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कृषि ऋण माफी यूपीएससी: प्रासंगिकता
- जीएस 3: प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सब्सिडी से संबंधित मुद्दे
भारत में ऋण माफी: संदर्भ
- हाल ही में, नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) एवं भारत कृषक समाज ने संयुक्त रूप से तीन राज्य सरकारों- पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा महाराष्ट्र द्वारा हाल ही में कृषि ऋण माफी पर एक रिपोर्ट जारी की है।
ऋण माफी पर नाबार्ड की रिपोर्ट: प्रमुख निष्कर्ष
- राज्यों द्वारा उधार: अध्ययन से पता चला है कि पंजाब का एक औसत किसान उत्तर प्रदेश (यूपी) की तुलना में चार गुना अधिक एवं महाराष्ट्र की तुलना में पांच गुना अधिक धन उधार लेता है।
- अध्ययन से यह भी ज्ञात होता है कि उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र में क्रमशः 84,000 रुपये तथा 62,000 रुपये उधार लेने की तुलना में, पंजाब में एक सीमांत किसान प्रतिवर्ष 3.4 लाख रुपये उधार लेता है।
- सीमांत किसान वह होता है जिसके पास एक हेक्टेयर से कम (<1 हेक्टेयर) की जोत होती है।
- रिपोर्ट के अनुसार, इन राज्यों में 40 प्रतिशत से अधिक “अत्यधिक” संकटग्रस्त किसानों को कोई कृषि ऋण माफी (फार्म लोन वेवर/FLW) लाभ प्राप्त नहीं हुआ।
- तीन राज्यों में, पंजाब के किसानों ने प्रति किसान वर्ग के लिए सर्वाधिक राशि उधार ली तथा गैर-संस्थागत स्रोतों पर उनकी निर्भरता भी सभी किसान श्रेणियों में सर्वाधिक रही थी।
- जोत के आकार के साथ संस्थानों से लिए गए ऋण की औसत राशि में वृद्धि हुई।
- कर्जमाफी ने विलफुल डिफॉल्ट को बढ़ावा दिया: अध्ययन से यह भी पता चला है कि ऋण माफी से किसानों द्वारा विलफुल डिफॉल्ट की संभावना बढ़ गई एवं ऋण माफी ने ईमानदार किसानों को भी कृषि ऋण पर चूक करने के लिए प्रेरित किया।
- संस्थागत ऋण: तीन राज्यों में, पंजाब के संस्थागत स्रोतों से ऋण प्राप्त करने वाले किसानों का अनुपात उत्तर प्रदेश तथा महाराष्ट्र की तुलना में अधिक था।
- ब्याज दरें: गैर-संस्थागत ऋणों पर ब्याज दरें संस्थागत ऋणों की तुलना में बहुत अधिक पाई गईं।
- संस्थागत ऋणों में चूकः गैर-संस्थागत ऋणों की तुलना में संस्थागत ऋणों पर चूक की संभावना अधिक थी।
- किसान क्रेडिट कार्ड: गैर-कृषि उपयोग के लिए केसीसी (किसान क्रेडिट कार्ड) की निधि का अपयोजन (डायवर्जन) पंजाब के मामले में सर्वाधिक एवं उत्तर प्रदेश के मामले में न्यूनतम था।
- अध्ययन से यह भी पता चला है कि एक औसत किसान के लिए धन का विचलन अपरिहार्य तथा अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है।
- कृषि ऋण माफी एवं राजनीतिक संबंध: चुनाव अभियानों के दौरान, राजनीतिक दल कृषि ऋण पर छूट का वादा करने वाले प्रथम व्यक्ति बनने के लिए दौड़ लगाते हैं।
- इसके अतिरिक्त, इन छूटों को भारतीय किसानों के समक्ष उत्पन्न होने वाले किसी भी संकट के लिए ‘राम-बाण’ समाधान के रूप में रखा गया है।
- यद्यपि, अध्ययन से पता चला है कि अनेक उत्तरोत्तर सरकारों के इन ऋण माफी को लागू करने बावजूद, किसान संकट और अधिक तीव्र हो गया है, इसे कम करना तो दूर की बात है।
- राज्य के वित्त पर प्रभाव: अध्ययन से पता चला है कि पंजाब में कर्ज माफी ने अन्य विभागों पर व्यय को प्रभावित किया है।
- पंजाब में, विकासात्मक व्यय तथा पूंजीगत परिव्यय (जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में) दोनों बकाया देनदारियों एवं बाजार उधार के कारण गिर गए।
- किसान आत्महत्या के कारण: अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि तीनों राज्यों में कोविड-19 द्वारा आरोपित किए गए प्रतिबंधों के कारण, फसल की लगातार हानि, ऋणग्रस्तता एवं कृषि आय पर अत्यधिक निर्भरता एक साथ किसान आत्महत्या के प्रमुख कारण थे।
ऋण माफी एक समाधान के रूप में
- कर्जमाफी किसान संकट को कम करने का एक कारगर तरीका नहीं है एवं यह केवल एक अल्पकालिक समाधान है जिसके बाद किसान ऋण लेने के लिए वापस चले जाएंगे।
- ऋण माफी ने मध्यम एवं दीर्घावधि में किसानों के मध्य ऋण की व्यवस्था को और बदतर कर दिया।
- कृषि ऋण माफी को तीव्र कृषि संकट की प्रतिक्रिया के रूप में और भविष्य के ऋण की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया गया था, किंतु यह एक राजनीतिक उपकरण के रूप में उभरने के लिए विकसित हुआ है जिसका उपयोग राजनीतिक दलों द्वारा ग्रामीण मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए रणनीतिक रूप से किया जाता है।
- कर्जमाफी का डिजाइन ऐसा है कि जिन लोगों का ऋण माफ किया जाना चाहिए था उनका एक बड़ा वर्ग इस प्रक्रिया का लाभ नहीं उठा पा रहा था।