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श्रीलंका में आपातकालीन शासन- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 2: अंतर्राष्ट्रीय संबंध– भारत एवं उसके पड़ोसी देशों के साथ- संबंध।
समाचारों में श्रीलंका में आपातकालीन शासन
- हाल ही में, श्रीलंका के कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने एक निर्धारित संसदीय मतदान में एक नए राष्ट्रपति का निर्वाचन करने से कुछ दिन पूर्व आपातकाल की घोषणा की।
- राजनीतिक हंगामे एवं गहराते आर्थिक संकट के मध्य श्रीलंका में आपातकाल घोषित कर दिया गया। श्री विक्रमसिंघे प्रतियोगिता में सबसे आगे हैं।
- अप्रैल 2022 के पश्चात से यह तीसरी बार है जब श्रीलंका में आपातकाल लागू है।
श्रीलंका में आपातकालीन शासन
- शक्तियां: आपातकाल की स्थिति राष्ट्रपति को श्रीलंका में वर्तमान कानूनों को अतिव्यापित (ओवरराइड) करने वाले नियम निर्मित करने की शक्ति प्रदान करती है।
- संबद्ध चिंताएं: लोकतंत्र के समर्थकों का मानना है कि आपातकालीन शक्तियों से मनमानी गिरफ्तारी होगी, विशेष रूप से असंतुष्टों की।
- यह व्यापक रूप से माना जाता है कि आपातकाल लागू करना एक अलोकतांत्रिक क्रूर कार्य है।
- श्रीलंकाई आपातकाल एक लोकतांत्रिक समाज में अपने नागरिकों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित कर सकता है।
- संवैधानिक प्रावधान: संवैधानिक रूप से, राष्ट्रपति का पद रिक्त होने पर एक माह के भीतर संसद के माध्यम से एक नए राष्ट्रपति का निर्वाचन किया जाना चाहिए।
- नामांकन शीघ्र ही किया जाएगा, संसद में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों की अंतिम सूची को ज्ञात किया जाएगा एवं मतदान बुधवार को आयोजित होगा।
श्रीलंका के आर्थिक संकट के पीछे प्रमुख कारण
विदेशी मुद्रा भंडार की कमी
- क्रमिक सरकारों के आर्थिक कुप्रबंधन ने श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भंडार के 70 प्रतिशत को समाप्त कर दिया है, मात्र 2.31 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार, जिसमें 4 बिलियन डॉलर से अधिक के ऋण पुनर्दायगी शेष है है।
- चीनी, दालों एवं अनाज जैसी आवश्यक वस्तुओं के आयात पर श्रीलंका की उच्च निर्भरता आर्थिक मंदी में ईंधन को भी सम्मिलित करते है क्योंकि द्वीपीय राष्ट्र के पास अपने आयात बिलों का भुगतान करने के लिए विदेशी भंडार की कमी है।
महामारी का प्रभाव
- पर्यटन एवं विदेशी प्रेषण पर द्वीपीय राष्ट्र की भारी निर्भरता को कोविड-19 महामारी द्वारा समाप्त कर दिया गया था जिसने वर्तमान संकट के लिए बहाना तैयार किया।
- पर्यटन, जो श्रीलंका के सकल घरेलू उत्पाद का 10 प्रतिशत से अधिक गठित करता है, तीन प्रमुख देशों: भारत, रूस और यूके के आगंतुकों को खोने के बाद आहत हुआ था।
रूस-यूक्रेन युद्ध-प्रेरित मुद्रास्फीति
- जारी रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणामस्वरूप कच्चे तेल, सूरजमुखी तेल एवं गेहूं की कीमतों में भारी मुद्रास्फीति हुई।
- कच्चे तेल की कीमतें 14 वर्षों के रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गईं तथा कच्चे तेल की कीमतें संकट के चरम पर 125 डॉलर प्रति बैरल से अधिक बढ़ गईं।
- भारत को 500 मिलियन डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट के वादे के तहत 40,000 मीट्रिक टन डीजल की आपूर्ति करके कदम उठाना पड़ा। भारत ने विगत 50 दिनों में अब तक 2,00,000 मीट्रिक टन से अधिक ईंधन की आपूर्ति की है।
कृषि क्षेत्र का संकट
- कृषि को 100 प्रतिशत जैविक बनाने हेतु विगत वर्ष सभी रासायनिक उर्वरकों पर प्रतिबंध लगाने के राजपक्षे सरकार के निर्णय ने देश के कृषि उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया, विशेष रूप से चावल तथा चीनी उत्पादन में इस निर्णय को उलटने के लिए बाध्य किया।
एफडीआई में तीव्र गिरावट
- सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2019 एवं 2018 में क्रमशः 793 मिलियन डॉलर तथा 1.6 बिलियन डॉलर की तुलना में 2020 में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट/एफडीआई) 548 मिलियन था।