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डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम

डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम: प्रासंगिकता

  • जीएस 2: शासन के महत्वपूर्ण पहलू, पारदर्शिता एवं जवाबदेही, ई-गवर्नेंस- अनुप्रयोग, प्रतिरूप, सफलताएं, सीमाएं एवं क्षमता।

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डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम: प्रसंग

  • हाल ही में, ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इंडिया हैबिटेट सेंटर में ‘भूमि संवाद’ – डिजिटल इंडिया भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (डीआईएलआरएमपी) पर राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन किया है।

 

डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम: मुख्य बिंदु

  • राज्यों को भूमि प्रबंधन, भूमि अधिग्रहण एवं आधारिक अवसंरचना परियोजनाओं के क्षेत्र में अन्य राज्यों की सर्वोत्तम प्रथाओं को सीखने एवं अपनाने का सुझाव दिया गया है।
  • एमओआरडी ने राष्ट्रीय सामान्य दस्तावेज़ पंजीकरण प्रणाली (एनजीडीआरएस) पोर्टल एवं डैशबोर्ड भी विमोचित किया है।

 

विशिष्ट भूमि पार्सल पहचान संख्या (यूएलपीआईएन)

  • यह भूमि के भूखंड के आधार नंबर की भांति ही है।
  • इसके अंतर्गत, भूखंड के भू-निर्देशांक पर आधारित एक विशिष्ट आईडी तैयार की जाती है एवं भूखंडों को निर्दिष्ट की जाती है।
  • इसे विभिन्न राज्यों/क्षेत्रों के मध्य कम्प्यूटरीकृत डिजिटल भूमि अभिलेख के आंकड़े साझा करने एवं देश भर में भूमि के खंडों को एक विशिष्ट आईडी प्रदान करने की एक समान प्रणाली साझा करने हेतु प्रस्तुत किया गया है।
  • अब तक इसे 13 राज्यों में लागू किया जा चुका है एवं अन्य 6 राज्यों में प्रायोगिक परीक्षण किया जा चुका है।
  • इस वित्तीय वर्ष (वित्त वर्ष 2021-22) के अंत तक संपूर्ण देश में भूमि के खंडों को विशिष्ट आईडी आवंटित करने की प्रक्रिया को पूर्ण करने का निर्णय लिया गया है।

 

राष्ट्रीय सामान्य दस्तावेज़ पंजीकरण प्रणाली (एनजीडीआरएस) का विकास

  • एनजीडीआरएस एनआईसी द्वारा विकसित पंजीकरण प्रणाली हेतु एक आंतरिक उन्नत सॉफ्टवेयर अनुप्रयोग है।
  • यह सॉफ्टवेयर अनुप्रयोग देश में राज्य-विशिष्ट आवश्यकताओं के साथ मापनीय (स्केलेबल), लचीला, विन्यास योग्य एवं संगत है।
  • यह दस्तावेजों को क्रियान्वित करने वाले अधिकारियों की पारदर्शिता, जवाबदेही एवं पंजीकरण दस्तावेजों के निष्पादन हेतु आवश्यक लागत, समय एवं यात्राओं की संख्या और प्रक्रियाओं में कमी सुनिश्चित करता है।
  • अब तक, इसे पहले ही 12 राज्यों में क्रियान्वित किया जा चुका है एवं 10 करोड़ से अधिक जनसंख्या को आच्छादित करते हुए 3 राज्यों में प्रायोगिक परीक्षण किया गया है।

 

डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम

  • 2008 में, दो केंद्र प्रायोजित योजनाएं यथा: भूमि अभिलेखों का कम्प्यूटरीकरण (सीएलआर) एवं राजस्व प्रशासन का सुदृढ़ीकरण तथा भूमि अभिलेखों का अद्यतन (एसआरए एंड यूएलआर) डिजिटल इंडिया भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (डीआईएलआरएमपी) नामक एक संशोधित योजना में विलय कर दिया गया।
  • डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम का उद्देश्य डीआईएलआरएमपी का मुख्य उद्देश्य अद्यतन भूमि अभिलेखों, सहज एवं स्वचालित नामांतरण (दाखिल खारिज), मूल पाठ विषयक एवं स्थानिक अभिलेखों के मध्य एकीकरण, राजस्व  तथा पंजीकरण के मध्य अंतर-संयोजन, वर्तमान विलेख पंजीकरण एवं प्रकल्पित स्वामित्व प्रणाली को स्वामित्व गारंटी के साथ निर्णायक स्वामित्व के साथ प्रतिस्थापित करने हेतु एक प्रणाली का प्रारंभ करना है।

 

डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम: घटक

  • डीआईएलआरएमपी के 3 प्रमुख घटक हैं
  • भूमि अभिलेख का कम्प्यूटरीकरण
  • सर्वेक्षण/पुनः सर्वेक्षण
  • पंजीकरण का कम्प्यूटरीकरण।

 

डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम: क्रियान्वयन

  • राज्य सरकारें/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासन भूमि संसाधन विभाग, ग्रामीण सरकार मंत्रालय, भारत सरकार से वित्तीय एवं तकनीकी सहायता के साथ कार्यक्रम को क्रियान्वित करेंगे।

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डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम के लाभ

नागरिकों को सद्य अनुक्रिया (रीयल-टाइम) भूमि स्वामित्व अभिलेख उपलब्ध होंगे।

  • चूंकि अभिलेख उचित सुरक्षा आईडी के साथ वेबसाइटों पर रखे जाएंगे, संपत्ति के मालिकों को सूचना की गोपनीयता के संबंध में बिना किसी समझौता के अपने अभिलेखों तक निर्बाध पहुंच प्राप्त होगी।
  • अभिलेखों तक निर्बाध पहुंच नागरिक एवं सरकारी अधिकारियों के मध्य अंतरापृष्ठ (इंटरफेस) को कम करेगी, जिससे किराए की मांग एवं उत्पीड़न में कमी आएगी।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) सेवा प्रदान करने का तरीका मशीनरी, सुविधा में जोड़ते हुए सरकार के साथ नागरिक संपर्क को और कम करेगा।
  • स्टाम्प पेपरों को समाप्त करने एवं बैंकों के माध्यम से स्टाम्प शुल्क एवं पंजीकरण शुल्क के भुगतान इत्यादि से भी पंजीकरण तंत्र के साथ अंतरापृष्ठ कम हो जाएगा।
  • आईटी अंतर्संबंधित उपयोग के साथ; आरओआर इत्यादि प्राप्त करने का समय काफी कम हो जाएगा।
  • एकल खिड़की (सिंगल-विंडो) सेवा या वेब-सक्षम “कभी भी-कहीं भी” पहुंच से नागरिकों को आरओआर इत्यादि प्राप्त करने में समय एवं प्रयास की बचत होगी।
  • सहज एवं स्वचालित नामांतरण (दाखिल खारिज) से धोखाधड़ी वाले संपत्ति सौदों के दायरे में काफी कमी आएगी।
  • निर्णायक स्वामित्व से मुकदमेबाजी में भी अत्यधिक कमी आएगी।
  • ये अभिलेख दस्तंदाजी रोधी (टैम्पर प्रूफ) होंगे।
  • यह विधि साख सुविधाओं के लिए ई-लिंकेज की अनुमति प्रदान करेगी।
  • बाजार मूल्य की सूचना नागरिकों को वेबसाइट पर उपलब्ध होगी।
  • भूमि डेटा (जैसे, अधिवास, जाति, आय,  इत्यादि) के आधार पर प्रमाण पत्र नागरिक को कंप्यूटर के माध्यम से उपलब्ध होंगे।
  • आंकड़ों के आधार पर सरकारी कार्यक्रमों के लिए पात्रता की जानकारी उपलब्ध होगी।
  • प्रासंगिक सूचना के साथ भूमि पासबुक निर्गत करने में सुविधा होगी।

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