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चीन-ताइवान के मध्य संघर्ष- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- सामान्य अध्ययन II-भारत के हितों, भारतीय प्रवासियों पर विकसित एवं विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव।
चीन-ताइवान संघर्ष चर्चा में क्यों है?
- चीन ने अमेरिकी संसद कांग्रेस की अध्यक्ष (हाउस स्पीकर) नैंसी पेलोसी को परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है यदि वह ताइवान दौरे पर आती हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- ताइवान, ताइवान जलडमरूमध्य में एक द्वीप क्षेत्र है, जो मुख्य भूमि चीन के तट पर स्थित है।
- 1949 में गृहयुद्ध के मध्य अलग हुए, चीन ताइवान को अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ( यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल/यूएनएससी) में अपनी स्थायी सीट बनाए रखने के लिए आरओसी द्वारा संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता जारी रखी गई थी।
- शीत युद्ध में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) ने सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक (यूएसएसआर) संघ एवं आरओसी को अमेरिका के साथ संबद्ध किया जिसने चीन-ताइवान संबंधों को और अधिक तनावपूर्ण बना दिया।
- 1970 के दशक में अमेरिका एवं चीन के मध्य सुलह के पश्चात 1972 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति पीआरसी गए।
- संयुक्त राष्ट्र संघ में आधिकारिक प्रतिनिधि के रूप में पीआरसी द्वारा आरओसी को विस्थापित कर दिया गया था एवं “एक-चीन सिद्धांत” अस्तित्व में आया था।
- यह आगे आवश्यक होने पर ताइवान को नियंत्रित करने हेतु सेना का उपयोग करने के लिए अपना रुख स्पष्ट करता है।
- 1980 के दशक में, चीन ने “एक देश, दो प्रणाली” के रूप में जाना जाने वाला एक सूत्र सामने रखा, जिसके तहत ताइवान को महत्वपूर्ण स्वायत्तता प्रदान की जाएगी यदि वह दोनों पक्षों के मध्य संबंधों को सुधारने के लिए चीनी पुनरेकीकरण को स्वीकार करता है।
- हालांकि ताइवान ने इस फार्मूले को खारिज कर दिया किंतु चीन में यात्राओं एवं निवेश से संबंधित नियमों में ढील दी।
- ताइवान की रिपब्लिक ऑफ चाइना (आरओसी) सरकार को वैध मानने से बीजिंग की अस्वीकृति के मध्य, जिसने सरकार से सरकार के मध्य संपर्क को रोका, अधिकारियों के बीच अनौपचारिक वार्ता हुई किंतु वह भी सीमित थी।
- जैसे ही चीन ने हांगकांग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू किया, विश्व के नेताओं ने इसे इस क्षेत्र में चीन द्वारा अधिक मुखर होने के चीनी प्रयास के रूप में लिया।
यूएस-चीन-ताइवान- बदलते परिदृश्य
- शंघाई कम्युनिक (1972), नॉर्मलाइजेशन कम्युनिक (1979) एवं 1982 कम्युनिक ताइवान पर अमेरिका-चीन आपसी समझ के बारे में बात करते हैं।
- 1979 में ताइवान को, चीन का एक हिस्सा मानते हुए अमेरिका ने ‘एक चीन नीति’ को स्वीकार किया, हालांकि अमेरिका ने ताइवान के साथ अनौपचारिक संबंध बनाए रखना प्रारंभ कर दिया।
- 1982 में, चीन ने ताइवान संबंध अधिनियम (ताइवान रिलेशंस एक्ट/टीआरए), 1979 के प्रावधानों के अनुसार अमेरिका द्वारा ताइवान को हथियारों की निरंतर आपूर्ति पर अपनी चिंता व्यक्त की।
ताइवान पर प्रभाव
- डेमोक्रेटिक पीपुल्स पार्टी चीन से दूर अपने आर्थिक संबंधों का विस्तार करना चाहती है।
- ताइवान जापान एवं दक्षिण चीन सागर के मध्य प्रथम द्वीप श्रृंखला में केंद्रीय रूप से अवस्थित है एवं इसका उच्च भू-राजनीतिक महत्व है।
- इस क्षेत्र में अमेरिका की विस्तृत सैन्य चौकियां चीन के लिए एक महत्वपूर्ण सफलता है यदि वह ताइवान का नियंत्रण अपने हाथ में ले लेता है जिससे शांतिपूर्ण पुनरेकीकरण की संभावना अत्यंत विकट हो जाती है।
ताइवान एवं विश्व
- चीन गणराज्य (रिपब्लिक ऑफ चाइना/आरओसी), ताइवान के 15 देशों के साथ राजनयिक संबंध हैं एवं ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूरोपीय संघ के देश, जापान, न्यूजीलैंड इत्यादि देशों के साथ प्रभावशाली संबंध हैं।
- ताइवान की 38 अंतर सरकारी संगठनों एवं उनके सहायक निकायों में पूर्ण सदस्यता है, जिसमें विश्व व्यापार संगठन, एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग, एशियाई विकास बैंक एवं सेंट्रल अमेरिकन बैंक फॉर इकोनॉमिक सम्मिलित हैं।
- वन चाइना पॉलिसी के अनुसार, मुख्य भूमि चीन के साथ राजनयिक संबंध तलाशने के लिए उन्हें ताइवान के साथ आधिकारिक संबंध तोड़ना होगा तथा ताइवान के राजनयिक संबंधों ने इस नीति को गंभीरता से चुनौती दी है।
चीन का प्रतिरोध
- ऑस्ट्रेलिया, यूके एवं यूएस (AUKUS) के मध्य हिंद-प्रशांत (इंडो-पैसिफिक) के लिए एक नवीन त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी
- मालाबार अभ्यास (अमेरिका, जापान, भारत एवं ऑस्ट्रेलिया) भी आर्थिक तथा सैन्य रूप से शक्तिशाली चीन द्वारा उत्पन्न बड़े पैमाने पर रणनीतिक असंतुलन का प्रतिरोध करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
- युद्धपोत थियोडोर रूजवेल्ट ने समुद्र की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने एवं समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने वाली साझेदारी निर्मित करने हेतु दक्षिण चीन सागर में प्रवेश किया है।
ताइवान पर भारत का रुख
- भारत एक चीन नीति को मान्यता देता है एवं ताइवान तथा तिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में स्वीकार करता है।
- कूटनीतिक रूप से भारत को अपेक्षा है कि चीन एक भारत नीति पर विश्वास करेगा।
- भारत एवं ताइवान के मध्य औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, किंतु 1995 के पश्चात से, दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की राजधानियों में प्रतिनिधि कार्यालय बनाए रखा है जो वास्तविक दूतावासों के रूप में कार्य करते हैं।
क्या किया जा सकता है?
- विश्व शक्तियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ताइवान को बलपूर्वक अधिकार करने के चीनी प्रयास को कुशलता से निपटाया जाना चाहिए।
- भारत को चीन के साथ भारत की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए बढ़ते आर्थिक संबंधों तथा ताइवान के लिए लोकप्रिय समर्थन पर आधारित होना जारी रखना चाहिए।