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प्रासंगिकता
- जीएस 3: भारतीय अर्थव्यवस्था एवं आयोजना, संसाधनों का अभिनियोजन, वृद्धि, विकास एवं रोजगार से संबंधित मुद्दे।
प्रसंग
- भारत के अगले वर्ष के आरंभ में वैश्विक बॉन्ड सूचकांकों में शामिल होने की संभावना है, जो अगले दशक में बॉन्ड अंतर्वाह में 170 बिलियन डॉलर से 250 बिलियन डॉलर को आकर्षित कर सकता है।
मुख्य बिंदु
- 2019 से, भारत वैश्विक बॉन्ड सूचकांकों में शामिल होने की दिशा में कार्य कर रहा है क्योंकि सरकारी ऋणों में वृद्धि ने व्यापक पैमाने पर घरेलू बॉन्ड बाजार को व्यापक निवेशक आधार के लिए खोलना अपरिहार्य कर दिया है।
- अक्टूबर तक ग्लोबल बॉन्ड इंडेक्स में शामिल होने के बाद भी, भारत आने वाले वित्तीय वर्ष में निधियों का अभिनियोजन नहीं कर पाएगा क्योंकि इसके शामिल होने के पश्चात वास्तविक सूचीयन में लगभग 12 माह का समय लग सकता है।
लाभ
- ग्लोबल बॉन्ड इंडेक्स में शामिल होना सरकार को तेजी के परिदृश्य में सभी बॉन्ड हेतु विदेशी पोर्टफोलियो की सीमा को हटाकर अपने बॉन्ड मार्केट को और अधिक खोलने के लिए प्रेरित कर सकता है।
- विदेशी आढ़त (ब्रोकरेज) को उम्मीद है कि आरईईआर (वास्तविक प्रभावी विनिमय दर) के संदर्भ में रुपये में प्रत्येक वर्ष 2% की बढ़ोतरी होगी।
- विदेशी प्रवाह में वृद्धि के साथ, यह अपेक्षा की जाती है कि केंद्र सरकार का घाटा घटकर जीडीपी का 5% हो जाएगा एवं समेकित घाटा वित्तीय वर्ष 2021 में 14.4% से वित्तीय वर्ष 2029 तक जीडीपी के 5% तक पहुंच जाएगा।
- यह भारत के भुगतान संतुलन को एक संरचनात्मक अधिशेष क्षेत्र की ओर प्रेरित करेगा, पूंजी की कम लागत हेतु एक वातावरण तैयार करेगा तथा अंततः एक सकारात्मक विकास की ओर अग्रसर करेगा।
- सॉवरेन बॉन्ड बाजार के खुलने एवं परिणामी अंतर्वाह के बैंकिंग क्षेत्र के लिए कई निहितार्थ होंगे, जिससे बड़े निजी बैंकों को सर्वाधिक लाभ प्राप्त होने की संभावना है।
- साथ ही, बैंकों से पृथक, गैर-बैंक ऋणदाताओं को भी दीर्घ अवधि में लाभार्थी के रूप में देखा जाता है। सॉवरेन बॉन्ड बाजार के खुलने एवं अल्प दीर्घावधि जी-सेक लाभ (यील्ड) जैसे परिणामी संभावित प्रभाव गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लिए अनुकूल संरचनात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
वैकल्पिक निवेश कोष: उभरते सितारे कोष
वैश्विक निवेशक पहले संकोच क्यों करते थे?
- वैश्विक निवेशकों ने पूंजी नियंत्रण, संरक्षण एवं भुगतान तथा अन्य परिचालनगत बाधाओं के कारण वैश्विक बॉन्ड सूचकांक में भारत के सरकारी बॉन्डों को शामिल नहीं करने का सुझाव दिया।
अब क्या बदल गया है?
- यद्यपि, हाल ही में वृहत अर्थशास्त्र संबंधी (मैक्रोइकॉनॉमिक) स्थिरता 2022 के आरंभ में इसे परिवर्तित कर सकती है। वैश्विक बॉन्ड इंडेक्स में भारत के शामिल होने से अर्थव्यवस्था, विदेशी मुद्रा, बॉन्ड यील्ड एवं इक्विटी मार्केट पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
- भारत ने दीर्घ स्थिरता में एक महत्वपूर्ण सुधार प्रदर्शित किया है एवं सरकार ने कैपेक्स-संचालित विकास को आगे बढ़ाने की अपनी इच्छा का संकेत दिया है, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक बॉन्ड इंडेक्स में शामिल होने की संभावना है, जिससे यह इस समूह में शामिल होने वाला अंतिम उदीयमान बाजार बन जाएगा।
चिंताएं क्या हैं?
- ऐसी चिंताएं हैं कि यदि बॉन्ड बाजार विदेशी निवेशकों के लिए पूर्ण रूप से खोल दिया जाता है, तो यह उत्प्रवाही मुद्रा (हॉट मनी) की स्थिति के समान बहिर्वाह का कारण बन सकता है।
- उत्प्रवाही मुद्रा (हॉट मनी): ये विदेशी निवेश हैं जो उच्च लाभ का अनुसरण करते हुए अत्यधिक मात्रा में आते हैं किंतु संकट के समय में शीघ्रता से पलायन कर सकते हैं।