Table of Contents
नागरिकता संशोधन अधिनियम- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- सामान्य अध्ययन II- सरकारी नीतियां एवं अंतः क्षेप।
नागरिकता संशोधन अधिनियम चर्चा में क्यों है?
- भारत के मुख्य न्यायाधीश (चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया/CJI) यू. यू. ललित के नेतृत्व में सर्वोच्च न्यायालय की तीन-न्यायाधीशों की खंडपीठ विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) अधिनियम की चुनौती पर सुनवाई करेगी।
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट/CAA), 2019
- इस अधिनियम ने अफगानिस्तान, बांग्लादेश एवं पाकिस्तान से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई अवैध प्रवासियों को भारत की नागरिकता के लिए पात्र बनाने हेतु नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन करने की मांग की।
- अन्य शब्दों में, इसका अभिप्राय भारत के तीन मुस्लिम-बहुल पड़ोसियों के गैर-मुस्लिम प्रवासियों के लिए भारत का नागरिक बनना सरल बनाना है।
- नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत, देशीयकरण द्वारा नागरिकता के लिए आवश्यकताओं में से एक यह है कि आवेदक विगत 12 माह के दौरान एवं साथ ही विगत 14 वर्षों में से 11 वर्षों के दौरान भारत में निवास कर रहा हो।
- संशोधन इन छह धर्मों एवं उपरोक्त तीन देशों के आवेदकों के लिए एक विशिष्ट शर्त के रूप में दूसरी अनिवार्यता को 11 वर्ष से 6 वर्ष तक शिथिल करता है।
- यह छह समुदायों के सदस्यों को विदेशी अधिनियम, 1946 एवं पासपोर्ट अधिनियम, 1920 के तहत किसी भी आपराधिक मामले से उन्मुक्ति प्रदान करता है यदि उन्होंने 31 दिसंबर, 2014 से पूर्व भारत में प्रवेश किया हो।
अवैध प्रवासियों को परिभाषित करना
- अवैध प्रवासी वर्तमान कानूनों के अनुसार भारतीय नागरिक नहीं बन सकते।
- सीएए के तहत, एक अवैध प्रवासी एक विदेशी है जो: (i) पासपोर्ट एवं वीजा जैसे वैध यात्रा दस्तावेजों के बिना देश में प्रवेश करता है, अथवा (ii) वैध दस्तावेजों के साथ प्रवेश करता है, किंतु अनुमत समय अवधि से परे यहां रुकता है।
- अवैध प्रवासियों को विदेशी अधिनियम, 1946 एवं पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत जेल में डाला जा सकता है अथवा निर्वासित किया जा सकता है।
अपवाद
- विधेयक में प्रावधान है कि चार शर्तों को पूरा करने वाले अवैध प्रवासियों को अधिनियम के तहत अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा। वे शर्तें हैं:
- वे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी अथवा ईसाई हैं।
- वे अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से हैं।
- उन्होंने 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पूर्व भारत में प्रवेश किया हो।
- वे संविधान की छठी अनुसूची में सम्मिलित असम, मेघालय, मिजोरम या त्रिपुरा के कतिपय निश्चित जनजातीय (आदिवासी) क्षेत्रों अथवा “इनर लाइन” परमिट के तहत क्षेत्रों अर्थात अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम एवं नागालैंड में नहीं हैं। ।
अधिनियम के साथ विवाद
- मूल देश: अधिनियम केवल अफगानिस्तान, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश को सम्मिलित करने हेतु प्रवासियों को उनके मूल देश के आधार पर वर्गीकृत करता है।
- अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों की अनदेखी: यह स्पष्ट नहीं है कि मात्र छह निर्दिष्ट धार्मिक अल्पसंख्यकों के अवैध प्रवासियों को अधिनियम में क्यों सम्मिलित किया गया है।
- उद्देश्य की अवहेलना: भारत म्यांमार के साथ एक सीमा साझा करता है, जिसका एक धार्मिक अल्पसंख्यक, रोहिंग्या मुसलमानों के उत्पीड़न का इतिहास रहा है।
- प्रवेश की तिथि: यह भी स्पष्ट नहीं है कि भारत में प्रवेश करने की तिथि के आधार पर प्रवासियों के साथ पृथक रूप से व्यवहार क्यों किया जाता है, अर्थात क्या उन्होंने 31 दिसंबर, 2014 से पूर्व अथवा पश्चात में भारत में प्रवेश किया था।
- धर्मनिरपेक्षता की भावना के विरुद्ध: इसके अतिरिक्त, धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करना संविधान की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति के विरुद्ध माना जाता है जिसे मूल संरचना के हिस्से के रूप में मान्यता दी गई है जिसे संसद द्वारा बदला नहीं जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती
- चुनौती मुख्य रूप से इस आधार पर आश्रित है कि कानून संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है जो गारंटी देता है कि भारत के राज्य क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता के अधिकार या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा।
सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 14 के आधार पर कानून की जांच करने के लिए दो-आयामी परीक्षण विकसित किया है।
- सर्वप्रथम, व्यक्तियों के समूहों के मध्य किसी भी विभेद को “बोधगम्य वैशिष्ट्य” (इंटेलिजिबल डिफरेंशिया) पर स्थापित किया जाना चाहिए।
- दूसरा, उस वैशिष्ट्य का अधिनियम द्वारा प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्य के लिए एक तर्कसंगत संबंध होना चाहिए।
- सीधे शब्दों में कहें, तो कानून के लिए अनुच्छेद 14 के तहत शर्तों को पूरा करने के लिए, उसे पहले उन विषयों का “युक्तियुक्त वर्ग” निर्मित करना होगा जो कानून के तहत संचालित होना चाहते हैं।
- भले ही वर्गीकरण युक्तियुक्त हो, उस श्रेणी में आने वाले किसी भी व्यक्ति के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए।
आगे क्या?
- सीएए चुनौती को सूचीबद्ध करने से संकेत मिलता है कि सुनवाई तेज हो जाएगी।
- न्यायालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होने से पूर्व सभी दलीलें, लिखित प्रस्तुतियाँ दायर की जाए एवं विपरीत पक्ष को तामील की जाएँ।
- कुछ याचिकाकर्ता एक बड़ी संविधान पीठ को इस वाद को संदर्भित किए जाने की मांग भी कर सकते हैं।
- यद्यपि, चुनौती एक क़ानून के लिए है एवं इसमें सीधे संविधान की व्याख्या सम्मिलित नहीं है।
- न्यायालय द्वारा अंतिम सुनवाई के लिए समय आवंटित करने से पूर्व इन मुद्दों पर भी बहस होने की संभावना है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम: आगे की राह
- भारत एक आधारिक संरचना वाला संवैधानिक लोकतंत्र है जो समस्त भारतीयों के लिए एक सुरक्षित एवं विशाल घर का आश्वासन प्रदान करता है।
- धार्मिक आधार पर विभाजित होने के कारण, भारत को अपने पड़ोस में धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए एक संतुलनकारी कार्य करना होगा।
- इन अल्पसंख्यकों पर लगातार उत्पीड़न एवं बर्बरता का खतरा मंडरा रहा है।
- भारत को पड़ोस में अभियोजित व्यक्तियों की रक्षा के लिए अपनी सभ्यता के कर्तव्यों को संतुलित करने की आवश्यकता है।