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प्रासंगिकता
- जीएस 2: निर्धनता एवं भूख से संबंधित मुद्दे।
- जीएस 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं अवक्रमण।
प्रसंग
- हाल ही में, अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण एवं विकास संस्थान / इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट (आईआईईडी) एवं एंटी-स्लेवरी इंटरनेशनल ने ‘क्लाइमेट इंड्यूस्ड माइग्रेशन एंड मॉडर्न स्लेवरी’ (जलवायु-प्रेरित प्रवासन एवं आधुनिक दासता) शीर्षक से एक नई रिपोर्ट जारी की है।
- रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि जलवायु परिवर्तन से प्रेरित चरम मौसम की घटना ने महिलाओं, बच्चों एवं अल्पसंख्यकों को आधुनिक दासता एवं मानव दुर्व्यापार के खतरे में डाल दिया है।
मुख्य बिंदु
- रिपोर्ट के अनुसार, आधुनिक दासता – ऋण दासता, बंधुआ मजदूरी, शीघ्र या जबरन विवाह एवं मानव दुर्व्यापार सहित – जलवायु परिवर्तन, विशेष रूप से जलवायु से संबंधित बलात विस्थापन एवं प्रवास के साथ अभिसरण करती है।
- रिपोर्ट का मानना था कि जलवायु परिवर्तन निर्धनता, असमानता एवं संघर्ष जैसे मौजूदा कारकों पर, जो आधुनिक दासता को प्रेरित करते हैं, विशेष रूप से जोखिम में अपने घरों से बेघर हुए लोगों के लिए “तनाव प्रवर्धक“ के रूप में कार्य करता है।
- रिपोर्ट उन स्थितियों का वर्णन करती है जहां जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से प्रभावित महिलाएं एवं बालिकाएं स्वयं को मानव दुर्व्यापार एजेंटों का शिकार पाती हैं।
- शोध में पश्चिम अफ्रीका एवं भारत तथा बांग्लादेश के तटीय सुंदरबन क्षेत्र के व्यष्टि अध्ययन (केस स्टडी) शामिल हैं।
- यह दर्शाता है कि अधिक प्रचंड मौसम और बढ़ते समुद्र जलस्तर , जो लोगों को स्थानांतरण हेतु प्रेरित करते हैं, संवेदनशील वर्गों को मानव दुर्व्यापार एवं आधुनिक दासता के व्यापक जोखिम में डाल रहे हैं।
सुंदरबन का मामला
- शोध में पश्चिम अफ्रीका एवं भारत तथा सुंदरबन डेल्टा क्षेत्र गहन, प्रत्यावर्ती एवं अकस्मात आरंभ होने वाली आपदाओं के साथ-साथ मंद गति से प्रारंभ होने वाले पारिस्थितिक क्षरण का साक्षी है जो व्यापक क्षेत्रों को निर्जन बनाता है।
- उपर्युक्त कारणों के साथ, समुद्र के बढ़ते जल-स्तर, अनिश्चित वर्षा, चक्रवातों की बढ़ती आवृत्ति, ज्वार-भाटा एवं बाढ़ का तात्पर्य है कि सुंदरबन में लाखों व्यक्ति वर्ष के अधिकांश समय कार्य करने में असमर्थ हैं।
- आपदाएं क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों के जीवन तथा आजीविका पर व्यापक प्रभाव डालती हैं।
आर्थिक क्षति
- 2009 में, चक्रवात ऐला ने जीवन एवं आजीविका को व्यापकहानि पहुंचाई थी।
- इसी प्रकार, 2020 में, चक्रवात एम्फन के दौरान, तटबंध ध्वस्त हो गए एवं समुद्री जल बाढ़ के मैदानों में प्रवेश कर गया, जिसके परिणामस्वरूप घरों से व्यापक विस्थापन हुआ और 20 लाख से अधिक लोगों की आजीविका की हानि हुई।
- सुंदरवन डेल्टा में भयंकर चक्रवात एवं बाढ़ ने कृषि हेतु भूमि को भी सीमित कर दिया था, जो आजीविका का एक प्रमुख स्रोत था।
सामाजिक क्षति
- इस तरह की घटनाओं ने स्थानीय व्यक्तियों को मानव दुर्व्यापारियों के प्रति संवेदनशील बना दिया एवं उन्हें बलात श्रम करने के लिए बाध्य कर दिया। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2004 में इंडोनेशिया में आई सुनामी के बाद मानव दुर्व्यापार में वृद्धि हुई थी।
- असम, उत्तर-पूर्वी भारत में वार्षिक बाढ़ ने महिलाओं एवं बालिकाओं को बाल दासता अथवा जबरन विवाह हेतु बाध्य किया है।
विश्व सामाजिक सुरक्षा रिपोर्ट 2020-22
जलवायु परिवर्तन, प्रवास एवं आधुनिक दासता के मध्य संबंध से निपटने हेतु सिफारिशें
- दासता को मुख्य नीतिगत मुद्दे के रूप में जलवायु एवं विकास योजना में शामिल किया जाना चाहिए। प्राथमिकता, जलवायु-प्रेरित प्रवास और आधुनिक दासता के मध्य संबंध को पहचानना होना चाहिए।
- सतत विकास लक्ष्य 7 के अनुरूप, बलात श्रम, आधुनिक दासता, मानव दुर्व्यापार एवं बाल श्रम को सभी रूपों में समाप्त करने हेतु स्पष्ट लक्ष्यों एवं कार्यों पर विचार करने की आवश्यकता है।
- नीतिगत अंतःक्षेपों को आकार प्रदान करते समय प्रभावित समुदायों को निर्णय लेने में शामिल करें।
- मौजूदा विकास एवं जलवायु वित्त के मध्य अभिसरण का अन्वेषण किया लगाया जाना चाहिए, ताकि जलवायु-प्रेरित प्रवास एवं दासता जोखिमों के मध्य संबंधों से निपटा जा सके।
- सामाजिक सुरक्षा पहल एवं जलवायु जोखिम प्रबंधन के निर्धारण में दासता के प्रति संवेदनशीलता पर विचार करने एवं सभी संवेदनशील परिवारों को बुनियादी सेवाओं और सामाजिक सुरक्षा संजाल तक पहुंच प्रदान करने हेतु अधिकार-आधारित दृष्टिकोण का निर्माण करने की आवश्यकता है।
- सामाजिक-आर्थिक, राजनीतिक एवं संस्थागत जोखिमों के साथ जलवायु संकट के आधार पर हॉटस्पॉट की पहचान करने एवं जलवायु संकट के दौरान अति संवेदनशील समुदायों द्वारा अपनाए गए प्रवास मार्गों को अभिनिर्धारित करने की आवश्यकता है।
- आपदा के प्रभाव के उत्पन्न होने से पूर्व लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाने हेतु प्रत्याशामूलक कार्रवाई करने की आवश्यकता है, जिसमें विस्थापित समुदायों को स्थानांतरित करने और पुनः बसाने की योजना भी शामिल है।
पूर्वोत्तर भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव