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संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2021
प्रासंगिकता
- जीएस 2: भारतीय संविधान-ऐतिहासिक आधार, विकासक्रम, विशेषताएं, संशोधन, महत्वपूर्ण प्रावधान एवं आधारिक संरचना।
प्रसंग
- संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2021 राज्यसभा में प्रस्तुत किया गया। विधेयक संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 में संशोधन करता है।
- यह विधेयक अरुणाचल प्रदेश राज्य द्वारा प्रस्तावित संशोधनों को प्रभावी बनाने हेतु प्रस्तुत किया गया है।
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मुख्य बिंदु
विधेयक अरुणाचल प्रदेश में चिन्हित एसटी (अनुसूचित जनजातियों) की सूची से अबोर जनजाति को अपसारित करता है।
इसके अतिरिक्त, यह कतिपय अनुसूचित जनजातियों को अन्य जनजातियों के साथ प्रतिस्थापित करता है, जैसा कि निम्नलिखित तालिका में दिया गया है।
मूल सूची | विधेयक के अंतर्गत प्रस्तावित परिवर्तन |
अबोर | सूची से विलोपित कर दिया गया |
खाम्पटी | ताई खामती |
मिश्मी, इदु, और तारोण | मिश्मी-कमान (मिजू मिश्मी), इडु (मिश्मी), और तरों (दिगारू मिश्मी) |
मोम्बा | मोनपा, मेम्बा, सरतांग और सजोलंग (मिजी) |
कोई भी नागा जनजाति | नोक्टे, तांगसा, तुत्सा और वांचो |
संवैधानिक प्रावधान
- संविधान राष्ट्रपति को विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को निर्दिष्ट करने का अधिकार प्रदान करता है।
- इसके अतिरिक्त, यह संसद को अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों की इस सूची को संशोधित करने की अनुमति देता है।
अबोर जनजाति: क्यों विलोपित किया गया?
- विधेयक में अबोर जनजाति को क्रम संख्या 1 से विलोपित करने का प्रावधान है। क्योंकि यह क्रम संख्या 16 में अदि के समान ही है।
जनजातियों का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है?
- हमारे संविधान का अनुच्छेद 366(25) अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित करने की प्रक्रिया का प्रावधान करता है।
- यह कहता है, “अनुसूचित जनजाति का तात्पर्य ऐसी जनजातियां या जनजातीय समुदाय या ऐसी जनजातियों या जनजातीय समुदायों के भाग अथवा समूह हैं, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए अनुच्छेद 342 के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति माना जाता है।”
- इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 342(1) में कहा गया है, ”राष्ट्रपति किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में, और जहां यह एक राज्य है, राज्यपाल के परामर्श के पश्चात, एक सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा, जनजातियों या जनजातीय समुदायों या भाग अथवा उस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में जनजातियों या जनजातीय समुदायों के अंतर्गत समूहों को अनुसूचित जनजाति के रूप में निर्दिष्ट कर सकते हैं ।”
- यह ध्यातव्य है कि संविधान अनुसूचित जनजातियों की मान्यता के मानदंडों को परिभाषित नहीं करता है।
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अनुसूचित जनजातियों हेतु रक्षोपाय
- शैक्षिक और सांस्कृतिक रक्षोपाय:
- अनुच्छेद 15(4): अनुसूचित जनजातियों सहित अन्य पिछड़े वर्गों की उन्नति हेतु विशेष प्रावधान।
- अनुच्छेद 29: विशिष्ट भाषा, लिपि अथवा संस्कृति के संरक्षण का अधिकार।
- अनुच्छेद 46: राज्य लोगों के कमजोर वर्गों एवं विशिष्ट रूप से अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक हितों की अभिवृद्धि करेगा तथा सामाजिक अन्याय एवं समस्त प्रकार के शोषण के विरुद्ध उनकी रक्षा करेगा।
- अनुच्छेद 350: मातृभाषा में निर्देश।
- सामाजिक रक्षोपाय:
- अनुच्छेद 23: मानव का दुर्व्यापार एवं बेगार तथा समान रूप के अन्य बलात् श्रम का प्रतिषेध;
- आर्थिक रक्षोपाय:
- अनुच्छेद 244 (1): पांचवीं अनुसूची के प्रावधान असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा राज्यों के अतिरिक्त किसी भी राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण पर लागू होंगे।
- अनुच्छेद 275: संविधान की पांचवीं तथा छठी अनुसूचियों के अंतर्गत आने वाले निर्दिष्ट राज्यों-अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों को सहायता अनुदान।
- राजनीतिक रक्षोपाय:
- अनुच्छेद 243: पंचायतों में स्थानों का आरक्षण।
- अनुच्छेद 330: लोकसभा में अनुसूचित जनजाति हेतु स्थानों का आरक्षण;
- अनुच्छेद 337: राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जनजातियों हेतु स्थानों का आरक्षण;
- अनुच्छेद 371: पूर्वोत्तर राज्यों एवं सिक्किम के संबंध में विशेष प्रावधान।