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कृषि में उर्वरक का उपयोग

कृषि में उर्वरक का उपयोग

कुछ माह पूर्व, किसानों के लिए बिक्री मूल्य को वर्तमान स्तर पर बनाए रखने एवं इस कारण से किसानों पर बोझ कम करने के लिए डीएपी उर्वरक की कीमत में 140% की वृद्धि की गई थी। इस कदम ने भारतीय कृषि में उर्वरकों के उपयोग में पुनः और वृद्धि की है। इस लेख में, हम भारतीय कृषि में उर्वरक मुद्दे को समझेंगे।

आरंभ में, आइए पहले डीएपी से संबंधित दो मूलभूत प्रश्नों को समझें।

सब्सिडी में बढ़ोतरी क्यों?

  • फॉस्फोरिक एसिड, अमोनिया इत्यादि के मूल्यों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वृद्धि के कारण उर्वरकों की कीमत में वृद्धि हो रही है।
  • इस संपूर्ण मूल्य वृद्धि को केंद्र सरकार वहन कर रही है एवं डीएपी उर्वरक विगत दर पर उपलब्ध करा रही है।

 

डीएपी क्या है?

  • डीएपी भारत में दूसरा सर्वाधिक प्रयुक्त से किया जाने उर्वरक है।
  • इस उर्वरक में फास्फोरस अधिकतम मात्रा में होता है।

 

भारत में उर्वरक सब्सिडी: एक संक्षिप्त परिचय

  • सब्सिडी व्यवस्था के अंतर्गत कृषक अधिकतम खुदरा मूल्य पर पर उर्वरक खरीदते हैं
  • हालांकि यह अधिकतम खुदरा मूल्य (मैक्सिमम रिटेल प्राइस/ एमआरपी) बाजार दर से कम है।
  • यह जानना महत्वपूर्ण है कि जहां यूरिया की कीमत सरकार द्वारा नियंत्रित की जाती है, वहीं अन्य उर्वरकों के लिए इसे नियंत्रण मुक्त किया जाता है।
  • वास्तव में, कुछ गैर-यूरिया उर्वरकों के लिए, सरकार ने पोषक तत्व आधारित सब्सिडी या न्यूट्रिएंट्स बेस्ड सब्सिडी (एनबीएस) योजना आरंभ की।

 

उर्वरक सब्सिडी की आवश्यकता क्यों है?

  • किसानों को मूल्य वृद्धि से सुरक्षित करना: उर्वरक सहायिकी (सब्सिडी) प्रदान कर, सरकार किसानों को भविष्य में किसी भी मूल्य वृद्धि के प्रति कुशन प्रदान करती है। उर्वरक सब्सिडी किसानों को उनकी एक निश्चित सहायता एवं इस प्रकार बाजार की अनिश्चितताओं के बारे में ज्यादा सोचे बिना फसलों के उत्पादन का आश्वासन प्रदान करती है।
  • उत्पादन को प्रोत्साहन: उर्वरक सहायिकी के कारण, उत्पादन में भी वृद्धि होती है क्योंकि किसान पूर्व में किए गए निवेश के साथ फसल उगाते हैं।

 

उर्वरक के अति प्रयोग को रोकने हेतु कदम

  • दिसंबर 2015 से, भारत सरकार पर्यावरण पर उर्वरकों के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए सभी यूरिया आधारित उर्वरकों की अनिवार्य नीम-लेपन (नीम-कोटिंग) लागू कर रही है।
  • 2018 से, सरकार ने पॉइंट-ऑफ-सेल मशीनों पर पंजीकृत होने वाले किसानों को वास्तविक बिक्री पर कंपनियों को उर्वरक सब्सिडी भुगतान भी किया है।
  • इसके अतिरिक्त, सब्सिडी युक्त उर्वरक बैग की कुल संख्या को सीमित करने की एक आगामी योजना है जिसे कोई भी व्यक्ति पूरे फसल मौसम के दौरान खरीद सकता है।

उर्वरक सब्सिडी के मुद्दे

  • कोई अस्वीकृति नीति नहीं: वर्तमान में, कोई भी पीओएस मशीनों के माध्यम से कितनी भी मात्रा में उर्वरक खरीद सकता है। यद्यपि, प्रति लेनदेन 100 बैग की एक उच्चतम सीमा है, हिंदू लेनदेन की संख्या पर कोई सीमा नहीं रखी गई है।
  • पर्यावरण क्षरण: सब्सिडी ने कृषि भूमि पर उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग को सक्षम बनाया है। यह विशेष रूप से यूरिया के संदर्भ में सत्य है, जिसने पिछले दशक से मामूली कीमतों में वृद्धि देखी है। उर्वरकों के इस बढ़े हुए उपयोग से मृदा में अनुत्पादकता एवं जल-आधारित पारिस्थितिक तंत्र में सुपोषण जैसी अनेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
  • सब्सिडी की उच्च आर्थिक लागत होती है, जिससे राज्य के राजकोष पर दबाव पड़ता है। उर्वरकों के अधिक प्रयोग से भूजल भी प्रदूषित होता है। इस मुद्दे के अधिक चिंताजनक प्रभाव हैं क्योंकि जो शिशु नाइट्रेट के उच्च स्तर के साथ पानी पीते हैं (या नाइट्रेट-दूषित जल से निर्मित खाद्य पदार्थ खाते हैं) उन्हें ब्लू बेबी सिंड्रोम नामक रोग हो सकता है।

 

भारत में उर्वरक का उपयोग: सुझाव

  • सरकार को किसानों की सहायता करने हेतु वैकल्पिक तरीकों पर विचार करना चाहिए जैसे सब्सिडी के  स्थान पर प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण का उपयोग करना। इससे न केवल गैर-कृषि उपयोग के लिए इसके विपथन (डायवर्जन) पर अंकुश लगेगा बल्कि धोखाधड़ी करने वाले लाभार्थियों की संख्या में भी कमी आएगी।
  • इसके अतिरिक्त, जैसा कि 2012 में शरद पवार समिति द्वारा सिफारिश की गई थी, सरकार पर उर्वरक सब्सिडी के वित्तीय बोझ को कम करने के लिए यूरिया को एनबीएस योजना के तहत शामिल किया जाना चाहिए
  • साथ ही, रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को हतोत्साहित करने एवं वर्मीकम्पोस्ट जैसे जैविक उर्वरकों को अपनाने को प्रोत्साहित करने पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
  • दीर्घकाल में किसानों की कृषि आय में वृद्धि की जानी चाहिए ताकि वे भविष्य में स्वेच्छा से अपनी सब्सिडी त्याग दें।

 

कृषि में उर्वरक: निष्कर्ष

  • अब यह उचित समय है कि आदान (इनपुट)-आधारित सब्सिडी को निवेश-आधारित सब्सिडी से प्रतिस्थापित किया जाए ताकि कृषकों की आय दोगुनी करने के उद्देश्य को प्राप्त किया जा सके एवं इस प्रकार कृषि को एक लाभकारी व्यवसाय बनाया जा सके।

 

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