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आईपीसीसी की छठी आकलन रिपोर्ट: प्रासंगिकता
- जीएस 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन।
जलवायु परिवर्तन 2022: संदर्भ
- आईपीसीसी ने हाल ही में छठी आकलन रिपोर्ट (एआर 6 डब्ल्यूजीआईआई) के दूसरे भाग की रिपोर्ट की है जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, जोखिमों एवं संवेदनशीलताओं पर ध्यान केंद्रित करती है तथा अनुकूलन के विकल्पों की खोज करती है।
आईपीसीसी: छठी मूल्यांकन रिपोर्ट
- रिपोर्ट का प्रथम भाग अगस्त 2021 में जारी किया गया था। इसमें जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक आधार के बारे में चर्चा की गई थी।
- आईपीसीसी अपनी रिपोर्ट का तीसरा एवं अंतिम भाग अप्रैल 2022 में जारी करेगी।
- IPCC की प्रथम आकलन रिपोर्ट 1990 में प्रकाशित हुई थी।
- रिपोर्टें तब 1995, 2001, 2007 और 2015 में जारी की गई थी, जो जलवायु परिवर्तन के लिए वैश्विक प्रतिक्रिया का आधार निर्मित करती हैं।
एआर 6 डब्ल्यूजीआईआई: प्रमुख निष्कर्ष
स्वास्थ्य पर प्रभाव
- आईपीसीसी ने प्रथम बार जलवायु परिवर्तन के क्षेत्रीय एवं खंडीय प्रभावों तथा स्वास्थ्य प्रभावों को शामिल किया है।
- उदाहरण के लिए, रिपोर्ट में कहा गया है कि मुंबई समुद्र के स्तर में वृद्धि से प्रभावित होगा, जबकि कोलकाता में तूफान का खतरा है। यह एक स्पष्ट दृष्टिकोण प्रदान करता है कि इन खतरों के संबंध में क्या करने की आवश्यकता है एवं विगत रिपोर्टों में ऐसा नहीं किया गया था।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन एवं संबंधित चरम जलवायविक घटनाएं अल्पकालिक से दीर्घकालिक अवधि तक खराब स्वास्थ्य और समय पूर्व होने वाली मौतों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि करेंगी।
- रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि डेंगू तथा मलेरिया जैसी वेक्टर जनित बीमारियां बढ़ेंगी।
- इसके अतिरिक्त, चिंता एवं तनाव सहित मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियां, सभी मूल्यांकन किए गए क्षेत्रों में, विशेष रूप से बच्चों, किशोरों, बुजुर्गों तथा अंतर्निहित स्वास्थ्य स्थितियों वाले लोगों के लिए वैश्विक तापन के अंतर्गत बढ़ने की संभावना है।
खाद्य प्रणाली पर प्रभाव
- रिपोर्ट में इस तथ्य के प्रति सचेत किया गया है कि एशिया में कृषि एवं खाद्य प्रणालियों के लिए जलवायु संबंधी जोखिम में परिवर्तित होती जलवायु के साथ और वृद्धि होगी।
- जहां तक भारत का संबंध है, चावल के उत्पादन में 10 से 30 प्रतिशत की कमी देखी जा सकती है, जबकि मक्के के उत्पादन में 25 से 70 प्रतिशत की कमी देखी जा सकती है, यह मानते हुए कि तापमान के परिसर में 1 डिग्री सेल्सियस से 4 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि हो जाती है।
जलवायु परिवर्तन एवं खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि
वेट-बल्ब तापमान
- रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि यदि उत्सर्जन में वृद्धि जारी रहती है, तो भारत के अधिकांश हिस्सों में आर्द्र बल्व का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस की असहनीय सीमा तक पहुंच जाएगा या उससे अधिक हो जाएगा, देश के अधिकांश हिस्से में 31 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक के आर्द्र बल्व तापमान तक पहुंच जाएगा।
- वेट-बल्ब तापमान एक माप है जो ऊष्मा एवं आर्द्रता को जोड़ता है।
- 31 डिग्री सेल्सियस का एक आर्द्र बल्व तापमान मनुष्यों के लिए अत्यंत खतरनाक है, जबकि 35 डिग्री सेल्सियस मान का तापमान छाया में आराम करने वाले हष्ट पुष्ट शरीर एवं स्वस्थ वयस्कों के लिए भी लगभग छह घंटे से अधिक समय तक जीवित रहने योग्य नहीं है।
- वर्तमान में, भारत में वेट-बल्ब का तापमान शायद ही कभी 31 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है, अधिकांश देशों में 25-30 डिग्री सेल्सियस का अधिकतम वेट-बल्ब तापमान अनुभव किया जाता है।
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी)
जल के अभाव पर प्रभाव
- रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि जलवायविक एवं गैर-जलवायविक दोनों कारकों जैसे सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों ने एशिया के सभी उप-क्षेत्रों में जल आपूर्ति तथा मांग दोनों में जल के अभाव की स्थिति उत्पन्न कर दी है।
- भारत में अमु दरिया, सिंधु, गंगा एवं अंतरराज्यीय साबरमती-नदी बेसिन के अंतरराष्ट्रीय सीमा-पारीय नदी द्रोणी जलवायु परिवर्तन के कारण जल के अभाव की गंभीर चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
- रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि वैश्विक तापन के उच्च स्तर के कारण सदी के अंत तक, वैश्विक तापन रहित विश्व की तुलना में, वैश्विक जीडीपी में 10-23 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है।
- अनेक प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं जलवायु परिवर्तन के कारण और भी व्यापक आर्थिक गिरावट देख सकती हैं।
- रिपोर्ट में उद्धृत एक अध्ययन के अनुसार, यदि उत्सर्जन का स्तर उच्च है, तो सदी के अंत तक जीडीपी की हानि चीन में 42 प्रतिशत एवं भारत में 92 प्रतिशत तक हो सकती है।
जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक
एक जलवायु लाभांश- यूएनएफसीसीसी के कॉप 26 में भारत
जलवायु प्रेरित प्रवासन एवं आधुनिक दासता
शहरों द्वारा जलवायु कार्रवाई को अपनाना
पूर्वोत्तर भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव