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वन (संरक्षण) नियम, 2022- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 2: शासन, प्रशासन एवं चुनौतियां- विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकार की नीतियां एवं अंतः क्षेप तथा उनकी अभिकल्पना एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।
वन (संरक्षण) नियम, 2022, चर्चा में क्यों है?
- पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री, श्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में वन (संरक्षण) नियम, 2022 की विभिन्न विशेषताओं के बारे में जानकारी दी।
- उन्होंने वन (संरक्षण) नियम, 2022 की विभिन्न विशेषताओं के बारे में भी स्पष्टीकरण प्रदान किया।
वन (संरक्षण) नियम, 2022
- वन (संरक्षण) नियम, 2022 के बारे में: यह वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा 4 एवं वन (संरक्षण) नियम, 2003 के अधिक्रमण में प्रदत्त किया गया है।
- मुख्य प्रावधान: वन (संरक्षण) नियम, 2022 निम्नलिखित की स्थापना हेतु प्रावधान करता है-
- सलाहकार समिति
- परियोजना संवीक्षा (स्क्रीनिंग) समिति
- अधिकार प्राप्त क्षेत्रीय समितियां
वन (संरक्षण) नियम, 2022 की प्रमुख विशेषताएं
- सलाहकार समिति: यह सलाहकार समिति की भूमिका को परिभाषित करती है जिसमें एक अध्यक्ष सहित 6 सदस्य होते हैं। यह निम्नलिखित के संबंध में परामर्श देने अथवा संस्तुति करने तक सीमित है-
- इसे संदर्भित प्रस्तावों के संबंध में संबंधित धाराओं के तहत अनुमोदन प्रदान करना एवं
- केंद्र सरकार द्वारा वनों के संरक्षण से संबंधित कोई भी मामला इसे संदर्भित किया जाए।
- परियोजना संवीक्षा समिति: यह एक पांच सदस्यीय निकाय है जिसे प्रत्येक राज्य / केंद्र शासित प्रदेश में वन भूमि के दिक्परिवर्तन (डायवर्जन) से जुड़े प्रस्तावों की प्रारंभिक संवीक्षा हेतु गठित किया जाना है। यह माह में दो बार बैठक आयोजित करेगा एवं राज्य को निम्नलिखित विषयों पर परामर्श प्रदान करेगा-
- 5-40 हेक्टेयर के बीच की सभी गैर-खनन परियोजनाओं की समीक्षा 60 दिनों की अवधि के भीतर की जानी चाहिए एवं ऐसी सभी खनन परियोजनाओं की समीक्षा 75 दिनों के भीतर की जानी चाहिए।
- वृहद स्तर की परियोजनाओं के लिए समिति को 100 हेक्टेयर से अधिक गैर-खनन परियोजनाओं के लिए 120 दिन एवं खनन परियोजनाओं के लिए 150 दिन का समय मिलता है।
- अधिकार प्राप्त क्षेत्रीय समितियां: यह सभी रैखिक परियोजनाओं (जैसे सड़क, राजमार्ग इत्यादि) की जाँच करेगी जिसमें 40 हेक्टेयर तक की भूमि एवं 0.7 वितान (कैनोपी) घनत्व तक वन भूमि का उपयोग सम्मिलित है।
- प्रतिपूरक वनरोपण: आवेदक अन्य राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में प्रतिपूरक वनरोपण करने में सक्षम होंगे जहाँ वनावरण 20% से कम है। निम्नलिखित मामलों में-
- एक पहाड़ी अथवा पर्वतीय राज्य में वन भूमि का दिक्परिवर्तन (डायवर्जन) जिसमें हरित क्षेत्र अपने भौगोलिक क्षेत्र के दो-तिहाई से अधिक को आवरित करता है अथवा एक राज्य/संघ राज्य क्षेत्र में वन भूमि का डायवर्जन जिसमें वन क्षेत्र अपने भौगोलिक क्षेत्र के एक तिहाई से अधिक को आवरित करता है।
वन संरक्षण अधिनियम (फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट/FCA), 1980- प्रमुख प्रावधान
- वन संरक्षण अधिनियम (FCA), 1980 के बारे में: वन संरक्षण अधिनियम (FCA), 1980 भारत के वनों में जारी वनोन्मूलन को नियंत्रित करने के उद्देश्य से संसद द्वारा अधिनियमित किया गया था।
- वन संरक्षण अधिनियम भारत में वनों की कटाई को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कानून है।
- प्रमुख उद्देश्य: वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के उद्देश्य हैं-
- वनों की समग्रता एवं क्षेत्र को संरक्षित करते हुए इसके वनस्पतियों, जीवों तथा अन्य विविध पारिस्थितिक घटकों सहित वनों की रक्षा करना।
- वनों की जैव विविधता के विकास को सुगम बनाना
- वन भूमि को गैर-वन क्रियाकलापों जैसे कृषि, चराई अथवा किसी अन्य व्यावसायिक उद्देश्यों एवं अभिप्राय में परिवर्तन से रोकना।
- मुख्य विशेषताएं: वन संरक्षण अधिनियम (FCA), 1980 की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं-
- वन संरक्षण अधिनियम (FCA), अधिनियम के उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु केंद्र सरकार को मुख्य प्राधिकरण बनाता है।
- वन संरक्षण अधिनियम (FCA), 1980 अधिनियम के उल्लंघन के लिए दंड का प्रावधान करता है।
- वन संरक्षण के संबंध में केंद्र सरकार की सहायता हेतु एक सलाहकार समिति की स्थापना करता है।
- इस अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत, गैर-वन उद्देश्यों के लिए वन भूमि के दिक्परिवर्तन (डायवर्जन) के लिए केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति आवश्यक है।
- वन संरक्षण अधिनियम (FCA), 1980 वनों की चार श्रेणियों से संबंधित है- आरक्षित वन, ग्रामीण वन, संरक्षित वन तथा निजी वन।