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26 दिसंबर 2022 को, दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार में सेवाओं के मुद्दे पर बहुत महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है, दिल्ली सरकार में सेवाएं केंद्र सरकार के नियंत्रण में आती हैं।
मुद्दे की पृष्ठभूमि क्या है?
- दिल्ली उच्च न्यायालय 2002 में विधानसभा में एक पद के सृजन एवं 2013 में उस व्यक्ति की सेवाओं की समाप्ति से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रहा था जिसने इस पद को धारण किया था।
- याचिकाकर्ता, जिसे दिसंबर 2002 में सचिव, डीएलए के रूप में नियुक्त किया गया था, तत्कालीन अध्यक्ष की स्वीकृति के परिणामस्वरूप मई 2010 में सेवा विभाग, दिल्ली सरकार द्वारा सेवाओं से समाप्त कर दिया गया था।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने क्यों खारिज की जनहित याचिका?
- जनहित याचिका को खारिज करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 187, जो पृथक सचिवीय कर्मचारियों की नियुक्ति से संबंधित है, को दिल्ली के एनसीटी पर लागू नहीं किया जा सकता है, जो कि संविधान के तहत एक राज्य नहीं बल्कि केंद्र शासित प्रदेश है।
- न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (नेशनल कैपिटल टेरिटरी/एनसीटी) की विधानसभा में पदों का सृजन दिल्ली के उपराज्यपाल की स्वीकृति से ही किया जा सकता है, जो सक्षम प्राधिकारी हैं।
- न्यायालय ने यह भी कहा, डीएलए के पास कोई पृथक सचिवीय संवर्ग नहीं है एवं इस तरह, या तो अध्यक्ष या डीएलए के किसी भी प्राधिकरण के पास इस तरह का पद सृजित करने या ऐसे पद पर नियुक्तियां करने की कोई क्षमता नहीं है।
- अतः, याचिका को खारिज करते हुए, न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति “कानून के दायरे में है और इसे बचाया नहीं जा सकता” एवं “बर्खास्तगी को अवैध नहीं कहा जा सकता है”।
सेवाओं के मुद्दे पर दिल्ली उच्च न्यायालय की प्रमुख टिप्पणियां?
- न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने कहा कि दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) के तहत सेवाएं आवश्यक रूप से संघ की सेवाएं हैं एवं वे केवल सूची I की प्रविष्टि 70 द्वारा स्पष्ट रूप से कवर की गई हैं।
- राज्यों के विपरीत दिल्ली में कोई राज्य लोक सेवा आयोग नहीं है।
- दिल्ली की एनसीटी की विधान सभा के पास राज्य सूची की प्रविष्टि 1, 2 एवं 18 तथा संघ सूची की प्रविष्टि 70 के तहत समाविष्ट किसी भी विषय के संबंध में विधान निर्मित करने की कोई विधायी क्षमता नहीं है।
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991 की धारा 41 के मद्देनजर, उपराज्यपाल को इन मामलों के संबंध में अपने विवेक से कार्य करने की आवश्यकता है, न कि मंत्रिपरिषद की सहायता एवं परामर्श पर।
- न्यायालय ने कहा कि सचिव, डीएलए के पद पर नियुक्तियां दिल्ली विधानसभा (डेल्ही लेजिसलेटिव असेंबली/डीएलए) के अध्यक्ष के पद के दायरे से बाहर आती हैं क्योंकि उपयुक्त नियुक्ति प्राधिकारी उप राज्यपाल (लेफ्टिनेंट गवर्नर/एलजी) थे एवं याचिकाकर्ता की नियुक्ति “धोखाधड़ी से प्रभावित” थी एवं आरंभ से ही शून्य हैं”।
- यह भी देखा गया कि वर्तमान मामले में, संयुक्त सचिव के पद पर याचिकाकर्ता के अवशोषण एवं फिर सचिव के पद पर पदोन्नति के माध्यम से नियुक्ति के समय संघ लोक सेवा आयोग (यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन/यूपीएससी) के साथ कोई परामर्श नहीं किया गया था, जो कानून के विरोधाभास में था।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 187, जो पृथक सचिवीय कर्मचारियों की नियुक्ति से संबंधित है, को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली पर लागू नहीं किया जा सकता है, जो कि संविधान के तहत एक राज्य नहीं बल्कि केंद्र शासित प्रदेश है।
दिल्ली सरकार में सेवाओं के संदर्भ में प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न
प्र. संविधान का अनुच्छेद 187 किस विषय से संबंधित है?
उत्तर. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 187 एक ऐसा अनुच्छेद है जो राज्य विधानमंडल के सचिवालय के इर्द-गिर्द घूमता है। यह एक पृथक सचिवीय कर्मचारियों की नियुक्ति से संबंधित है, किंतु इसे दिल्ली के केंद्र शासित प्रदेश (नेशनल कैपिटल टेरिटरी/एनसीटी) पर लागू नहीं किया जा सकता है जो कि राज्य नहीं है बल्कि संविधान के तहत एक केंद्र शासित प्रदेश है।
प्र. भारतीय संविधान के भाग VI में कौन से अनुच्छेद राज्य विधानमंडल से संबंधित हैं?
उत्तर. अनुच्छेद 168 से 212 वे अनुच्छेद हैं जिनमें राज्य विधानमंडल से संबंधित प्रावधान हैं। ये अनुच्छेद भारतीय संविधान के भाग VI के अंतर्गत आते हैं।