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जलवायु सुभेद्यता सूचकांक: प्रासंगिकता
- जीएस 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण
जलवायु सुभेद्यता सूचकांक: प्रसंग
- हाल ही में, काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) ने एक नई रिपोर्ट जारी की है, जिसका शीर्षक है, ‘मैपिंग इंडियाज क्लाइमेट वल्नरेबिलिटी – ए डिस्ट्रिक्ट-लेवल असेसमेंट’, जहां इसने विभिन्न राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को चरम जलवायविक घटनाओं के प्रति भेद्यता के आधार पर मानचित्रित किया है।
जलवायु सुभेद्यता सूचकांक: मुख्य बिंदु
- यह अपनी तरह का प्रथम जलवायु सुभेद्यता सूचकांक है जो जिलेवार संवेदनशीलता का आकलन करता है।
- यह इंडिया क्लाइमेट कोलैबोरेटिव एंड एडलगिव फाउंडेशन द्वारा समर्थित है एवं इसने हमारे देश के 640 जिलों का विश्लेषण किया है।
जलवायु सुभेद्यता सूचकांक: प्रमुख निष्कर्ष
- रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि 27 भारतीय राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश चरम जलवायविक घटनाओं के प्रति सुभेद्य हैं जो प्रायः स्थानीय अर्थव्यवस्था को बाधित करते हैं एवं कमजोर समुदायों को विस्थापित करते हैं।
- रिपोर्ट में पाया गया कि विश्लेषण किए गए 640 जिलों में से 463 अत्यधिक बाढ़, सूखे एवं चक्रवातों के प्रति सुभेद्य हैं।
- भारत के सर्वाधिक जलवायु संवेदनशील राज्य: असम, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं बिहार राज्य, बाढ़, सूखा एवं चक्रवात जैसी चरम जलवायविक घटनाओं के लिए सर्वाधिक संवेदनशील हैं।
- भारत के सर्वाधिक जलवायु संवेदनशील जिले: असम में धेमाजी एवं नागांव, तेलंगाना में खम्मम, ओडिशा में गजपति, आंध्र प्रदेश में विजयनगरम, महाराष्ट्र में सांगली एवं तमिलनाडु में चेन्नई।
- भारत के पूर्वोत्तर के राज्य बाढ़ के प्रति अधिक संवेदनशील हैं, जबकि दक्षिण एवं मध्य राज्य अत्यधिक सूखे की चपेट में हैं।
- त्रिपुरा के साथ-साथ, तटीय राज्य होने एवं वार्षिक चक्रवात तथा बाढ़ की संभावना के बावजूद, पश्चिम बंगाल तीसरा सबसे कम सुभेद्य है एवं केरल सबसे कम सुभेद्य राज्य है।
जलवायु सुभेद्यता सूचकांक: प्रमुख चिंताएं
- 80 प्रतिशत से अधिक भारतीय जलवायु जोखिम के प्रति संवेदनशील जिलों में निवास करते हैं।
- देश में 20 में से 17 व्यक्ति जलवायु जोखिमों के प्रति सुभेद्य हैं, जिनमें से प्रत्येक पांच भारतीय ऐसे क्षेत्रों में निवास करते हैं जो अत्यधिक सुभेद्य हैं।
- इनमें से 45 प्रतिशत से अधिक जिलों में “असतत परिदृश्य एवं आधारिक संरचना में परिवर्तन“ हुए हैं।
- 183 हॉटस्पॉट जिले एक से अधिक चरम जलवायविक घटनाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं।
- 60 प्रतिशत से अधिक जिलों में चरम मौसमी घटनाओं से निपटने के लिए मध्यम से निम्न अनुकूलन क्षमता है।
- मात्र 63 प्रतिशत भारतीय जिलों में जिला आपदा प्रबंधन योजना (डीडीएमपी) उपस्थित है।
- डीडीएमपी को प्रत्येक वर्ष अद्यतन करने की आवश्यकता है, यद्यपि, 2019 तक उनमें से मात्र 32 प्रतिशत के पास ही अद्यतन योजनाएं थीं।
जलवायु सुभेद्यता सूचकांक: कारण
- भारत के अधिकांश जिलों को “परिदृश्य व्यवधानों” के कारण विशेष रूप से सुभेद्य बना दिया गया है, जैसे कि
- वन आवरण का विलुप्त होना,
- अत्यधिक निर्माण कार्य, एवं
- आर्द्रभूमियों एवं अन्य प्राकृतिक पारितंत्रों का क्षरण।
जलवायु सुभेद्यता सूचकांक: सुझाव
- कॉप-26 में, विकसित देशों को 2009 के पश्चात से वादा किए गए 100 बिलियन अमरीकी डालर के वादे को पूरा करके विश्वास प्राप्त करना चाहिए एवं आने वाले दशक में जलवायु वित्त के उच्चयन (आगे बढ़ाने) हेतु प्रतिबद्ध होना चाहिए।
- भारत को वैश्विक लोचशीलता आरक्षित निधि (ग्लोबल रेजिलिएशन रिजर्व फंड) निर्मित करने हेतु अन्य देशों के साथ सहयोग करना चाहिए, जो जलवायु आघातों के प्रति बीमा के रूप में कार्य कर सकता है।
- भारत के लिए एक जलवायु जोखिम मानचित्रावली विकसित करने से नीति निर्माताओं को चरम जलवायविक घटनाओं से उत्पन्न होने वाले जोखिमों के बेहतर अभिनिर्धारण एवं आकलन करने में सहायता प्राप्त होगी।
- हमारे नीति निर्माताओं, उद्योग जगत के नेतृत्व कर्ताओं एवं नागरिकों को प्रभावी जोखिम-सुविज्ञ निर्णय लेने के लिए जिला-स्तरीय विश्लेषण का उपयोग करना चाहिए।
- भौतिक एवं पारिस्थितिक तंत्र की आधारिक संरचना को जलवायु-अभेद्य बनाना भी अब एक राष्ट्रीय अनिवार्यता बन जाना चाहिए।
- भारत को पर्यावरणीय जोखिम रहित मिशन के समन्वय हेतु एक नवीन जलवायु जोखिम आयोग स्थापित करना चाहिए।
- अंत में, जलवायु संकट के कारण तेजी से बढ़ रहे नुकसान एवं क्षति के साथ, भारत को सीओपी-26 में अनुकूलन-आधारित जलवायु कार्यों के लिए जलवायु वित्त की मांग करनी चाहिए।