Home   »   Insolvency and Bankruptcy Code (Amendment) Bill...   »   insolvency and bankruptcy code upsc

जी एन बाजपेयी समिति की रिपोर्ट

जी एन बाजपेयी समिति की रिपोर्ट: प्रासंगिकता

  • जीएस 3: भारतीय अर्थव्यवस्था एवं आयोजना,  संसाधनों का अभिनियोजन, वृद्धि, विकास एवं रोजगार से संबंधित मुद्दे।

 

जी एन बाजपेयी समिति की रिपोर्ट: प्रसंग

  • जीएन बाजपेयी की अध्यक्षता वाली समिति ने सिफारिश की है कि भारतीय दिवाला एवं दिवालियापन बोर्ड (आईबीबीआई) को पांच वर्ष पुराने कानून की सफलता का आकलन करने एवं इसके कार्यान्वयन में सुधार करने के लिए एक मानकीकृत ढांचे के साथ आना चाहिए।

UPSC Current Affairs

क्या आपने यूपीएससी सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा 2021 को उत्तीर्ण कर लिया है?  निशुल्क पाठ्य सामग्री प्राप्त करने के लिए यहां रजिस्टर करें

 

जी एन बाजपेयी समिति की रिपोर्ट: मुख्य बिंदु

  • ढांचे में एक सद्य अनुक्रिया (रीयल-टाइम) डेटा बैंक शामिल होना चाहिए, जिसमें समय पर डेटा, लागत एवं पुनर्स्थापना (रिकवरी) दरों के साथ-साथ समष्टि अर्थशास्त्रीय (मैक्रोइकॉनॉमिक) संकेतक शामिल हों।
  • समिति ने बल दिया कि संकटग्रस्त परिसंपत्ति का समाधान करना दिवाला एवं दिवालियापन संहिता (आईबीसी) का प्रथम उद्देश्य है, तत्पश्चात उद्यमिता को बढ़ावा देना, ऋण की उपलब्धता एवं हितधारकों के हितों को संतुलित करना है।
  • समिति ने सिफारिश की है कि दिवाला प्रक्रिया के निष्पादन का आकलन करने हेतु विश्वसनीय रीयल-टाइम डेटा आवश्यक है।
  • साथ ही, इसने सुझाव दिया कि आईबीबीआई को अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप अपने त्रैमासिक अद्यतन में समाधान पेशेवर (रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल) की फीस, परिसंपत्ति संचय (एसेट स्टोरेज) एवं संरक्षण लागत जैसे लागत संकेतकों पर मात्रात्मक डेटा शामिल करने पर विचार करना चाहिए।
  • इसमें कहा गया है कि पंजीकृत नई कंपनियों की संख्या, स्थावर संपदा (रियल एस्टेट), निर्माण एवं धातु जैसे तनावग्रस्त क्षेत्रों को ऋण आपूर्ति, पूंजी की लागत में परिवर्तन, विशेष रूप से तनाव ग्रस्त क्षेत्रों हेतु, गैर-निष्पादित ऋणों की स्थिति, रोजगार के रुझान जैसे संकेतकों का उपयोग व्यावसायिक ऋण पत्र (कॉरपोरेट बॉन्ड) बाजार का आकार एवं संबंधित क्षेत्रों के लिए निवेश अनुपात।
  • समूह ने वर्तमान डेटा स्रोतों का यथासंभव उपयोग करके दिवाला डेटा के एक राष्ट्रीय डैशबोर्ड की भी सिफारिश की।

वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद

जी एन बाजपेयी समिति की रिपोर्ट: दिवाला एवं दिवालियापन संहिता

  • दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 (आईबीसी) भारत का दिवालियापन कानून है जो दिवाला एवं दिवालियापन हेतु एकल कानून  निर्मित कर वर्तमान ढांचे को सुदृढ़ करना चाहता है।
  • दिवालियापन संहिता, दिवालियेपन को हल करने हेतु एकल बिंदु समाधान है जो पहले एक लंबी प्रक्रिया थी जो आर्थिक रूप से व्यवहार्य व्यवस्था प्रस्तुत नहीं करती थी।
  • संहिता का उद्देश्य छोटे निवेशकों के हितों की रक्षा करना एवं व्यवसाय संचालित करने की प्रक्रिया को कम बोझिल बनाना है।

 

जी एन बाजपेयी समिति की रिपोर्ट: मुख्य विशेषताएं

  • दिवाला समाधान: कंपनियों के लिए, प्रक्रिया को 180 दिनों में पूरा करना होगा, जिसे 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है, यदि अधिकांश ऋणदाता सहमत हैं।
    • स्टार्ट-अप्स (साझेदारी वाली व्यापारिक कंपनियों के अतिरिक्त), छोटी कंपनियों एवं अन्य कंपनियों (1 करोड़ रुपये से कम की परिसंपत्ति के साथ) हेतु, अनुरोध प्राप्त होने के 90 दिनों के भीतर समाधान प्रक्रिया पूरी की जाएगी, जिसे 45 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।
  • दिवाला नियामक: संहिता देश में दिवाला कार्यवाही का निरीक्षण करने एवं इसके तहत पंजीकृत संस्थाओं को विनियमित करने हेतु भारतीय दिवाला एवं शोधन अक्षमता बोर्ड की स्थापना करती है।
    • बोर्ड में 10 सदस्य होंगे, जिनमें वित्त एवं कानून मंत्रालय तथा भारतीय रिजर्व बैंक के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
  • दिवाला पेशेवर: दिवाला प्रक्रिया का प्रबंधन अनुज्ञप्ति प्राप्त पेशेवरों द्वारा किया जाएगा। ये पेशेवर दिवाला प्रक्रिया के दौरान ऋणी (देनदार) की परिसंपत्ति को भी नियंत्रित करेंगे।
    दिवालियापन एवं दिवाला अधिनिर्णायक: संहिता व्यक्तियों एवं कंपनियों के लिए दिवाला समाधान की प्रक्रिया की निगरानी हेतु दो अलग-अलग न्यायाधिकरणों की स्थापना का प्रस्ताव करती है:

    • कंपनियों एवं सीमित देयता भागीदारी वाली व्यापारिक कंपनियों हेतु राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण; तथा
    • व्यक्तियों एवं साझेदारियों के लिए ऋण वसूली न्यायाधिकरण।

राष्ट्रीय वित्तीय सूचना प्राधिकरण

UPSC Current Affairs

Sharing is caring!

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *