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मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 12-32) | संवैधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32)

संवैधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32) – यूपीएससी परीक्षा के लिए प्राथमिकता

  • जीएस पेपर 2: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार,उद्विकास, विशेषताएं, संशोधन, महत्वपूर्ण प्रावधान एवं आधारिक संरचना।

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मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 12-32) – पृष्ठभूमि

  • मौलिक अधिकारों के बारे में: भारत के संविधान के अंतर्गत प्रत्याभूत मौलिक अधिकार प्रकृति में मौलिक हैं क्योंकि उन्हें उस देश के मौलिक कानून में समाविष्ट किया गया है।
    • अधिकारों का शाब्दिक अर्थ उन स्वतंत्रताओं से है जो व्यक्तिगत कल्याण के साथ-साथ समुदाय  के कल्याण के लिए आवश्यक होते हैं।
    • मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 12-35) जाति, धर्म, लिंग इत्यादि के आधार पर विभेद के बिना लागू होते हैं।
  • मौलिक अधिकारों का प्रमुख अधिदेश: भारत में राजनीतिक लोकतंत्र के आदर्शों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं।
  • मौलिक अधिकारों का स्रोत: भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) की उत्पत्ति अमेरिकी संविधान (संयुक्त राज्य अमेरिका के अधिकार विधेयक/यूनाइटेड स्टेट्स बिल ऑफ राइट्स) से हुई है।

 

संवैधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32)- प्रमुख बिंदु

  • भारत के संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार अनुच्छेद 32 द्वारा संरक्षित हैं जो स्वयं एक मौलिक अधिकार है।
  • अनुच्छेद 32 के अंतर्गत संवैधानिक उपचार का अधिकार कहता है कि यदि कोई व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा करना चाहता है तो वह सर्वोच्च न्यायालय में जा सकता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का मूल क्षेत्राधिकार: इसका तात्पर्य है कि पीड़ित पक्ष अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सीधे सर्वोच्च न्यायालय में जा सकता है।
    • अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के प्रत्याभूति दाता एवं रक्षक के रूप में कार्य करता है।
  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 संवैधानिक रिट प्रदान करता है जो भारतीयों को उनके मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए एक तंत्र प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 32 को मात्र मौलिक अधिकारों से संबंधित उपचार प्राप्त करने के लिए लागू किया जा सकता है। इस प्रकार, यह किसी भी  विधिक अथवा संवैधानिक अधिकार के लिए नहीं हो सकता है।

 

भारतीय संविधान में रिट के प्रकार- बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कॉर्पस) रिट

  • बंदी प्रत्यक्षीकरण के बारे में: बंदी प्रत्यक्षीकरण शब्द का लैटिन अर्थ है ‘आपके पास शरीर है’। यह अवैध हिरासत के विरुद्ध व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की रक्षा करता है।
  • बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट जारी करने का कारण: बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट सर्वोच्च न्यायालय/उच्च न्यायालय द्वारा जारी की जाती है।
    • बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट के तहत, सर्वोच्च न्यायालय/उच्च न्यायालय एक व्यक्ति को, जिसने किसी अन्य व्यक्ति को गिरफ्तार किया है का आदेश देता है की निरुद्ध किए गए दूसरे व्यक्ति को स-शरीर न्यायालय के समक्ष लाने का आदेश देता है।
  • बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट का दायरा: यह सर्वोच्च न्यायालय/ उच्च न्यायालय द्वारा निजी एवं सार्वजनिक दोनों प्राधिकरणों के विरुद्ध जारी किया जा सकता है। बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट निम्नलिखित स्थितियों में जारी नहीं की जा सकती-
    • जब हिरासत वैध है
    • जब कार्यवाही किसी विधायिका या न्यायालय की अवमानना ​​के लिए हो
    • निरोध (नजरबंदी) एक सक्षम न्यायालय द्वारा है
    • नजरबंदी न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

 

भारतीय संविधान में रिट के प्रकार- परमादेश (मैंडमस) रिट 

  • परमादेश के बारे में: परमादेश का अर्थ है ‘हम आदेश देते हैं’। सर्वोच्च न्यायालय/उच्च न्यायालय सार्वजनिक अधिकारी को आदेश देने के लिए परमादेश रिट जारी करते हैं जो अपने कर्तव्य का पालन करने में विफल रहे हैं अथवा अपने कर्तव्य को करने से इनकार कर दिया है।
    • सार्वजनिक अधिकारियों को अपना काम पुनः प्रारंभ करने हेतु बाध्य करने के लिए न्यायालयों द्वारा परमादेश रिट जारी की जाती है।
    • एक सार्वजनिक प्राधिकरण को अपना कर्तव्य करने का निर्देश देने के लिए न्यायालयों द्वारा परमादेश रिट जारी की जाती है।
  • परमादेश रिट का दायरा: सार्वजनिक अधिकारियों के अतिरिक्त, किसी भी सार्वजनिक निकाय, एक निगम, एक अवर न्यायालय, एक न्यायाधिकरण अथवा सरकार के विरुद्ध समान उद्देश्य के लिए परमादेश जारी किया जा सकता है।
    • निजी व्यक्तियों (बंदी प्रत्यक्षीकरण के विपरीत) के विरुद्ध परमादेश रिट जारी नहीं की जा सकती।
  • निम्नलिखित स्थितियों में परमादेश रिट जारी नहीं किया जा सकता है-
    • विभागीय निर्देश को प्रवर्तित कराने हेतु जिसमें कोई वैधानिक बल नहीं है
    • किसी को कार्य करने का आदेश देने के लिए जब कार्य की प्रकृति विवेकाधीन हो एवं अनिवार्य न हो
    • एक संविदात्मक दायित्व को लागू करने के लिए
    • भारतीय राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपालों के  विरुद्ध परमादेश रिट जारी नहीं किया जा सकता है
    • न्यायिक क्षमता में कार्य करने वाले उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के विरुद्ध परमादेश रिट जारी नहीं किया जा सकता है।

 

भारतीय संविधान में रिट के प्रकार- प्रतिषेध (प्रोहिबिशन) रिट

  • प्रतिषेध के बारे में: प्रतिषेध का साधारण सा अर्थ है ‘निषेध करना’। प्रतिषेध रिट अधीनस्थ न्यायिक  न्यायालयों की ओर से निष्क्रियता को निर्देशित करता है।
  • प्रतिषेधका अधिदेश: यह एक उच्चतर न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालय के विरुद्ध जारी किया जाता है ताकि अधीनस्थ न्यायालय को अपने अधिकार क्षेत्र के अतिलंघन या उस अधिकार क्षेत्र के बलापहार से निवारित जा सके जो अधिकार क्षेत्र उसके पास नहीं है।
  • प्रतिषेध रिट का दायरा: प्रतिषेध रिट मात्र न्यायिक एवं अर्ध-न्यायिक प्राधिकारियों के विरुद्ध जारी किया जा सकता है।
    • प्रशासनिक अधिकारियों, विधायी निकायों एवं निजी व्यक्तियों अथवा निकायों के विरुद्ध प्रतिषेध रिट जारी नहीं की जा सकती है।

 

भारतीय संविधान में रिट के प्रकार- उत्प्रेषण (सरशियोरेरी) रिट

  • उत्प्रेषण के बारे में: उत्प्रेषण का अर्थ है ‘प्रमाणित होना’ या ‘सूचित होना’। किसी अधीनस्थ न्यायालय से कार्यवाही को हटाने तथा इसे अपने समक्ष प्रस्तुत कराने के लिए उच्च न्यायालय की शक्ति।
  • उत्प्रेषण रिट जारी करने के लिए आधार: उत्प्रेषण की रिट निम्नलिखित आधारों पर जारी की जाती है-
    • अधिकार क्षेत्र का अतिरेक या
    • अधिकार क्षेत्र का अभाव या
    • विधि की त्रुटि।
  • उत्प्रेषण रिट का अधिदेश: यह एक उच्च न्यायालय (प्राधिकरण में) द्वारा अधीनस्थ न्यायालय अथवा न्यायाधिकरण को जारी किया जाता है जो उन्हें आदेश देता है-
    • या तो अधीनस्थ न्यायालयों के पास लंबित किसी मामले को स्वयं को स्थानांतरित करने  हेतु अथवा
    • एक वाद/मामले में अधीनस्थ न्यायालय के आदेश को निरस्त करने।
  • उत्प्रेषण रिट का दायरा: 
    • प्रारंभ में, उत्प्रेषण रिट मात्र न्यायिक एवं अर्ध-न्यायिक अधिकारियों के विरुद्ध जारी किया गया था, किंतु बाद में प्रशासनिक अधिकारियों को भी सम्मिलित करने के लिए इसका दायरे का विस्तार किया गया था।
    • विधायी निकायों एवं निजी व्यक्तियों अथवा निकायों के विरुद्ध उत्प्रेषण रिट जारी नहीं किया जा सकता है।

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भारतीय संविधान में रिट के प्रकार-  अधिकार पृच्छा (क्वो-वारंटो) रिट 

  • अधिकार पृच्छा रिट के बारे में: अधिकार पृच्छा का शाब्दिक अर्थ है ‘किस अधिकार या वारंट द्वारा।’ यह उन प्रशासनिक अधिकारियों के कार्यों की समीक्षा करता है जो सार्वजनिक पदों पर नियुक्तियाँ करते हैं।
    • न्यायालय ‘क्वो-वारंटो’ के रिट का उपयोग करते हुए किसी सार्वजनिक पद पर किसी व्यक्ति के दावे की वैधता की जांच करती है।
  • अधिकार पृच्छा जारी करने के लिए आधार: यह रिट न्यायालय द्वारा सार्वजनिक अधिकारियों को यह पूछने के लिए जारी किया जाता है कि वे सार्वजनिक पद हो किस प्राधिकार से धारण करते हैं।
  • क्वो-वारंटो रिट का दायरा:
    • अधिकार पृच्छा रिट मात्र तभी लागू किया जा सकता है जब किसी क़ानून या संविधान द्वारा निर्मित किया गया स्थायी चरित्र का स्थायी सार्वजनिक पद सम्मिलित हो।
    • अधिकार पृच्छा रिट निजी या मंत्रिस्तरीय पदों के विरुद्ध उपलब्ध नहीं है।

मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 12-32) | धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)

मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 12-32) | शोषण के  विरुद्ध अधिकार

मूल अधिकार (अनुच्छेद 12-35)- स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)

मूल अधिकार: मूल अधिकारों की सूची, राज्य की परिभाषा (अनुच्छेद 12) एवं  न्यायिक समीक्षा (अनुच्छेद 13)

प्रमुख संवैधानिक संशोधन अधिनियमों की सूची- भाग 1

प्रमुख संवैधानिक संशोधन अधिनियमों की सूची- भाग 3

मूल अधिकार (अनुच्छेद 12-35) – भारतीय संविधान का भाग III: स्रोत, अधिदेश तथा प्रमुख विशेषताएं भारत के राष्ट्रपति का वीटो पावर राज्य के नीति निदेशक तत्वों का वर्गीकरण (डीपीएसपी) न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली
मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद 51ए) | भाग IV-ए | भारतीय संविधान भारतीय संविधान और उनके स्रोत: देशों से उधार ली गई विशेषताओं की सूची 42वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021
विगत 15 संवैधानिक संशोधन अनिश्चित काल के लिए स्थगन/एडजर्नमेंट साइन डाई अखिल भारतीय न्यायिक सेवाएं न्यायालय की अवमानना

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मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 12-32) | संवैधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32)_3.1