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ग्रेट इंडियन बस्टर्ड्स- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- जीएस पेपर : पर्यावरण- संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण।
समाचारों में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड्स
- भारतीय वन्यजीव संस्थान (वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया) द्वारा किए गए अध्ययनों के अनुसार, देश भर में लगभग 150 ग्रेट इंडियन बस्टर्ड शेष बचे हैं।
- इनमें राजस्थान में लगभग 128 पक्षी एवं गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश तथा कर्नाटक राज्यों में प्रत्येक में 10 से कम पक्षी सम्मिलित हैं।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड्स
- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) के बारे में: ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) भारत में पाए जाने वाले चार बस्टर्ड प्रजातियों में सबसे बड़े हैं, अन्य तीन मैकक्वीन के बस्टर्ड, लघु फ्लोरिकन एवं बंगाल फ्लोरिकन हैं।
- पर्यावास: भारत में, जीआईबी अधिकांशतः राजस्थान एवं गुजरात तक ही सीमित हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश में इनकी आबादी अपेक्षाकृत कम है।
- पसंदीदा पर्यावास: ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) घास के मैदानों को अपने आवास के रूप में पसंद करते हैं।
- स्थलीय पक्षी होने के कारण, वे अपना अधिकांश समय जमीन पर एवं अपने आवास के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जाने के लिए कभी-कभार उड़ानों के साथ बिताते हैं।
- भोजन प्रतिरूप: ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) कीड़े, छिपकलियों, घास के इत्यादि को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं।
- महत्व: जीआईबी को घास के मैदान की प्रमुख पक्षी प्रजाति माना जाता है एवं इसी कारण घास के मैदान पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के बैरोमीटर हैं।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड्स (जीआईबी) की संरक्षण स्थिति
- आईयूसीएन स्थिति: IUCN ने ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को गंभीर रूप से संकटग्रस्त (क्रिटिकली एंडेंजर्ड) के रूप में वर्गीकृत किया है।
- वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एंडेंजर्ड स्पीशीज वाइल्ड फौना एंड फ्लोरा/सीआईटीईएस): जीआईबी को सीआईटीईएस के परिशिष्ट 1 के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
- प्रवासी प्रजातियों पर कन्वेंशन (कन्वेंशन ऑन माइग्रेटरी स्पीशीज/सीएमएस): जीआईबी को सीएमएस के परिशिष्ट I के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड गुजरात के गांधीनगर में आयोजित प्रतिष्ठित 13वें सीएमएस पक्षकारों के सम्मेलन (कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज) का शुभंकर भी था।
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (वाइल्डलाइफ प्रोटक्शन एक्ट/WPA) 1972 की अनुसूची 1 के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड्स (जीआईबी)
- विद्युत संचरण लाइन/पावर ट्रांसमिशन लाइन्स: भारतीय वन्यजीव संस्थान (वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया/डब्ल्यूआईआई) ओवरहेड विद्युत संचरण लाइनों को ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के लिए सबसे बड़ा खतरा बता रहा है।
- भारतीय वन्यजीव संस्थान के शोध ने निष्कर्ष निकाला है कि राजस्थान में प्रत्येक वर्ष 18 ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की मृत्यु ओवरहेड विद्युत पारेषण लाइनों से टकराकर हो जाती है।
- यह उनकी कमजोर अग्र दृष्टि के कारण होता है, क्योंकि वे समय पर पावर लाइन का पता नहीं लगा सकते हैं तथा उनका वजन उड़ान के दौरान त्वरित कौशल को कठिन बना देता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा आधारिक अवसंरचना का विकास: कच्छ एवं थार रेगिस्तान ऐसे स्थान हैं जहां विगत दो दशकों में नवीकरणीय ऊर्जा के विशाल आधारिक संरचना का निर्माण हुआ है।
- ये ऊर्जा अवसंरचनाएँ पवन चक्कियों की स्थापना एवं यहाँ तक कि ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के निवास के मुख्य क्षेत्रों में भी विद्युत संचरण लाइनों के निर्माण की ओर अग्रसर हैं, जिससे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की मृत्यु हो रही है।
- भूमि उपयोग प्रतिरूप में परिवर्तन: किसानों द्वारा अपनी भूमि पर खेती करने के तरीके से परिदृश्य में परिवर्तन, जो अन्यथा कच्छ में निरंतर सूखे के कारण परती रहता था।
- दालों एवं चारे के स्थान पर कपास तथा गेहूं की खेती को भी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की संख्या में गिरावट के कारणों के रूप में उद्धृत किया गया है।