा निर्देश 2022: कार्यान्वयन

  • दिशा-निर्देशों के अनुसार, भारत सरकार, प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) के प्रधान महानिदेशक की अध्यक्षता में केंद्रीय मीडिया प्रत्यायन समिति नामक एक समिति का गठन करेगी।
  • इस समिति में मान्यता वापस लेने से संबंधित दिशा-निर्देशों की व्याख्या करने हेतु सरकार द्वारा नामित 25 सदस्य शामिल होंगे।

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केंद्रीय मीडिया प्रत्यायन दिशा निर्देश 2022: दिशानिर्देशों की आलोचना

  • प्रेस स्वतंत्रता में बिगड़ती रैंकिंग: 2020 में, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2020 में 180 देशों में भारत को 142 वें स्थान पर रखा।
  • स्वतंत्र मीडिया के संवैधानिक अधिकार के विरुद्ध: दिशा निर्देश एक स्वतंत्र मीडिया के कार्यकरण के मार्ग में आने का खतरा उत्पन्न करते हैं।
    • यद्यपि संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है, संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे को आम तौर पर देश में एक स्वतंत्र प्रेस के लिए खाका निर्धारित करने के रूप में व्याख्या की गई है, जिसे न्यायालयों के पश्चातवर्ती निर्णयों ने सुनिश्चित किया है।
  • रिपोर्ट को अमान्य बनाने का जोखिम: रिपोर्ट, विशेष रूप से एक खोजी प्रकृति की, सरकार की आलोचना को अब देश के हितों के लिए प्रतिकूल माना जा सकता है एवं इसे एक पत्रकार को मान्यता देने से इनकार करते समय कि क्या मानहानिकारक है, केंद्रीय मीडिया प्रत्यायन समिति की दिशा-निर्देशों का अर्थ निकालने एवं निर्धारित करने की व्याख्या तथा विवेक पर छोड़ दिया जाएगा।

 

भारत में मीडिया विनियमन: एक पत्रकार का प्रत्यायन

  • पूर्णकालिक कार्यरत पत्रकार के रूप में न्यूनतम पांच वर्ष से पत्रकार गृह मंत्रालय द्वारा पूर्ण रूप से जांच किए जाने के  पश्चात, पीआईबी  से मान्यता प्राप्त करने हेतु आवेदन कर सकता है।
  • किसी ऐसे समाचार पत्र के साथ कार्य करने वाला कोई भी पत्रकार जिसका दैनिक प्रकाशन 10,000 है;  न्यूनतम 100 सब्सक्राइबर्स वाली न्यूज एजेंसियां तथा 10 लाख विशिष्ट आगंतुकों वाले डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म आवेदन कर सकते हैं।

 

मान्यता का महत्व

  • प्रत्यायन सरकारी कार्यालयों एवं भारत सरकार द्वारा आयोजित विशेष कार्यक्रमों तथा समारोहों तक अभिगम में  सहायता करता है।
  • गृह एवं रक्षा तथा वित्त जैसे कुछ मंत्रालय केवल मान्यता प्राप्त पत्रकारों को ही पहुंच की अनुमति प्रदान करते हैं।

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मीडिया के विनियमन हेतु किए गए विगत प्रयास

  • 1988 में मानहानि विधेयक निजी समाचार चैनलों के आगमन से पूर्व प्रेस को नियंत्रित करने का सबसे कुख्यात प्रस्ताव था। एक एकीकृत मीडिया तथा जनता के कई वर्गों के दबाव में, विधेयक को वापस ले लिया गया था।
  • केरल एवं राजस्थान जैसी राज्य सरकारें प्रस्तावित नियमों के अपने स्वयं के संस्करण लेकर आई थीं जिन्हें दबाव एवं आलोचना के कारण वापस ले लिया गया था।
  • 2018 में, पत्र सूचना कार्यालय (प्रेस इनफॉरमेशन ब्यूरो/पीआईबी) (सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत) ने एक फेक न्यूज दिशा निर्देश प्रस्तावित किया था, जिसके तहत पत्रकार को छद्म सामग्री (फेक कंटेंट) फैलाने वाले के रूप में देखे जाने पर मान्यता रद्द की जा सकती है। दबाव में आदेश वापस ले लिया गया।
  • हाल ही में सरकार ने डिजिटल समाचार सामग्री की जांच के लिए आईटी अधिनियम के अंतर्गत नियमों की एक श्रृंखला का प्रस्ताव रखा है।

 

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