Home   »   India Needs a Caste Count- An...   »   India Needs a Caste Count- An...

जातिविहीन समाज के निर्माण हेतु सामाजिक एकीकरण-भारत को एक जाति गणना की आवश्यकता है

भारत को जाति गणना की आवश्यकता है- यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 1: भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएं- जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे।
  • जीएस पेपर 2: शासन, प्रशासन एवं चुनौतियाँ- शासन, प्रशासन एवं चुनौतियाँ

भारत को एक जाति गणना की आवश्यकता है- संदर्भ

  • हाल ही में, जाति जनगणना की मांग तेजी से बढ़ रही है क्योंकि इसके निष्कर्षों का उपयोग 50% की बाधा को पार करने के लिए किया जा सकता है।
  • यदि यह अनुभव के आधार पर स्थापित किया जा सकता है कि ओबीसी संख्या में अधिक हैं, तो संभवत: यह तर्क दिया जा सकता है कि आरक्षण पर 50% की सीमा अनावश्यक है।

UPSC Current Affairs

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी हेतु निशुल्क वीडियो प्राप्त कीजिए एवं आईएएस/ आईपीएस/ आईआरएस बनने के अपने सपने को साकार कीजिए

 

जातिविहीन समाज के निर्माण हेतु सामाजिक एकीकरण- संवैधानिक प्रावधान  

  • संवैधानिक पृष्ठभूमि: संविधान की प्रस्तावना: में कहा गया है कि न्याय (सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक) तथा स्थिति एवं अवसर की समानता होगी।
  • मौलिक अधिकार: संविधान के समतामूलक परिकल्पना को पूर्ण करने हेतु संविधान तीन मौलिक अधिकारों का प्रावधान करता है। य़े हैं-
    • अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का उन्मूलन), अनुच्छेद 23 (मानव दुर्व्यापार एवं बलात श्रम का निषेध) एवं अनुच्छेद 24 (बाल श्रम का निषेध)।
  • संविधान धर्म, वंश, जाति, लिंग एवं जन्म स्थान के आधार पर विभेद को अविधिमान्य घोषित करता है एवं वंचितों के हितों को बढ़ावा देने के लिए चेतावनी के साथ सार्वजनिक नियोजन के मामलों में अवसर की समानता को अधिदेशित करता है।
  • कमजोर वर्गों के सामाजिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण हेतु प्रावधान करता है: सामाजिक एकीकरण लाने के लिए जो एक वर्गहीन चरित्र के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
  • भारत को एक जाति गणना की आवश्यकता है- विभिन्न वर्गों में आरक्षण लाने के लिए कदम
  • संवैधानिक प्रावधान: संविधान के भाग XVI का उद्देश्य वंचितों को एक राजनीतिक स्वर प्रदान करना है।
    • भाग XVI: यह विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी) एवं आंग्ल-भारतीयों (एंग्लो-इंडियन) के लिए सीटों के आरक्षण सहित कुछ वर्गों से संबंधित विशेष प्रावधानों को वर्णित करता है।
  • मंडल आयोग की रिपोर्ट का क्रियान्वयन: केंद्र सरकार ने मंडल आयोग की रिपोर्ट की संस्तुतियों को स्वीकार कर लिया एवं अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को सार्वजनिक नियोजन में 27% आरक्षण प्रदान किया।
    • बाद में इसे शैक्षणिक संस्थानों में भी बढ़ा दिया गया।
    • इसने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए वर्तमान5% आरक्षण कोटा को जोड़ा जिससे शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण बढ़कर 49.5% हो गया।
  • 103वां संविधान संशोधन अधिनियम: अनुच्छेद 15 एवं 16 में संशोधन करके आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए शिक्षा संस्थानों में नौकरियों एवं प्रवेश में आर्थिक आरक्षण (10% कोटा) प्रदान करता है।

 

एनएसओ 77 वें दौर की रिपोर्ट: भारत में कृषक परिवारों की स्थिति

भारत को आरक्षण के साथ जाति गणना-संबंधित मुद्दों की आवश्यकता है

  • इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ का निर्णय: सर्वोच्च न्यायालय ने ओबीसी के लिए 27% आरक्षण को बरकरार रखा किंतु आर्थिक मानदंडों के आधार पर 10% कोटा को निरस्त कर दिया दिया।
    • इसने आरक्षण की सीमा 50% निर्धारित की।
    • अस्वीकृति का कारण: यह माना गया कि “जाति एक सामाजिक वर्ग हो सकती है एवं प्रायः होती है। यदि यह सामाजिक रूप से पिछड़ा हुआ है, तो यह अनुच्छेद 16(4) के प्रयोजनों के लिए पिछड़ा वर्ग होगा।”
  • क्रीमी लेयर की अवधारणा प्रारंभ की: यह सुनिश्चित करने के लिए कि जिन्हें वास्तव में आरक्षण की आवश्यकता है, वे इसे प्राप्त करें।
  • संधान कक्ष (सिलोस) का निर्माण: जहां आरक्षण ने सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन में सुधार किया है, वहीं उन्होंने समान रूप से साइलो का निर्माण किया है जिससे आरक्षण के लाभ क्षैतिज की तुलना में लंबवत रूप से अधिक दूरगामी रहे हैं।

एनएसओ (राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन)

भारत को जाति गणना की आवश्यकता – जाति गणना की बढ़ती मांग

  • 2011 में सामाजिक-आर्थिक एवं जाति जनगणना: पिछली सरकार द्वारा इसे सफलतापूर्वक संचालित एवं लागू किया गया था।
    • ग्रामीण विकास की संसदीय स्थायी समिति ने 2016 में अवलोकन किया कि ” आंकड़ों की जांच की गई है और व्यक्तियों की जाति  तथा धर्म पर 87% आंकड़े त्रुटि मुक्त हैं”

भारत को एक जाति गणना की आवश्यकता है –  आगे की राह

  • भारत को एक समतावादी एवं वर्गविहीन समाज में रूपांतरित करना: स्वतंत्र भारत के निर्माताओं के दृष्टिकोण को पूर्ण करने हेतु सकारात्मक कार्रवाई के एक नए प्रतिमान की आवश्यकता है, यह देखते हुए कि आर्थिक प्रोत्साहनों ने सामाजिक एकीकरण नहीं लाया है।
  • नवीन सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना का संचालन: चूंकि यह न्यायिक रूप से निर्धारित किया गया है कि जाति वर्ग का पर्याय है, भारत हेतु एक नवीन सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना अपरिहार्य है।
  • नई अंतःक्षेप रणनीति तैयार करें: जो नवीन रूप से आयोजित सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना के आंकड़ों पर आधारित होनी चाहिए।
    • यह उन जाति समूहों को मुक्त करने के लिए किया जाना चाहिए जो अभी भी पायदान पर नीचे हैं। जब सभी जातियां समान होंगी तभी समाज समतामूलक बन सकता है।

झारखंड राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोजगार विधेयक, 2021: लाभ और कमियां

Sharing is caring!