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चाबहार बंदरगाह का महत्व- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- सामान्य अध्ययन II- भारत के हितों, भारतीय प्रवासियों पर विकसित एवं विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव।
चाबहार बंदरगाह चर्चा में क्यों है?
- ताशकंद में शंघाई सहयोग संगठन (शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन/एससीओ) की बैठक के दौरान भारत ने चाबहार बंदरगाह को मध्य एशिया के लिए व्यापार के लिए एक माध्यम बनाने पर बल दिया।
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ)
- शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) एक स्थायी अंतर सरकारी अंतरराष्ट्रीय संगठन है।
- शंघाई (चीन) में 15 जून 2001 को एससीओ के गठन की घोषणा की गई थी।
- शंघाई सहयोग संगठन चार्टर पर जून 2002 में सेंट पीटर्सबर्ग एससीओ राष्ट्राध्यक्षों की बैठक के दौरान हस्ताक्षर किए गए थे एवं 19 सितंबर 2003 को प्रवर्तन में आया।
- इसका पूर्ववर्ती संगठन शंघाई फाइव मैकेनिज्म था।
- शंघाई सहयोग संगठन की आधिकारिक भाषाएँ रूसी तथा चीनी हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- सीमाओं पर स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए, चार पूर्व सोवियत गणराज्यों ने चीन के साथ वार्ता आयोजित की जिसके फलस्वरूप 1996 में शंघाई फाइव का निर्माण हुआ।
- 2001 में उज्बेकिस्तान के संगठन में सम्मिलित होने के साथ, इसका नाम बदलकर शंघाई सहयोग संगठन कर दिया गया।
- भारत एवं पाकिस्तान 2017 में इसके सदस्य बने।
सदस्य देश
- कजाकिस्तान
- चीन
- किर्गिस्तान
- रूस
- ताजिकिस्तान
- उज़्बेकिस्तान
- भारत
- पाकिस्तान
ईरान को संगठन के नौवें पूर्ण सदस्य के रूप में स्वीकार किया गया है।
एससीओ के उद्देश्य
- सदस्य देशों के मध्य पारस्परिक विश्वास में वृद्धि करना।
- राजनीति, व्यापार, अर्थव्यवस्था, अनुसंधान, प्रौद्योगिकी तथा संस्कृति के साथ-साथ शिक्षा, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन, पर्यावरण संरक्षण एवं अन्य क्षेत्रों में प्रभावी सहयोग को बढ़ावा देना।
- क्षेत्र में शांति, सुरक्षा एवं स्थिरता सुनिश्चित करना।
- एक लोकतांत्रिक, निष्पक्ष एवं तार्किक नवीन अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक तथा आर्थिक व्यवस्था की स्थापना की ओर अग्रसर होना।
चाबहार बंदरगाह
- यह ओमान की खाड़ी पर अवस्थित है एवं पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह से मात्र 72 किमी दूर है जिसे चीन द्वारा विकसित किया गया है।
- बंदरगाह ईरान के एकमात्र महासागरीय बंदरगाह के रूप में कार्य करता है एवं इसमें शाहिद बेहिश्ती तथा शाहिद कलंतरी नामक दो अलग-अलग बंदरगाह सम्मिलित हैं।
भारत एवं चाबहार-पृष्ठभूमि
- भारत, ईरान एवं अफगानिस्तान के मध्य एक त्रिपक्षीय समझौते ने समुद्री परिवहन के लिए क्षेत्रीय केंद्रों में से एक के रूप में ईरान में चाबहार बंदरगाह का उपयोग करते हुए उनके मध्य पारगमन एवं परिवहन गलियारा (ट्रांजिट एंड ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर) की स्थापना को देखा।
- अफगानिस्तान एवं मध्य एशिया के लिए एक वैकल्पिक व्यापार मार्ग के रूप में, चाबहार बंदरगाह से जाहेदान तक एक रेल लाइन का निर्माण, अफगानिस्तान के साथ सीमा के साथ प्रस्तावित किया गया था।
- इंडियन रेलवे कंस्ट्रक्शन लिमिटेड (इरकॉन) ने ईरानी रेल मंत्रालय के साथ समस्त सेवाएं, अधिरचना कार्य एवं वित्तपोषण (लगभग 1.6 बिलियन अमरीकी डालर) प्रदान करने के लिए एक समझौता ज्ञापन ( मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग/एमओयू) पर हस्ताक्षर किए।
भारत के लिए महत्व
- संपर्क: भविष्य में, चाबहार बंदरगाह एवं अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा (इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर/INSTC) रूस एवं यूरेशिया के साथ भारतीय संपर्क में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।
- सुरक्षा: वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) परियोजना के तहत चीन आक्रामक रूप से अपने बेल्ट-रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को आगे बढ़ा रहा है। यह बंदरगाह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह का मुकाबला करने में सहायता कर सकता है, जिसे चीनी निवेश के द्वारा विकसित किया जा रहा है।
- व्यापार: यह मध्य एशियाई देशों के मध्य व्यापार के लिए एक प्रवेश द्वार है क्योंकि पाकिस्तान भारत में पारगमन पहुंच प्रदान करने से इनकार करता है।
मुद्दे
- जुलाई 2020 में, परियोजना के प्रारंभ में भारतीय पक्ष की ओर से विलंब का हवाला देते हुए एवं परियोजना के वित्तपोषण के लिए ईरान ने स्वयं के दम पर रेल लाइन निर्माण के साथ आगे बढ़ने का निर्णय लिया।
- दूसरी तरफ भारत ने कहा कि इरकॉन निरीक्षण पूरा करने के पश्चात ईरानी पक्ष के लिए एक नोडल प्राधिकरण नियुक्त करने की प्रतीक्षा कर रहा था।
आगे की राह
- भारत को अमेरिका एवं ईरान के मध्य संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता है एवं इस क्षेत्र में अपने हितों की सक्रिय रूप से रक्षा करने की आवश्यकता है।
- एक शांतिपूर्ण विस्तारित पड़ोस (ईरान-अफगानिस्तान) न केवल व्यापार एवं ऊर्जा सुरक्षा के लिए अच्छा है बल्कि एक महाशक्ति बनने की भारत की आकांक्षाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है एवं इसलिए भारत दक्षिण एशिया तक ही सीमित नहीं रह सकता है।