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आपदा प्रबंधन की मूल बातें
आपदा प्रबंधन यूपीएससी के पाठ्यक्रम में उन विषयों में से एक है जिसे बिना अधिक प्रयास किए पूरा किया जा सकता है। इन्हें यूपीएससी में कुछ सरलता से प्राप्त किए जाने योग्य खंडों (लो हैंगिंग फ्रूट्स) के रूप में कहा जा सकता है एवं उम्मीदवारों को इस खंड को पूरा करना चाहिए एवं इस खंड से यथासंभव जितने अधिक हो, प्रश्नों को हल करने का प्रयास करना चाहिए। यह एक तीन-लेख श्रृंखला होगी जहां इस लेख में, हम आपदा प्रबंधन की मूल बातों पर चर्चा करेंगे एवं आगामी लेखों में, हम भारत में आपदा प्रबंधन तथा आपदा प्रबंधन में अंतरराष्ट्रीय प्रयासों पर चर्चा करेंगे।
आपदा प्रबंधन पर चर्चा करने से पूर्व, आइए पहले जान लेते हैं कि
एक आपदा क्या है?
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, उद्भासन (प्रभावन), भेद्यता एवं क्षमता की स्थितियों के साथ अंतर्क्रिया करने वाली खतरनाक घटनाओं के कारण किसी समुदाय या समाज के कार्य संचालन में आपदा किसी भी पैमाने पर एक गंभीर व्यवधान है, जिसके कारण निम्न में से एक या अधिक घटित होता है: मानव, भौतिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय हानि तथा दुष्प्रभाव।
- वैकल्पिक रूप से, आपदाओं को एक समुदाय के कार्य संचालन में गंभीर व्यवधान के रूप में संदर्भित किया जा सकता है जो अपने स्वयं के संसाधनों का उपयोग कर निपटने की क्षमता से अधिक है।
आपदाओं के प्रकार
आपदाओं को निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- प्राकृतिक आपदाएं: इन्हें आगे निम्नलिखित उप-श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:
- जलवायविक घटनाएँ: चक्रवात एवं तूफान (समुद्र के कटाव से संबंधित), बाढ़ तथा सूखा, एवं
- भूवैज्ञानिक घटनाएं: भूकंप, सुनामी, भूस्खलन एवं हिमस्खलन।
- पर्यावरणीय क्षरण तथा पारिस्थितिक संतुलन की गड़बड़ी के कारण घटित होने वाली आपदाएं;
- दुर्घटनाओं के कारण घटित होने वाली आपदाएं: इन्हें पुनः निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है: औद्योगिक एवं परमाणु दुर्घटनाएँ तथा आग से संबंधित दुर्घटनाएँ;
- जैविक गतिविधियों के कारण घटित होने वाली आपदाएं: सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट, महामारी इत्यादि;
- शत्रुतापूर्ण तत्वों के कारण घटित होने वाली आपदाएं: युद्ध, आतंकवाद, उग्रवाद, उग्रवाद इत्यादि;
- संचार प्रणाली, व्यापक स्तर पर हड़ताल इत्यादि सहित प्रमुख बुनियादी सुविधाओं के विघटन/विफलता के कारण होने वाली आपदाएं; तथा
- बड़ी भीड़ के नियंत्रण से बाहर होने के कारण आपदाएं।
आपदा प्रबंधन क्या है?
- आपदा प्रबंधन को रणनीतिक योजना एवं प्रक्रिया के एक समुच्चय के रूप में कहा जा सकता है जो प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित आपदाओं एवं विनाशकारी घटनाओं के घटित होने पर महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को गंभीर नुकसान से बचाने के लिए प्रशासित एवं नियोजित किया जाता है।
आपदा प्रबंधन के चरण
संकट-पूर्व: तत्परता
- यह वह अवधि है जब संभावित खतरे के जोखिम एवं भेद्यताओं का आकलन किया जा सकता है एवं संकट को रोकने एवं कम करने तथा वास्तविक घटना के लिए तैयारी/ तत्परता हेतु आवश्यक कदम उठाए जा सकते हैं।
- इनमें रोकथाम के दीर्घकालिक उपाय शामिल हैं जैसे
- बाढ़ को रोकने के लिए तटबंधों का निर्माण,
- सिंचाई सुविधाओं का निर्माण अथवा आवर्धन करना एवं सूखा रोधी उपायों के रूप में जलसंभर (वाटरशेड) प्रबंधन को अपनाना,
- भूस्खलन की घटनाओं को कम करने के लिए वृक्षारोपण बढ़ाना,
- विभिन्न अल्पकालिक उपायों के माध्यम से भी संकट को कम किया जा सकता है, उदाहरण के लिए,
- भवन संहिता (बिल्डिंग कोड) एवं ज़ोनिंग विनियमों का बेहतर प्रवर्तन,
- जल निकासी व्यवस्था का उचित रखरखाव,
- खतरों इत्यादि के जोखिम को कम करने के लिए बेहतर जागरूकता एवं सार्वजनिक शिक्षा।
संकट के दौरान: आपातकालीन प्रतिक्रिया
- जब कोई संकट वास्तव में आता है, तो इससे प्रभावित लोगों को दुख एवं हानि का शमन करने एवं कम करने हेतु त्वरित प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है।
- प्राथमिक गतिविधियों में निम्नलिखित सम्मिलित हो सकते हैं: रिक्तीकरण (निकासी), खोज एवं बचाव, इसके बाद भोजन, वस्त्र, आश्रय, दवाएं एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं का प्रावधान जो प्रभावित समुदाय के जीवन को सामान्य स्थिति में वापस लाने हेतु आवश्यक हैं।
संकट पश्चात
- पुनर्स्थापना: यह वह चरण है जब शीघ्र पुनर्स्थापना/पुनर्प्राप्ति प्राप्त करने एवं भेद्यता तथा भविष्य के जोखिमों को कम करने के प्रयास किए जाते हैं। इसमें ऐसी गतिविधियां शामिल हैं जिनमें पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण के दो अतिव्यापी चरण सम्मिलित हैं।
- पुनर्वास: इसमें दीर्घकालीन पुनर्स्थापना में सहायता हेतु अंतरिम उपायों के रूप में अस्थायी सार्वजनिक उपादेयताओं एवं आवास का प्रावधान शामिल है।
- पुनर्निर्माण: इसमें क्षतिग्रस्त आधारिक संरचना एवं आवासों का निर्माण तथा सतत आजीविका को सक्षम बनाना शामिल है।
आपदा जोखिम न्यूनीकरण ढांचा
आपदा जोखिम न्यूनीकरण ढांचा कार्रवाई के निम्नलिखित क्षेत्रों से मिलकर निर्मित है।
- जोखिम प्रबंधन के प्रति नीति
- जोखिम विश्लेषण एवं सुभेद्यता सहित जोखिम का आकलन
- जोखिम जागरूकता एवं जोखिम न्यूनीकरण हेतु योजना तैयार करना
- योजना का क्रियान्वयन
- पूर्व चेतावनी प्रणाली
- ज्ञान का उपयोग