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पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) क्या है?
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन या ईआईए को पर्यावरण पर प्रस्तावित गतिविधि/परियोजना के प्रभाव का पूर्वानुमान करने हेतु अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
- ईआईए एक निर्णय निर्माण उपकरण है जो एक परियोजना के लिए विभिन्न विकल्पों की तुलना करता है एवं उस एक की पहचान करने का प्रयास करता है जो आर्थिक एवं पर्यावरणीय लागतों तथा लाभों के सर्वोत्तम संयोजन का प्रतिनिधित्व करता है।
- यह उन लोगों को विकास परियोजनाओं के संभावित प्रभावों के बारे में जानकारी प्रदान करता है जो यह निर्णय लेते हैं कि परियोजना को अधिकृत किया जाना चाहिए अथवा नहीं।
ईआईए क्या करता है?
- ईआईए परियोजना के लाभकारी एवं प्रतिकूल दोनों परिणामों की जांच करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि परियोजना कार्यान्वयन के दौरान इन प्रभावों को ध्यान में रखा जाए।
- ईआईए प्रस्तावित परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का अभिनिर्धारण करने में सहायता करता है, प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के उपाय प्रस्तावित करता है एवं पूर्वानुमान लगाता है कि क्या शमन लागू होने के बाद भी महत्वपूर्ण प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव होंगे।
ईआईए के लाभ
- पर्यावरण की सुरक्षा, संसाधनों का इष्टतम उपयोग एवं परियोजना के समय तथा लागत की बचत।
- सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देने, निर्णय निर्माण कर्ताओं को सूचित करने तथा पर्यावरण की दृष्टि से अच्छी परियोजनाओं के लिए आधार तैयार करने में सहायता करके संघर्षों को कम करता है।
- एक परियोजना के सभी चरणों में, अन्वेषण एवं योजना से, निर्माण, संचालन, डीकमीशनिंग एवं साइट बंद होने से परे लाभ देखा गया।
ईआईए का उद्विकास
- EIA पर्यावरण संरक्षण के लिए 20वीं सदी के सफल नीतिगत नवाचारों में से एक है।
- सैंतीस वर्ष पूर्व, कोई ईआईए अस्तित्व में नहीं था किंतु आज, यह अनेक देशों में एक औपचारिक प्रक्रिया है तथा वर्तमान में 100 से अधिक देशों में इसका अभ्यास किया जाता है।
- ईआईए एक अनिवार्य नियामक प्रक्रिया के रूप में 1970 के दशक के प्रारंभ में अमेरिका में राष्ट्रीय पर्यावरण नीति अधिनियम (एनईपीए) 1969 के कार्यान्वयन के साथ उत्पन्न हुई थी।
- आरंभिक विकास का एक बड़ा हिस्सा कनाडा, ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैंड (1973-74) जैसे कुछ उच्च आय वाले देशों में हुआ।
- यद्यपि, कुछ विकासशील देश भी थे, जिन्होंने अपेक्षाकृत शीघ्र रूप से EIA की शुरुआत की – कोलंबिया (1974), फिलीपींस (1978)।
- ईआईए प्रक्रिया वास्तव में 1980 के दशक के मध्य के बाद आरंभ हुई।
- 1989 में, विश्व बैंक ने प्रमुख विकास परियोजनाओं के लिए ईआईए को अंगीकृत किया, जिसमें एक ऋण ग्राही देश को बैंक की देखरेख में एक पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन करना था।
भारत में ईआईए का इतिहास
- ईआईए 1976-77 में आरंभ हुआ जब योजना आयोग ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग को नदी-घाटी परियोजनाओं की पर्यावरणीय दृष्टिकोण से जांच करने के लिए कहा।
- 1994 तक, केंद्र सरकार से पर्यावरण मंजूरी एक प्रशासनिक निर्णय था तथा इसमें विधायी समर्थन का अभाव था।
- 1994 में, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ( यूनियन मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरमेंट एंड फॉरेस्ट्स/एमईएफ) ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के तहत, किसी भी गतिविधि के विस्तार या आधुनिकीकरण या नई परियोजनाओं की स्थापना के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति (एनवायरमेंटल क्लीयरेंस/ईसी) को अनिवार्य बनाने के लिए एक ईआईए अधिसूचना जारी की।
ईआईए प्रक्रिया
ईआईए प्रक्रिया के आठ चरण हैं जो नीचे दिए गए हैं:
- संवीक्षा/स्क्रीनिंग: ईआईए का पहला चरण, जो यह निर्धारित करता है कि प्रस्तावित परियोजना को ईआईए की आवश्यकता है अथवा नहीं एवं यदि ऐसा आवश्यक है, तो मूल्यांकन के किस स्तर की आवश्यकता है।
- परिदृश्यन/स्कोपिंग: यह चरण उन प्रमुख मुद्दों एवं प्रभावों का अभिनिर्धारण करता है जिनकी और आगे जांच की जानी चाहिए। यह चरण अध्ययन की सीमा तथा समय सीमा को भी परिभाषित करता है।
- प्रभाव विश्लेषण/इंपैक्ट एनालिसिस: ईआईए का यह चरण प्रस्तावित परियोजना के संभावित पर्यावरणीय एवं सामाजिक प्रभाव का निर्धारण एवं पूर्वानुमान करता है तथा महत्व का मूल्यांकन करता है।
- शमन/मिटिगेशन: ईआईए में यह कदम विकास गतिविधियों के संभावित प्रतिकूल पर्यावरणीय परिणामों को कम करने तथा उनसे बचने के लिए कार्यों की संस्तुति करता है।
- रिपोर्टिंग: यह चरण निर्णय निर्माण निकाय एवं अन्य इच्छुक पक्षकारों की रिपोर्ट के रूप में ईआईए के परिणाम प्रस्तुत करता है।
- ईआईए की समीक्षा: यह ईआईए रिपोर्ट की पर्याप्तता एवं प्रभावशीलता की जांच करती है तथा निर्णय निर्माण के लिए आवश्यक जानकारी प्रदान करती है।
- निर्णय निर्माण: यह निर्धारित करता है कि परियोजना को अस्वीकार कर दिया गया है, स्वीकृत किया गया है अथवा इसमें और परिवर्तनों की आवश्यकता है।
- पश्च अनुश्रवण: परियोजना के प्रारंभ होने के पश्चात यह चरण अस्तित्व में आता है। यह सुनिश्चित करने के लिए जाँच करता है कि परियोजना के प्रभाव कानूनी मानकों से अधिक नहीं हैं एवं शमन उपायों का कार्यान्वयन ईआईए रिपोर्ट में वर्णित रीति के अनुसार है।