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दैनिक समसामयिकी यूपीएससी प्रीलिम्स बिट्स – 13 दिसंबर 2022: यूपीएससी दैनिक समसामयिकी प्रीलिम्स बिट्स न्यूनतम समय के निवेश के साथ सर्वाधिक महत्वपूर्ण यूपीएससी दैनिक समसामयिकी के साथ यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों को अपडेट करने के सिद्धांत पर आधारित है। हमारे यूपीएससी दैनिक समसामयिकी प्लेंस बिट्स को पढ़ने में केवल 10-15 मिनट लगते हैं।
लिसु व्रेन बब्बलर
चर्चा में क्यों है?
- पक्षी प्रेमियों (बर्ड वॉचर्स) ने सुदूर पूर्वोत्तर अरुणाचल प्रदेश में व्रेन बैबलर्स की एक नई प्रजाति की खोज की है। उन्होंने इस सॉन्गबर्ड का नाम अरुणाचल प्रदेश के लिसु समुदाय के नाम पर लिसु व्रेन बैबलर रखा है।
- उन्हें यह नई पक्षी प्रजाति तब मिली जब वे दुर्लभ ग्रे-बेल्ड व्रेन बैबलर की तलाश में अरुणाचल प्रदेश में चोटी पर ट्रेकिंग कर रहे थे।
लिसु जनजाति के बारे में जानिए
- लिसु जनजाति को भारत में ‘योबिन’ भी कहा जाता है।
- वे नमदाफा राष्ट्रीय उद्यान से घिरे अरुणाचल प्रदेश के शिदी घाटी एवं निबोडी गांव में देश के सर्वाधिक पूर्वी कोने में निवास करते हैं।
- पूर्व में, यह जनजाति म्यांमार एवं चीन जैसे पड़ोसी देशों में निवास करती थी।
सॉन्गबर्ड क्या है?
- सॉन्गबर्ड्स के मुखर अंग अत्यधिक विकसित होने में समान हैं,यद्यपि सभी इसे मधुर प्रभाव के लिए उपयोग नहीं करते हैं।
- सॉन्गबर्ड को पासरीन नाम से भी जाना जाता है।
- अधिकांश पिंजरा पक्षी इसी समूह के हैं।
धूसर चोंच वाले व्रेन बैबलर्स क्या है?
- ग्रे-बेल्ड व्रेन-बब्बलर (स्पेलेओर्निस रेप्टेटस) टिमलीइडे वंश की एक पक्षी प्रजाति है।
- यह चीन (युन्नान), भारत (अरुणाचल प्रदेश), म्यांमार एवं थाईलैंड में पाया जाता है।
- इसका प्राकृतिक पर्यावास एक उपोष्णकटिबंधीय आद्र पर्वतीय वन है।
- आईयूसीएन स्थिति: लीस्ट कंसर्न।
कोच्चि-मुजिरिस द्विवार्षिक
चर्चा में क्यों है?
- कोच्चि-मुजिरिस द्विवार्षिक का पांचवां संस्करण 12 दिसंबर को प्रारंभ होगा, इसमें विभिन्न मीडिया में दुनिया भर के 90 से अधिक कलाकारों की रचनाओं/कृतियों को प्रदर्शित किया जाएगा।
कोच्चि-मुजिरिस द्विवार्षिक के इतिहास के बारे में जानिए
- कोच्चि-मुजिरिस द्विवार्षिक की स्थापना 2011 में केरल में जन्मे, मुंबई के कलाकारों बोस कृष्णमाचारी एवं रियास कोमू ने समकालीन, वैश्विक दृश्य कला सिद्धांत तथा व्यवहार को भारत में प्रारंभ करने हेतु की थी।
- कोच्चि-मुजिरिस द्विवार्षिक भारत की पहली अंतर्राष्ट्रीय समकालीन कला द्विवार्षिक है एवं इसकी कहानी भारत की वर्तमान वास्तविकता – इसके राजनीतिक, सामाजिक एवं कलात्मक परिदृश्य के लिए अद्वितीय है।
- एक द्विवार्षिक ने भारत में पहले कभी वैचारिक चरण को पार नहीं किया था।
कला द्विवार्षिक क्या हैं?
- द्विवार्षिक, कला के व्यापक स्तर के अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन हैं जो प्रत्येक दो वर्ष में एक विशेष स्थल पर आयोजित होते हैं, द्विवार्षिक आमतौर पर गैर-वाणिज्यिक उद्यम होते हैं – कला मेलों के विपरीत – जो एक संरक्षकीय (क्यूरेटोरियल) थीम के आसपास होता है।
अल हिल्म
चर्चा में क्यों है?
- एडिडास ने अल हिल्म गेंद का अनावरण किया, जिसका उपयोग फीफा विश्व कप 2022 के सेमीफाइनल एवं फाइनल के लिए किया जाएगा
- अल हिल्म ने अल रिहला को प्रतिस्थापित किया है, जिसे क्वार्टर फाइनल तक खेल के आधिकारिक बॉल के रूप में उपयोग किया गया था।
अल हिल्म शब्द क्या प्रदर्शित करता है?
फीफा विश्व कप 2022 के लिए नई गेंद का नाम ”अल हिल्म” है, जिसका अंग्रेजी में अनुवाद ”द ड्रीम” के रूप में किया गया है, बाहरी बाह्याकृति को छोड़कर उसी बनावट एवं तकनीक की है जिसमें कतर के ध्वज के रंगों का उपयोग किया गया है।
क्या फीफा वर्ल्ड कप 2022 के लिए नई गेंद से फेयर प्ले पर असर पड़ेगा?
- एडिडास, गेंद निर्माता ने उसी ‘कनेक्टेड बॉल‘ तकनीक का उपयोग किया है, जो गेंद के भीतर आईएमयू संवेदी (सेंसर) द्वारा प्रग्रहित किए गए बॉल डेटा को मिलाकर एवं कृत्रिम प्रज्ञान को लागू करके, नई तकनीक अर्ध-स्वचालित ऑफसाइड सिस्टम का समर्थन करती है, विशेष रूप से गेंद का सटीक क्षण प्रदान करके तंग ऑफसाइड स्थितियों में खेला जाता है।
इंडो-ग्रीक सम्मेलन
चर्चा में क्या है?
- इंडो-हेलेनिक संस्कृति एवं संबंधों के जीवंत इतिहास का पता लगाने के लिए, ग्रीस आज, 12 दिसंबर से नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय इंडो-ग्रीक सम्मेलन का आयोजन कर रहा है।
- ‘ग्रीक वर्ल्ड एंड इंडिया: हिस्ट्री, कल्चर एंड ट्रेड फ्रॉम द हेलेनिस्टिक पीरियड टू मॉडर्न टाइम्स’ पर पांच दिवसीय सम्मेलन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में आयोजित किया जाएगा।
भारत एवं ग्रीस
- मानवता के संपूर्ण इतिहास में, हिंदू एवं यूनानी पौराणिक कथाएं उन देवताओं एवं देवी-देवताओं के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं जिनसे इसने दुनिया को सुख समृद्धि संपन्न बनाया है।
- ये असाधारण संस्कृतियां हैं जो समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं एवं संपूर्ण पृथ्वी पर बेजोड़ हैं।
- अनेक विद्वान एवं शोधकर्ता इसे समकालीन एवं महत्वपूर्ण पाते हैं।
- प्रचुर मात्रा में साहित्यिक एवं पुरातात्विक कलाकृतियों की उपस्थिति ने इंडो-हेलेनिक चर्चाओं की स्थापना की है।
इंडो-ग्रीक सम्मेलन का उद्देश्य क्या है?
- इंडो-ग्रीक सम्मेलन का उद्देश्य ग्रीक विश्व एवं भारत के मध्य उस समय से जब संस्कृति अपने चरम पर थी एवं आधुनिक समय तक संवाद तथा समझ का निर्माण करना है।
- सम्मेलन मुख्य रूप से इतिहास एवं संबंधों, कला तथा पुरातत्व, विज्ञान एवं दर्शन, व्यापार तथा अर्थशास्त्र, हेलेनिस्टिक इंडिया – भारत के यूनानी (ग्रीक) राजाओं, भारतीय साहित्य में यूनानी, ग्रीक साहित्य में भारतीयों (प्राचीन, बीजान्टिन एवं उत्तर-बीजान्टिन) पर केंद्रित होगा।
- पांच दिवसीय आयोजन में सिकंदर के जीवन को प्रदर्शित करने वाले कई लघु चित्रों सहित दुर्लभ बीजान्टिन पांडुलिपियों की एक डिजिटल प्रदर्शनी भी शामिल होगी।