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शहरों द्वारा जलवायु कार्रवाई को अपनाना

शहर एवं जलवायु कार्रवाई- यूपीएससी परीक्षा  हेतु प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 2:सरकार की नीतियां एवं अंतःक्षेप विभिन्न क्षेत्रों में विकास तथा उनकी अभिकल्पना एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।
  • जीएस पेपर 3: पर्यावरण- संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं अवक्रमण

वैश्विक तापन एवं स्थायी तुषार

शहर एवं जलवायु कार्रवाई- संदर्भ

  • हाल ही में, महाराष्ट्र सरकार ने घोषणा की कि राज्य भर के 43 शहर संयुक्त राष्ट्र समर्थित ‘रेस टू जीरो’ वैश्विक अभियान में सम्मिलित होंगे।
    • ‘रेस टू जीरो’ अभियान का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन एवं सतत विकास के लक्ष्यों को पूर्ण करते हुए रोजगार सृजित करना है।

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शहर एवं जलवायु कार्रवाई- भारतीय शहरों के समक्ष उपस्थित होने वाले वाले मुद्दे

  • विविध जोखिम: शहरों को प्रायः अनेक मोर्चों पर जोखिमों, जैसे बाढ़, सूखा, समुद्र के स्तर में वृद्धि का सामना करना पड़ता है।
  • भारतीय शहरों द्वारा अपर्याप्त नीतिगत कार्रवाइयां: भारतीय शहरों द्वारा जलवायु-प्रतिस्कंदी विकास पर नीतिगत बेहद अपर्याप्त कार्रवाई।
  • क्षेत्रीय एवं पृथक्भूत नीति दृष्टिकोण: दस लाख से अधिक जनसंख्या वाले 53 भारतीय शहरों में किए गए एक अध्ययन के अनुसार –
    • इनमें से लगभग आधे शहर जलवायु योजनाओं की रिपोर्ट करते हैं, अर्थात, उनके पास जलवायु प्रतिस्कंदी योजना या परियोजनाओं का एक समुच्चय है।
    • इनमें से 18 शहर कार्यान्वयन के उद्देश्य से आगे बढ़ चुके हैं।
    • किंतु इनमें से बहुत से अंतःक्षेप विशेष रूप से अलग-अलग जोखिमों पर ध्यान केंद्रित करते हुए क्षेत्रीय परियोजनाओं के माध्यम से कार्यान्वित किए जा रहे हैं।
    • उदाहरण के लिए, भारत की लंबी तट रेखा एवं अत्यधिक संवेदनशील तटीय शहरों तथा आधारिक अवसंरचना के बावजूद तटीय बाढ़, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि एवं चक्रवातों पर कम चर्चा की जाती है।
    • यह ध्यान इस बात को नजरअंदाज करने की ओर प्रवृत्त होता है कि कितने जोखिम एक-दूसरे को अभिसरित करते हैं एवं एक-दूसरे को सुदृढ़ करते हैं- उदाहरण के लिए, चेन्नई में बाढ़ एवं जल के अभाव का मौसमी चक्र।

पूर्वोत्तर भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

शहर एवं जलवायु कार्रवाई- मॉडल भारतीय शहर

  • अहमदाबाद का हीट एक्शन प्लान (एचएपी): इसे 2010 से क्रियान्वित किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप गर्मी से मृत्यु दर में कमी आई है। इसे देश भर के 17 शहरों में भी बढ़ाया गया है।
    • भागीदारी: इसमें प्रमुख सरकारी विभाग, गैर सरकारी संगठन, शोधकर्ता एवं नागरिक सम्मिलित हैं।
    • फोकस क्षेत्र: उच्च जोखिम वाले सामाजिक समूहों जैसे मजदूरी करने वाले मजदूरों, कम आय वाले समूहों, महिलाओं तथा बुजुर्गों के प्रति केंद्रित है।
    • समग्र नीति दृष्टिकोण: यह ढांचागत अंतःक्षेपों (उदाहरण के लिए, छतों को सफेद रंग से रंगना) एवं व्यवहार संबंधी पहलुओं (गर्मी के प्रबंधन पर जन जागरूकता का निर्माण) को जोड़ती है।
  • प्रकृति आधारित समाधान: तटीय तमिलनाडु में मैंग्रोव पुनःस्थापन एवं बेंगलुरु में शहरी आर्द्रभूमि प्रबंधन जैसे राज्यों द्वारा किए गए समाधान।
    • उदाहरण के लिए, शहरी उद्यान शीतलन लाभ प्रदान करते हैं एवं आर्द्रभूमि शहरी बाढ़ को नियंत्रित करते हैं।

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शहर एवं जलवायु कार्रवाई- संबद्ध चुनौतियां

  • शहर के पैमाने पर अपर्याप्त वित्त एवं राजनीतिक इच्छाशक्ति: इन्हें प्रायः धारणीय भारतीय शहरों के विकास में प्रमुख बाधाओं के रूप में उद्धृत किया जाता है।
  • अपर्याप्त संस्थागत क्षमता: मौजूदा सरकारी विभागों में कार्य करने के तरीकों को नया रूप प्रदान करना।
    • इसके लिए जोखिमों को पार्थक्य में देखने से दूर जाना एवं बहुविध, प्रतिच्छेदन जोखिमों की योजना बनाना शामिल होगा।
  • जलवायु परिवर्तन और समावेशी विकास की दोहरी चुनौतियां: यह शहरों या शहरों जैसे गांवों के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक है क्योंकि भारत तीव्र गति से शहरीकृत हो रहा है।

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शहर एवं जलवायु कार्रवाई- आगे की राह

  • दीर्घावधि की योजना बनाना: इसके लिए प्रत्येक विभाग के साथ-साथ विभागों में संचार माध्यमों में प्रतिस्कंदी योजनाकारों की आवश्यकता है ताकि ऊर्ध्वाधर एवं क्षैतिज ज्ञान साझा किया जा सके।
  • परिवर्तित होते व्यवहार एवं जीवन शैली पर ध्यान केंद्रित करना: यह सर्वाधिक कठिन है एवं साथ ही उपेक्षित चुनौती है क्योंकि हम जिन मानदंडों का पालन करते हैं, जिन मूल्यों का हम पालन करते हैं,  तथा जिन प्रणालियों से हम परिचित हैं, वे परिवर्तन को बाधित करते हैं।
  • बॉटम-अप धारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देना: यह एक मंद किंतु स्थिर व्यवहार परिवर्तन दृष्टिकोण है।
    • उदाहरण के लिए, शहरी कृषि जहां नागरिक स्थानीय एवं व्यक्तिगत स्तर पर धारणीयता की व्याख्या कर रहे हैं।
    • इसका अर्थ छतों पर अपना भोजन उगाना एवं साथ ही साथ स्थानीय जैव विविधता का संवर्धन करना हो सकता है;
    • जैविक अपशिष्ट से खाद निर्मित करना एवं भराव क्षेत्र (लैंडफिल) दबाव को कम करना;
    • एक पड़ोसी के साथ कृषि उत्पादों को साझा करना, समुदायों को समीप लाना एवं खाद्य उत्पादन के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना।

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