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भारत में विभिन्न प्रकार के प्रक्षेपण यान 

भारत के प्रक्षेपण यान

हम प्रायः इसरो ( इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन/भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) द्वारा प्रक्षेपित किए गए विभिन्न उपग्रहों के बारे में पढ़ते हैं। इन उपग्रहों को एक प्रक्षेपण यान, या प्रायः इसे रॉकेट कहा जाता है, का उपयोग करके अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जाता है।

उपग्रह, या  नीतभार पेलोड, इन प्रक्षेपण यानों के स्थापित किए जाते हैं, एवं अंतरिक्ष में अपनी नियत कक्षा के समीप पहुंचने के बाद उन्हें बहिःक्षिप्त कर लिया जाता है। एक उपग्रह की आवश्यक प्रणोदन प्रणाली के आधार पर, विभिन्न प्रक्षेपण यान मौजूद होते हैं। इस लेख में, हम भारत में विभिन्न प्रकार के प्रक्षेपण यानों (लॉन्च व्हीकल) के बारे में पढ़ेंगे।

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प्रक्षेपण यान क्या हैं?

  • प्रक्षेपण यान का अर्थ: अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए प्रक्षेपक (लॉन्चर) या प्रक्षेपण यान (लॉन्च व्हीकल) का उपयोग किया जाता है।
  • उपग्रह अपने साथ एक या एक से अधिक उपकरण ले जाते हैं जो वैज्ञानिक कार्य संपादित करते हैं जिसके लिए उन्हें अंतरिक्ष में भेजा जाता है।
  • उनका परिचालन जीवन कभी-कभी दशकों तक बढ़ जाता है। दूसरी ओर, रॉकेट प्रक्षेपण के पश्चात बेकार हो जाते हैं।
  • प्रक्षेपण यान का एकमात्र कार्य उपग्रहों को उनकी नियत कक्षाओं में ले जाना है।
  • रॉकेट में अनेक वियोज्य ऊर्जा प्रदान करने वाले भाग होते हैं। वे रॉकेट को संचालित करने हेतु विभिन्न प्रकार के ईंधन का दहन करते हैं।
  • एक बार जब उनका ईंधन समाप्त हो जाता है, तो वे रॉकेट से अलग हो जाते हैं तथा गिर जाते हैं, प्रायः वायु-घर्षण के कारण वातावरण में जल जाते हैं एवं नष्ट हो जाते हैं।
  • मूल रॉकेट का मात्र एक छोटा सा हिस्सा उपग्रह के नियत गंतव्य तक जाता है।
  • एक बार जब उपग्रह को अंत में बाहर निकाल दिया जाता है, तो रॉकेट का यह अंतिम भाग या तो अंतरिक्ष के मलबे का हिस्सा बन जाता है, या फिर वायुमंडल में गिरने के बाद जल जाता है।

 

भारत में प्रक्षेपण यानों के प्रकार

  • भारत में दो प्रकार के क्रियाशील प्रक्षेपण यान हैं:  ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल/पीएसएलवी) एवं भू तुल्यकाली उपग्रह प्रक्षेपण यान (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल/जीएसएलवी)।
  • भारत में प्रक्षेपण यान का सफर उपग्रह प्रक्षेपण यान-3 (एसएलवी-3) के साथ आरंभ हुआ।

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एसएलवी

  • उपग्रह प्रक्षेपण यान -3 (SLV-3) भारत का  प्रथम प्रायोगिक उपग्रह प्रक्षेपण यान था, जो एक ठोस, चार चरण वाला वाहन था एवं पृथ्वी की निचली कक्षा (लो अर्थ ऑर्बिट/लिओ) में 40 किलो वर्ग के नीतभार रखने में सक्षम था।
  • SLV-3 को 1980 में श्रीहरिकोटा रेंज (शार) से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया था, जब रोहिणी उपग्रह, RS-1 को कक्षा में स्थापित किया गया था, जिससे भारत अंतरिक्ष-उत्साही देशों के एक विशेष समूह का छठा सदस्य बन गया। SLV-3 परियोजना की सफल परिणति ने उन्नत प्रक्षेपण यान परियोजनाओं जैसे संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (ऑगमेंटेड सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल/एएसएलवी) का मार्ग प्रशस्त किया।

 

एएसएलवी

  • ऑगमेंटेड सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (ASLV) कार्यक्रम को लो अर्थ ऑर्बिट्स (LEO) के लिए पेलोड क्षमता को 150 किलोग्राम, SLV-3 से तीन गुना बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किया गया था।
  • एएसएलवी भविष्य के प्रक्षेपण यानों के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों को प्रदर्शित करने एवं मान्य करने हेतु एक अल्प लागत वाला मध्यवर्ती प्रक्षेपण यान सिद्ध हुआ।

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पीएसएलवी

  • ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान  (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल/PSLV) भारत की तीसरी पीढ़ी का प्रक्षेपण यान है। यह तरल चरण (लिक्विड स्टेज) से लैस होने वाला  प्रथम भारतीय प्रक्षेपण यान है।
  • 1994 में अपने प्रथम सफल प्रक्षेपण के पश्चात, पीएसएलवी जून 2017 तक लगातार 39 सफल मिशनों के साथ भारत के विश्वसनीय एवं बहुमुखी कार्य उपयोगी प्रक्षेपण यान (वर्कहॉर्स लॉन्च व्हीकल) के रूप में उदित हुआ।
  • 1994-2017 की अवधि के दौरान, प्रक्षेपण यान ने विदेशों से ग्राहकों के लिए 48 भारतीय उपग्रहों एवं 209 उपग्रहों को प्रक्षेपित किया।
  • इन कारणों से, इसने ‘इसरो के कार्योपयोगी प्रक्षेपण यान’ (वर्क हॉर्स) की उपाधि अर्जित की।
  • इसके अतिरिक्त, इस प्रक्षेपण यान ने 2008 में दो अंतरिक्ष यान – चंद्रयान -1 (चंद्रयान 1 का प्रक्षेपण यान)  तथा 2013 में मार्स ऑर्बिटर अंतरिक्ष यान को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया – जिन्होंने बाद में क्रमशः चंद्रमा  एवं मंगल की यात्रा की।

 

जीएसएलवी

  • जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल या जीएसएलवी एक अधिक शक्तिशाली रॉकेट है, जिसे वजनी उपग्रहों को अंतरिक्ष में अधिक दूरी तक तक ले जाने हेतु निर्मित किया गया है।
  • वर्तमान समय तक, जीएसएलवी रॉकेटों ने 18 मिशनों को निष्पादित किया है, जिनमें से चार विफल रहे।
  • जीएसएलवी MK III चंद्रयान 2 अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण यान के रूप में चयनित, इसरो द्वारा विकसित तीन चरणों वाला भारी उत्थापक प्रक्षेपण यान है। वाहन में दो सॉलिड स्ट्रैप-ऑन, एक कोर लिक्विड बूस्टर तथा एक निम्न तापीय उच्च चरण (क्रायोजेनिक अपर स्टेज) है।
  •  GSLV Mk III को 4 टन वर्ग के उपग्रहों को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) या लगभग 10 टन लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में ले जाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो GSLV Mk II की क्षमता से लगभग दोगुना है।
  • यह मानवयुक्त गगनयान अंतरिक्ष मिशन को भी प्रक्षेपित करेगा।
  • एमके-III संस्करणों ने इसरो को अपने उपग्रहों को प्रक्षेपित करने हेतु पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बना दिया है। इससे पूर्व, यह अपने भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए यूरोपीय एरियन प्रक्षेपण यान पर निर्भर करता था।

 

हम अपने आगामी लेख में  प्रक्षेपण यानों के बारे में और चर्चा करेंगे।

 

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