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भारत में इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट प्रबंधन

ई अपशिष्ट का क्या अर्थ है?

  • इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट अथवा ई- अपशिष्ट तब उत्पन्न होता है जब इलेक्ट्रॉनिक एवं विद्युत उपकरण अपने मूल उपयोग के लिए अनुपयुक्त हो जाते हैं या समाप्ति तिथि को पार कर जाते हैं।
  • उदाहरण: कंप्यूटर, सर्वर, मेनफ्रेम, मॉनिटर, कॉम्पैक्ट डिस्क (सीडी), प्रिंटर, स्कैनर, कैलकुलेटर, फैक्स मशीन, बैटरी सेल, सेल्युलर फोन, टीवी, आईपोड, चिकित्सा उपकरण, वाशिंग मशीन, रेफ्रिजरेटर कथा एयर कंडीशनर ई -अपशिष्ट (जब उपयोग के लिए अनुपयुक्त हो गए हों) के उदाहरण हैं।
  • ई-अपशिष्ट में आमतौर पर धातु, प्लास्टिक, कैथोड रे ट्यूब (सीआरटी), प्रिंटेड सर्किट बोर्ड, केबल  इत्यादि होते हैं।
  • तरल क्रिस्टल, लिथियम, पारद (मरकरी), निकेल, पॉलीक्लोरिनेटेड बाई फिनाइल (पीसीबी), कैडमियम, क्रोम, कोबाल्ट, तांबा तथा सीसा जैसे विषाक्त पदार्थों की मौजूदगी इसे अत्यधिक खतरनाक बनाती है।

क्यों बढ़ रहा है ई वेस्ट?

  • तीव्र गति से होती तकनीकी प्रगति एवं नए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उत्पादन के कारण इलेक्ट्रॉनिक उपकरण  शीघ्रता से नए मॉडल के साथ प्रतिस्थापित हो जाते हैं।
  • इससे ई- अपशिष्ट के उत्पादन में घातांकी रूप से वृद्धि हुई है।
  • लोग नए मॉडलों की ओर रुख करते हैं तथा उत्पादों का जीवन काल भी कम हो गया है।
  • 40 मिलियन टन ई- अपशिष्ट या तो संसाधन पुनर्स्थापन के लिए जला दिया जाता है या अवैध रूप से व्यापार किया जाता है तथा घटिया तरीके से उपचारित किया जाता है।

 

ई-अपशिष्ट के प्रभाव

  • ई-अपशिष्ट मनुष्य, पशु तथा पर्यावरण के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
  • भारी धातुओं  एवं अत्यधिक विषाक्त पदार्थों जैसे पारा, सीसा, बेरिलियम एवं कैडमियम की बहुत कम मात्रा में उपस्थिति भी पर्यावरण के लिए एक व्यापक खतरा पैदा करती है।

 

ई अपशिष्ट पुनर्चक्रण: विश्व में ई-अपशिष्ट की समस्या

  • बेसल कन्वेंशन का उद्देश्य राष्ट्रों के मध्य खतरनाक अपशिष्ट के आवागमन को कम करना  तथा विनियमित करना है।
  • कन्वेंशन के साथ भी, यह अनुमान है कि 2018 में वैश्विक स्तर पर 50 मिलियन टन ई- अपशिष्ट उत्पन्न हुआ था।
  • विश्व की 66 प्रतिशत आबादी के ई- अपशिष्ट कानून के दायरे में आने के बावजूद, प्रत्येक वर्ष वैश्विक ई- अपशिष्ट का मात्र 20 प्रतिशत ही पुनर्नवीनीकरण किया जाता है
  • अतीत में, चीन को विश्व में सबसे बड़ा ई- अपशिष्ट डंपिंग स्थल माना जाता रहा है। ऊपर दिए गए डेटा में  मात्र राष्ट्रीय स्तर पर उत्पन्न ई- अपशिष्ट सम्मिलित है  तथा इसमें अपशिष्ट आयात (वैध एवं अवैध दोनों)  सम्मिलित नहीं हैं जो भारत तथा चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में पर्याप्त मात्रा में उपस्थित हैं।

 

भारत में ई-अपशिष्ट की समस्या

  • श्व आर्थिक मंच (वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम) 2018 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत 180 देशों में 177वें स्थान पर है एवं पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2018 में नीचे के पांच देशों में शामिल है।
  • इसके अतिरिक्त, भारत संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जापान तथा जर्मनी के  पश्चात शीर्ष ई- अपशिष्ट उत्पादक देशों में विश्व में पांचवें स्थान पर है।
  • भारत  प्रतिवर्ष औपचारिक रूप से  उत्पादित होने वाले कुल ई- अपशिष्ट के 2 प्रतिशत से भी कम का पुनर्चक्रण करता है।
  • भारत प्रतिवर्ष दो मिलियन टन से अधिक ई- अपशिष्ट उत्पन्न करता है तथा दुनिया भर के अन्य देशों से भारी मात्रा में ई- अपशिष्ट का आयात करता है।
  • खुले डंपिंग साइट में डंपिंग करना एक आम दृश्य है जो भूजल संदूषण, खराब स्वास्थ्य  तथा  अन्य बहुत सारे मुद्दों को जन्म देता है।
  • ई- अपशिष्ट संग्रह, परिवहन, प्रसंस्करण तथा पुनर्चक्रण के क्षेत्र में अनौपचारिक क्षेत्र का वर्चस्व है।

भारत में ई अपशिष्ट प्रबंधन

  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ई- अपशिष्ट के उत्पादन को कम करने तथा पुनर्चक्रण को बढ़ाने के लिए 2016 में ई- अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम लागू किया।
    • इन नियमों के तहत, सरकार ने विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी/ईपीआर) की शुरुआत की, जो उत्पादकों को उनके द्वारा उत्पादित ई- अपशिष्ट का 30 प्रतिशत से 70 प्रतिशत (सात वर्ष से अधिक) एकत्र करने के लिए उत्तरदायी बनाता है।
  • जीआईजेड जैसे संगठनों ने अनौपचारिक क्षेत्र संघ को प्राधिकरण की दिशा में मार्गदर्शन करने के लिए वैकल्पिक व्यापार प्रतिमान विकसित किए हैं।
    • एक पारदर्शी पुनर्चक्रण प्रणाली में अनौपचारिक क्षेत्र का एकीकरण पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य प्रभावों पर बेहतर नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण है।
  • ई- अपशिष्ट में मूल्यवान सामग्रियों की कुशल पुनः प्राप्ति में महत्वपूर्ण आर्थिक संभावना है क्योंकि ई- अपशिष्ट सोना, चांदी तथा तांबे जैसी धातुओं का एक समृद्ध स्रोत है, जिसे पुनर्प्राप्त किया जा सकता है  एवं उत्पादन चक्र में वापस लाया जा सकता है।
  • भारत में ई- अपशिष्ट के पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन को सुगम बनाने तथा प्रभावी ढंग से लागू करने हेतु मार्च 2018 में सरकार द्वारा ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 में संशोधन किया गया था।

 

भारत में इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट प्रबंधन: सिफारिशें

  • सरकार को ई-अपशिष्ट के कुशल संग्रह तथा पुनर्चक्रण के लिए दक्षिण कोरिया जैसे अन्य देशों द्वारा अपनाई गई विधियों का उल्लेख करना चाहिए। सरकार को आवश्यक वित्तीय सहायता और तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करके नए उद्यमियों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
  • ई- अपशिष्ट के पुनर्चक्रण तथा निस्तारण से जुड़े स्टार्ट-अप की स्थापना को विशेष रियायतें देकर प्रोत्साहित किया जाए।
  • संगठित क्षेत्र तथा असंगठित क्षेत्र दोनों को समन्वय एवं सामंजस्यपूर्ण तरीके से कार्य करने की आवश्यकता है: असंगठित क्षेत्र द्वारा सामग्री एकत्र की जाएगी जिसे पर्यावरण के अनुकूल तरीके से संसाधित करने के लिए संगठित क्षेत्र को सौंप दिया जाएगा।
  • सरकार को पर्यावरण की रक्षा तथा आम जनता  अन्य अन्य जीवित जीवों  का कल्याण सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षित रूप से ई- अपशिष्ट के पुनर्चक्रण तथा निस्तारण हेतु एक अग्र-सक्रिय पहल करनी चाहिए
  • ई-अपशिष्ट प्रबंधन में नागरिकों की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है। कुछ रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) के पास ई- अपशिष्ट को एकत्रित करने के लिए स्पष्ट रूप से चिह्नित अलग-अलग डिब्बे हैं, जिनका अन्य समाजों द्वारा भी पालन करने की आवश्यकता है। इस  क्रियाकलाप हेतु छात्रों तथा महिला  स्वयं सहायता समूहों को को उनके संबंधित आरडब्ल्यूए में लामबंद किया जा सकता है।

 

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