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जनसंख्या नियंत्रण पर जागरूकता चर्चा में क्यों है?
- दिसंबर के प्रारंभ में, संसद के दो सदस्यों ने लोकसभा में भारत में जनसंख्या नियंत्रण के उद्देश्य से एक निजी सदस्य विधेयक पेश किया।
- यह कहते हुए कि जनसंख्या वृद्धि भारत के विकास की धीमी दर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण है, विधेयक जनसंख्या नियंत्रण की त्वरित आवश्यकता का तर्क प्रस्तुत करता है।
भारत में जनसंख्या नियंत्रण बहस की पृष्ठभूमि
- भारत की बढ़ती जनसंख्या के इर्द-गिर्द बहस एवं संवाद हाल का नहीं है, स्वतंत्रता के पश्चात से प्रारंभ हुआ है।
- भारत 1951 के प्रारंभ में अपनी जनसंख्या समस्या का समाधान करने वाले पहले राष्ट्रों में से एक था, जिसने अति जनसंख्या की बुराइयों के बारे में जागरूकता में वृद्धि की।
- जबकि भारत की जनसंख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, भारत की कुल प्रजनन दर (टोटल फर्टिलिटी रेट/टीएफआर) में भी तीव्र गिरावट आई है।
- 1950 में, कुल प्रजनन दर लगभग 5.9% था एवं अब 2% (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण अथवा नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे/NFHS का पाँचवाँ दौर) है।
- 1970 के दशक के पश्चात इसमें भारी गिरावट आई थी, जो आर्थिक समृद्धि एवं प्रजनन दर के मध्य व्युत्क्रमानुपाती संबंध को प्रदर्शित करता है।
उत्तर प्रदेश जनसंख्या विधेयक- एक राजनीतिक बहस
- जनसंख्या नियंत्रण की आवश्यकता के आसपास की बहस का भारत में अत्यधिक राजनीतिकरण किया गया है।
- इस तरह के एक संवेदनशील मुद्दे के इर्द-गिर्द इस संवाद की संपूर्णता को प्रायः एक तुच्छ धार्मिक मुद्दे तक सीमित कर दिया जाता है एवं अंततः, विकास का विषय दुष्प्रभावित होता है।
- 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से लगभग छह माह पूर्व, योगी आदित्यनाथ सरकार एवं उत्तर प्रदेश के राज्य विधि आयोग ने एक प्रस्तावित प्रारूप विधेयक अर्थात उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण एवं कल्याण) विधेयक, 2021 प्रस्तुत किया।
- हिंदी भाषी क्षेत्रों, विशेषकर उत्तर प्रदेश एवं बिहार में जनसंख्या एक गंभीर चिंता का विषय है, किंतु सुझाव व्यावहारिक से अधिक राजनीतिक थे।
- दिखाई देने वाला प्रयास जारी बहुसंख्यकवादी राजनीति की पुष्टि की ओर था।
- उदाहरण के लिए, विधेयक में कहा गया है कि दो से अधिक बच्चों वाले युगलों को कोई सरकारी नौकरी नहीं दी जाएगी।
- हालांकि, इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं था कि जिस व्यक्ति के सरकारी नौकरी में होने के बाद तीसरा बच्चा होता है अथवा यदि किसी कारण से दो बच्चों वाले व्यक्ति ने पुनर्विवाह किया एवं तीसरा बच्चा हुआ तो उसका क्या होगा।
- विधेयक को राजनीतिक ध्रुवीकरण को मजबूत करने एवं बहुसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति को सुगम निर्मित करने वाला देखा गया था।
क्या जनसंख्या वृद्धि वास्तव में एक मुद्दा है?
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़े बताते हैं कि यद्यपि मुसलमानों की प्रजनन दर हिंदुओं की तुलना में अधिक है, किंतु दोनों के मध्य का अंतर काफी हद तक कम हो गया है।
- 1992-93 में हिंदू एवं मुस्लिम प्रजनन दर के मध्य का अंतर 1.1 था, जो अब घटकर 0.35 रह गया है। औसत प्रजनन दर पर जनगणना के आंकड़ों की बारीक तुलना व्यावहारिक है।
- उदाहरण के लिए, लगभग 20% मुस्लिम आबादी वाले उत्तर प्रदेश में, कुल प्रजनन दर 1981 में 5.8% से घटकर 2011 में 2.7% हो गया।
- असम में, जहां मुस्लिम आबादी लगभग 33% है, कुल प्रजनन दर 1.9% है। इसी तरह, जम्मू एवं कश्मीर में, जहां मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक है, कुल प्रजनन दर 1981 में 4.5% से गिरकर 2011 में 1.4% हो गया।
- आंकड़े यह भी बताते हैं कि मुसलमानों ने हिंदुओं की तुलना में परिवार नियोजन के उपायों को बेहतर रूप से अपनाया है।
- भारत का कुल प्रजनन दर, 2%, प्रतिस्थापन स्तर से भी कम है, जो जनसंख्या नियंत्रण मापदंडों में एक उल्लेखनीय कदम है।
- यह स्पष्ट है कि भारत को जबरन जनसंख्या नियंत्रण के लिए अनिवार्य कानून की आवश्यकता नहीं है।
अनिवार्य जनसंख्या नियंत्रण उपायों का प्रभाव- चीन की एक केस स्टडी
- विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी इस तरह के कानून की आवश्यकता का प्रतिरोध करते हुए कहा है, “अनिवार्य जनसंख्या नियंत्रण के अत्यंत खतरनाक परिणाम हो सकते हैं, यह एक लैंगिक असंतुलन उत्पन्न कर सकता है”।
- अनिवार्य जनसंख्या नियंत्रण उपायों ने उन देशों में आशाजनक परिणाम प्रदर्शित नहीं किए हैं जिन्होंने उन्हें क्रियान्वित किया है, सर्वाधिक प्रासंगिक उदाहरण भारत का निकटवर्ती पड़ोसी चीन है।
- एक बच्चे की नीति विनाशकारी सिद्ध हुई है, जिससे जनसांख्यिकीय असंतुलन उत्पन्न हुआ है।
- अनिवार्य जनसंख्या नियंत्रण की नीतियों के कारण चीन की जनसंख्या किसी भी अन्य आधुनिक देश की तुलना में तेजी से वृद्ध हो रही है।
आगे की राह-स्वास्थ्य संबंधी आधारिक संरचना को मजबूत करना
- भारत को जनसंख्या नियंत्रण उपायों को अपनाने की आवश्यकता है। किंतु ध्यान सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने एवं जनसंख्या नियंत्रण की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर होना चाहिए।
- कोई भी अनिवार्य नियंत्रण विधि आयु में वृद्धि की दर को प्रभावित करेगी। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े बताते हैं कि वृद्ध लोगों की आबादी में अनुमानित वृद्धि तथा अनेक देशों में युवा आबादी में गिरावट आई है।
- हालांकि यह प्रवृत्ति जापान जैसे समृद्ध देशों में प्रारंभ हुई, किंतु यह प्रवृत्ति अब विकासशील देशों में, विशेषकर दक्षिण पूर्व एशिया में भी दिखाई दे रही है।
- इन प्रवृत्तियों के बीच अनिवार्य जनसंख्या नियंत्रण लागू करने के नकारात्मक परिणाम ही हो सकते हैं।