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तालिबान को संबद्ध करना- यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 2: अंतर्राष्ट्रीय संबंध- भारत एवं उसके पड़ोसी देशों के साथ- संबंध।
तालिबान को संबद्ध करना- संदर्भ
- हाल ही में, भारत ने मास्को में तालिबान अधिकारियों के साथ 10 देशों की बैठक में भाग लिया
- भारत ने एक संयुक्त बयान पर भी हस्ताक्षर किए जो अफगानिस्तान में “नवीन वास्तविकता” को मान्यता प्रदान करता है
- ये कदम इस्लामी समूह के प्रति भारत के दृष्टिकोण में एक निर्णायक परिवर्तन का संकेत देते हैं।
- भारत ने पूर्व में तालिबान के साथ किसी भी प्रकार के जुड़ाव के प्रति कड़ा रुख अपनाया था।
भारत-अफगानिस्तान पहेली को समझना
तालिबान को संबद्ध करना- वर्तमान परिदृश्य
- काबुल पर नियंत्रण: अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ने के पश्चात, तालिबान ने लगातार प्रगति की एवं अफगान राष्ट्रीय बलों को हराकर अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया।
- भारत का रुख:
- बातचीत के दौरान, भारत ने दोहा, कतर में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के साथ संपर्क स्थापित किया था।
- मास्को प्रतिनिधिमंडल: हाल ही में, भारत ने पहली बार तालिबान के एक शीर्ष प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की, जिसमें उप प्रधान मंत्री अब्दुल सलाम हनफ़ी शामिल थे।
- संयुक्त वक्तव्य में, भारत एवं अन्य ने तालिबान से एक समावेशी सरकार बनाने की अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखने एवं यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि उनके क्षेत्र का उपयोग आतंकवादी समूहों द्वारा नहीं किया जाए।
- आतंकवाद के विरुद्ध प्रतिबद्धता: तालिबान ने प्रतिबद्धता जताई कि वे किसी भी आतंकवादी संगठन द्वारा अफगान भूमि का उपयोग नहीं करने देंगे।
तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर नियंत्रण
तालिबान को संबद्ध करना – अफगानिस्तान में भारत के हित
- अफगानिस्तान में भारत के महत्वपूर्ण हित हैं। 20 वर्षों में, इसने अफगानिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश किया है जिसे वह संरक्षित करना चाहता है।
- आतंकवाद का खतरा: पिछली बार तालिबान के दौरान, भारत ने कश्मीर में हिंसक घटनाओं में वृद्धि के साथ-साथ कंधार में एक भारतीय विमान के अपहरण देखा। भारत इस प्रकार की घटनाओं से बचना चाहता है।
- तालिबान के साथ जुड़ाव एक रणनीतिक आवश्यकता है: एक पृथक तालिबान उन्हें सिर्फ एक पाकिस्तानी उपग्रह बनने हेतु प्रेरित कर सकता है जो भारत के हित में नहीं होगा।
संपादकीय विश्लेषण: भारत को तालिबान 2.0 के साथ प्रत्यक्ष संबंध स्थापित करना चाहिए
तालिबान को संबद्ध करना- आगे की राह
- क्षेत्रीय कूटनीति का पालन करना: भारत की वर्तमान अफगान नीति को लागू करने के लिए द्विपक्षीय कूटनीति के स्थान पर ।
- द्विपक्षीय रूप से, तालिबान के साथ भारत का अधिक प्रभाव नहीं है।
- किंतु अफ़ग़ानिस्तान के नए शासक, जो एक ऐसी अर्थव्यवस्था से जूझ रहे हैं जो पतन के कगार पर है, इस बार क्षेत्रीय शक्तियों के साथ संबद्ध होने हेतु अधिक उत्सुक हैं।
- मास्को 10 का लाभ उठाएं: तालिबान को अपने आतंकी संबंधों को विच्छेद करते हुए एवं अफगानिस्तान को स्थिर होते हुए देखने में भी उनकी रुचि है।
- मास्को 10 में चीन, पाकिस्तान, ईरान एवं मध्य एशियाई गणराज्य सम्मिलित हैं।
- स्थिरता सुनिश्चित करना: इसके लिए तालिबान को अपनी सरकार को सामने प्रस्तुत करने, अन्य राजनीतिक एवं जातीय समुदायों के साथ सत्ता साझा करने तथा अफगानों के मौलिक अधिकारों का सम्मान करने हेतु तैयार रहना चाहिए।
तालिबान को संबद्ध करना- निष्कर्ष
- जबकि भारत एवं अन्य क्षेत्रीय देशों को आर्थिक संकट की इस अवधि के दौरान अफगानों की सहायता करनी चाहिए, उन्हें अपने सामूहिक आर्थिक एवं राजनीतिक प्रभाव का उपयोग तालिबान पर अफगानिस्तान में राजनीतिक रियायतें देने के लिए दबाव बनाने हेतु करना चाहिए।