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भारतीय कृषि पर आरबीआई की रिपोर्ट: प्रासंगिकता
- जीएस 3: देश के विभिन्न हिस्सों में प्रमुख फसल-फसल प्रतिरूप, – विभिन्न प्रकार की सिंचाई एवं सिंचाई प्रणाली, कृषि उपज के भंडारण, परिवहन तथा विपणन तथा मुद्दे एवं संबंधित बाधाएं; किसानों की सहायता के लिए ई-प्रौद्योगिकी।
भारतीय कृषि रिपोर्ट: संदर्भ
- हाल ही में, आरबीआई ने ‘भारतीय कृषि: उपलब्धियां एवं चुनौतियाँ‘ ( इंडियन एग्रीकल्चर: अचीवमेंट्स एंड चैलेंजेस) नाम से एक नया लेख जारी किया है एवं कहा है कि कृषि को अधिक जलवायु-प्रतिरोधी एवं पर्यावरणीय रूप से धारणीय बनाने के लिए भारत को दूसरी हरित क्रांति की आवश्यकता है।
भारतीय कृषि: प्रमुख बिंदु
- लेख में कहा गया है कि भारतीय कृषि ने कोविड-19 अवधि के दौरान उल्लेखनीय प्रतिरोधक क्षमता प्रदर्शित की है एवं नई उभरती चुनौतियां अगली पीढ़ी के सुधारों के साथ दूसरी हरित क्रांति को न्यायसंगत ठहराती हैं।
- लेख में कहा गया है कि भारतीय कृषि ने विभिन्न खाद्यान्नों, वाणिज्यिक एवं बागवानी फसलों के रिकॉर्ड उत्पादन के साथ नई ऊंचाइयों को छुआ है।
- इस क्षेत्र ने कोविड-19 अवधि के दौरान प्रतिरोधक क्षमता प्रदर्शित की है एवं खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की है।
भारतीय कृषि के समक्ष चुनौतियां
- फसल की निम्न उत्पादकता: खंडित भूमि जोत, न्यून कृषि मशीनीकरण एवं कृषि में अल्प सार्वजनिक एवं निजी निवेश जैसे विभिन्न कारकों के कारण भारत में फसल उत्पादकता अन्य विकसित एवं उदीयमान बाजार अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अत्यंत कम है।
- पर्यावरण संबंधी चिंताएं: चावल, गेहूं एवं गन्ने जैसी फसलों के अत्यधिक उत्पादन से भूजल स्तर में तेजी से कमी आई है, मृदा का क्षरण हुआ है एवं व्यापक स्तर पर वायु प्रदूषण हुआ है।
- खाद्य मुद्रास्फीति: अनेक वस्तुओं में अधिशेष उत्पादन के बावजूद, खाद्य मुद्रास्फीति एवं कीमतों में अस्थिरता उच्च बनी हुई है जिससे उपभोक्ताओं को असुविधा होती है एवं किसानों के लिए अल्प एवं अस्थिर (उतार-चढ़ाव वाली) आय प्राप्त होती है।
भारतीय कृषि पर आरबीआई की रिपोर्ट: सिफारिशें
- दूसरी हरित क्रांति: उपरोक्त चुनौतियों के लिए कृषि जल-ऊर्जा अन्तर्सम्बन्ध पर केंद्रित दूसरी हरित क्रांति की आवश्यकता होगी, जिससे कृषि अधिक जलवायु प्रतिरोधी एवं पर्यावरण की दृष्टि से धारणीय हो सके।
- जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग: जैव प्रौद्योगिकी एवं अभिजनन का उपयोग पर्यावरण के अनुकूल, रोग प्रतिरोधी, जलवायु-प्रतिस्कंदी, अधिक पौष्टिक एवं विविध फसल किस्मों के विकास में महत्वपूर्ण होगा।
- डिजिटल प्रौद्योगिकी एवं विस्तार सेवाएं: डिजिटल प्रौद्योगिकी एवं विस्तार सेवाओं का व्यापक उपयोग किसानों के मध्य सूचना साझा करने एवं जागरूकता उत्पन्न करने में सहायक होगा।
- फसल पश्चात की हानि का प्रबंधन एवं एफपीओ का गठन: लेख में यह भी बताया गया है कि फसल पश्चात के हानि-प्रबंधन एवं किसान-उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के गठन के माध्यम से सहकारी आंदोलन में सुधार से खाद्य पदार्थों की कीमतों एवं किसानों की आय में अस्थिरता को रोका जा सकता है एवं भारतीय कृषि की वास्तविक क्षमता का दोहन करने में सहायक हो सकता है।
हरित क्रांति 2.0 के मूल सिद्धांत
- दूसरी हरित क्रांति (एसजीआर) या हरित क्रांति 0 को पहली हरित क्रांति से सुनिश्चित रूप से पृथक होना चाहिए।
- पहली हरित क्रांति के मूल तत्व थे: बेहतर आनुवंशिकी वाले उच्च उपज किस्मों (हाई यील्ड वैराइटीज/एचवाईवी) के बीज; रसायनों – कीटनाशकों एवं उर्वरकों का उपयोग तथा आधुनिक कृषि संयंत्र एवं उचित सिंचाई प्रणाली के उपयोग द्वारा समर्थित बहु फसल प्रणाली।
- लघु एवं सीमांत किसानों पर बल दिया जाना चाहिए।
- न केवल उत्पादन बढ़ाने के लिए बल्कि प्राकृतिक संसाधनों की सीमा के भीतर उत्पादकता को धारणीय बनाए रखने के भी प्रयास किए जाने चाहिए।
- एसजीआर को कृषि के सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए एकीकृत कार्यक्रमों की परिकल्पना करनी चाहिए, जिसमें मृदा की विशेषताओं, सुमेलित बीज, अनाज, भोजन में सुधार एवं मूल्यवर्धन के पश्चात इसके विपणन से लेकर कृषि के सभी पहलुओं का ध्यान रखा जाना चाहिए।