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डी- एसआईआई: प्रासंगिकता
- जीएस 3: भारतीय अर्थव्यवस्था एवं नियोजन, संसाधन,वृद्धि, विकास एवं रोजगार से संबंधित मुद्दे।
डी- एसआईआई: प्रसंग
- आईआरडीएआई (इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया) ने हाल ही में कहा है कि एलआईसी, जीआईसी आरई एवं न्यू इंडिया को 2021-22 के लिए डोमेस्टिक सिस्टमिकली इम्पोर्टेन्ट इंश्योरर्स (डी- एसआईआई) के रूप में बरकरार रखा गया है।
डी-एसआईआई क्या है?
- घरेलू व्यवस्थित रूप से महत्वपूर्ण बीमाकर्ता (डी-एसआईआई) ऐसे आकार, बाजार महत्व एवं घरेलू तथा वैश्विक अंतर्संबंध के बीमाकर्ताओं को संदर्भित करते हैं जिनकी संकट या विफलता घरेलू वित्तीय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण अव्यवस्था का कारण बनेगी।
- अतः, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए बीमा सेवाओं की निर्बाध उपलब्धता हेतु डी-एसआईआई का निरंतर कार्य संचालन महत्वपूर्ण है।
डी-एसआईआई: विफल होने हेतु अत्यंत व्यापक
- डी-एसआईआई को ऐसे बीमाकर्ता के रूप में माना जाता है जो ‘अत्यंत व्यापक अथवा विफल होने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण‘ (टीबीटीएफ) हैं।
- यह धारणा एवं सरकारी सहायता की अनुमानित अपेक्षा जोखिम लेने में वृद्धि कर सकती है, बाजार अनुशासन को कम कर सकती है, प्रतिस्पर्धात्मक विकृतियां उत्पन्न कर सकती है एवं भविष्य में संकट की संभावना को बढ़ा सकती है।
- इन विचारों के लिए आवश्यक है कि प्रणालीगत जोखिमों एवं नैतिक संकटों के मुद्दों से निपटने के लिए डी-एसआईआई को अतिरिक्त नियामक उपायों के अधीन किया जाना चाहिए।
- डी-एसआईआई को भी वर्धित नियामक पर्यवेक्षण के अधीन किया जाएगा।
डी-एसआईआई के उत्तरदायित्व
- उनके संचालन की प्रकृति एवं डी-एसआईआई के प्रणालीगत महत्व को देखते हुए, इन बीमाकर्ताओं को निम्नलिखित कार्यों को संपादित करने हेतु कहा गया है:
- कॉर्पोरेट प्रशासन के स्तर को ऊपर उठाना;
- सभी प्रासंगिक जोखिमों को अभिनिर्धारित करना एवं एक सुदृढ़ जोखिम प्रबंधन संस्कृति को बढ़ावा देना।
डी-एसआईआई मापदंड
- भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) ने डी-एसआईआई के अभिनिर्धारण एवं पर्यवेक्षण हेतु एक पद्धति विकसित की है। इन मापदंडों में शामिल हैं:
- कुल राजस्व के संदर्भ में संचालनों का आकार;
- एक से अधिक क्षेत्राधिकार में वैश्विक गतिविधियां;
- उनके उत्पादों एवं / या संचालनों की प्रतिस्थापनीयता की कमी; तथा
- प्रतिपक्ष अनावृत्ति (एक्सपोजर) एवं समष्टि अर्थशास्त्रीय अनावृत्ति (मैक्रो-इकोनॉमिक एक्सपोजर) के माध्यम से अंतःसंबंध।
आईआरडीएआई के बारे में
- भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई), भारत में बीमा क्षेत्र के समग्र पर्यवेक्षण एवं विकास के लिए संसद के एक अधिनियम, अर्थात बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 ( आईआरडीएआई अधिनियम 1999) के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है।
- इसे वित्त मंत्रालय के अधीन स्थापित किया गया है।
आईआरडीएआई की संरचना
- प्राधिकरण एक दस सदस्यीय दल है जिसमें सम्मिलित हैं
- एक अध्यक्ष;
- पांच पूर्णकालिक सदस्य;
- चार अंशकालिक सदस्य,
- जहां सभी सदस्यों की नियुक्ति भारत सरकार द्वारा की जाती है।
आईआरडीएआई का मिशन
- पॉलिसीधारकों के हितों की रक्षा एवं उनके साथ उचित व्यवहार सुनिश्चित करना;
- आम आदमी के लाभ के लिए बीमा उद्योग का तीव्र एवं व्यवस्थित विकास करना तथा अर्थव्यवस्था के विकास में तीव्रता लाने हेतु दीर्घकालीन निधि उपलब्ध कराना;
- सत्यनिष्ठा, वित्तीय सुदृढ़ता, निष्पक्ष व्यवहार एवं इसे विनियमित करने वालों की क्षमता के उच्च मानकों को स्थापित करना, प्रोत्साहित करना, अनुश्रवण करना एवं क्रियान्वित करना;
- वास्तविक दावों का त्वरित निष्पादन सुनिश्चित करना, बीमा धोखाधड़ी एवं अन्य कदाचारों को रोकना एवं प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना करना;
- बीमा से संबंधित वित्तीय बाजारों में निष्पक्षता, पारदर्शिता एवं व्यवस्थित आचरण को प्रोत्साहित करना एवं बाजार के प्रतिभागियों के मध्य वित्तीय सुदृढ़ता के उच्च मानकों को लागू करने हेतु एक विश्वसनीय प्रबंधन सूचना प्रणाली का निर्माण करना;
- जहां ऐसे मानक अपर्याप्त हैं या अप्रभावी रूप से लागू हैं, वहां कार्रवाई करना;
- विवेकपूर्ण विनियमन की आवश्यकताओं के अनुरूप उद्योग के दैनिक (दिन-प्रतिदिन के) कार्य संचालन में अधिकतम मात्रा में स्व-विनियमन लाना।