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भारतीय संविधान, प्रमुख विशेषताएं, प्रस्तावना, अनुसूचियां एवं अन्य विवरण

भारतीय संविधान भारत में शासन और समाज के संचालन के लिए एक महत्वपूर्ण नियम पुस्तिका के रूप में कार्य करता है। यह संविधान हमें सरकार के तीन मुख्य अंगों की कार्यप्रणाली से अवगत कराता है: विधायिका, जो कानून बनाती है; कार्यपालिका, जो कानूनों को लागू करती है; और न्यायपालिका, जो कानूनों के निष्पक्ष कार्यान्वयन की गारंटी देती है। यह संविधान भारतीय लोकतंत्र की नींव को मजबूत बनाते हुए, नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों का समुचित संरक्षण करता है।

भारत का संविधान: यूपीएससी के लिए प्रासंगिकता

भारत का संविधान यूपीएससी की परीक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि इसमें विभिन्न संवैधानिक प्रावधान शामिल हैं। ये प्रावधान न केवल प्रारंभिक परीक्षा के लिए, बल्कि मुख्य परीक्षा में भी भारतीय संविधान की विशेषताओं को समझने और विश्लेषण करने के लिए आवश्यक हैं, जिससे प्रतियोगियों को सही दिशा में मार्गदर्शन मिलता है।

भारत का संविधान

भारतीय संविधान: भारतीय संविधान भारत में राजनीतिक व्यवस्था के लिए मूलभूत संरचना एवं रूपरेखा प्रदान करता है। अतः, भारत का संविधान एक आधारिक संरचना प्रदान करता है जिसके तहत इसके लोगों को शासित किया जाना है।

संविधान राज्य के मुख्य अंगों की स्थापना करता है, जो है-

  • विधायिका,
  • कार्यपालिका एवं
  • न्यायपालिका

भारतीय संविधान राज्य के विभिन्न अंगों की शक्तियों, भूमिकाओं एवं उत्तरदायित्व को भी परिभाषित करता है। यह एक दूसरे के साथ एवं नागरिकों के साथ भी उनके संबंधों को परिभाषित तथा विनियमित करता है।

भारतीय संविधान का आरंभ

भारतीय संविधान 26 नवंबर 1949 को लागू हुआ, जब इसे संविधान सभा द्वारा अंगीकृत किया गया था। हालांकि, यह 26 जनवरी 1950 से पूर्ण रूप से अस्तित्व में आया। जिससे भारत एक स्वतंत्र, समता और लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में अपने भविष्य की ओर बढ़ा। संविधान की प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा और न्याय के मूलभूत सिद्धांतों का समावेश है। भारतीय संविधान को तैयार करने में विभिन्न विचारों और सिद्धांतों का समावेश किया गया, जो भारतीय समाज की विविधता और विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए बनाए गए। यह संविधान दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की नींव रखता है और नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को सुनिश्चित करता है।

  • भारतीय संविधान में मूल रूप से 22 भाग, 395 अनुच्छेद एवं 8 अनुसूचियां थीं।
  • विगत 70 वर्षों के दौरान, 105 से अधिक संशोधन हुए हैं। संविधान में 4 नई अनुसूचियां भी जोड़ी गई हैं.

भारतीय संविधान का निर्माण

  • भारत में पहली बार एम.एन. रॉय ने वर्ष 1934 में भारत के लिए एक संविधान सभा के निर्माण का विचार सामने रखा। वह भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन के अग्रणी थे।
  • वर्ष 1935 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने आधिकारिक रूप से भारतीय संविधान का निर्माण करने हेतु संविधान सभा की मांग की।
  • वर्ष 1938 में कांग्रेस की ओर से, जवाहरलाल नेहरू ने घोषणा की कि वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनी गई संविधान सभा द्वारा स्वतंत्र भारत के संविधान को बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के तैयार किया जाना चाहिए।

संविधान सभा की कार्यप्रणाली

  • संविधान सभा का गठन ब्रिटिश सरकार द्वारा एक संविधान का निर्माण करने हेतु किया गया था। संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसंबर, 1946 को हुई थी।
  • संविधान सभा की बैठक में केवल 211 सदस्यों ने भाग लिया था, सबसे पुराने सदस्य डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को विधानसभा का अस्थायी अध्यक्ष चुना गया था।
  • कुछ समय बाद, डॉ. राजेंद्र प्रसाद को विधानसभा के अध्यक्ष के रूप में चुना गया एवं एच.सी. मुखर्जी तथा वी.टी. कृष्णामाचारी दोनों को विधानसभा के उपाध्यक्ष के रूप में चुना गया था।

भारतीय संविधान की प्रारूप समिति

सभी समितियों में डॉ. भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता वाली प्रारूप समिति सर्वाधिक महत्वपूर्ण समिति थी। प्रारूप समिति की स्थापना 29 अगस्त, 1947 को हुई थी। प्रारूप समिति नए भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए जिम्मेदार थी। इसमें निम्नलिखित सात सदस्य सम्मिलित थे-

क्रम संख्या सदस्य
1 डॉ. बी. आर. अंबेडकर (अध्यक्ष)
2 एन. गोपालस्वामी आयंगर
3 अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर
4 डॉ. के. एम. मुंशी
5 सैयद मोहम्मद सादुल्ला
6 एन. माधव राऊ (बी एल मित्तर के स्थान पर जिन्होंने खराब स्वास्थ्य के कारण  त्यागपत्र दे दिया था)
7 टी. टी. कृष्णामाचारी ( उन्होंने डी. पी. खेतान का स्थान लिया जिनकी मृत्यु 1948 में हुई थी)

 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद, अध्याय एवं संशोधन

  • भारतीय संविधान में कुल 22 भाग हैं। भारत के संविधान के ये सभी भाग विभिन्न विषयों या मामलों के क्षेत्रों से संबंधित हैं।
  • भारतीय संविधान में भाग VII को 1956 के 7 वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा हटा दिया गया था। भाग VII भाग-बी राज्यों से संबंधित था।
  • इसके अतिरिक्त, भाग IV-A एवं भाग XIV-A को 1976 के 42वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था, जबकि भाग IX-A को 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम 1992 द्वारा जोड़ा गया था एवं भाग IX-B को 2011 के 97वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद, भाग एवं संबद्ध विषय

भाग  विषय अनुच्छेद
I संघ एवं उसके क्षेत्र 1 से 4
II नागरिकता 5 से 11
III मौलिक अधिकार 12 से 35
IV राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत 36 से 51
IV A मौलिक कर्तव्य 51-ए
V केंद्र सरकार 52 से 151
VI राज्य सरकारें 152 से 237
VII पहली अनुसूची के भाग बी में राज्य (विलोपित) 238 (विलोपित)
VIII केंद्र शासित प्रदेश 239 से 242
IX पंचायतें 243 से 243-ओ
IX A नगरपालिकाएं 243- पी से 243-जेड जी
IX B सहकारी समितियां 243-जेड एच से 243-जेड टी
X अनुसूचित एवं जनजातीय क्षेत्र 244 से 244- ए
संघ एवं राज्यों के मध्य संबंध 245 से 263
XII वित्त, संपत्ति, अनुबंध एवं वाद 264 से 300-क
XIII व्यापार, वाणिज्य एवं भारत के क्षेत्र के अंतर्गत समागम 301 से 307
XIV संघ एवं राज्यों के अधीन सेवाएं 308 से 323
XIV ए न्यायाधिकरण 323-ए से 323-बी
XV निर्वाचन 324 से 329- क
XVI कुछ वर्गों से संबंधित विशेष प्रावधान 330 से 342- ए
XVII आधिकारिक भाषा 343 से 351-ए
XVIII आपातकालीन प्रावधान 352 से 360
XIX विविध 361 से 367
XX संविधान का संशोधन 368
XXI अस्थायी, संक्रमणकालीन एवं विशेष प्रावधान 369 से 392
XXII लघु शीर्षक, प्रारंभ, हिंदी में आधिकारिक पाठ एवं निरसन 393 से 395 तक

 

भारतीय संविधान की प्रस्तावना

‘प्रस्तावना’ शब्द भारतीय संविधान की प्रस्तावना या परिचय को संदर्भित करता है। इसमें संविधान का सार निहित है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना को ‘संविधान का पहचान पत्र’ भी कहा जाता है।

  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ पर आधारित है, जिसे पंडित जवाहर लाल नेहरू ने तैयार प्रस्तुत किया गया था तथा संविधान सभा द्वारा अंगीकृत किया गया था।
  • प्रस्तावना को 1976 के 42वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा संशोधित किया गया है, जिसमें तीन नए शब्द-समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष एवं अखंडता को जोड़ा गया है।

प्रस्तावना की सामग्री

भारतीय संविधान की प्रस्तावना संविधान का सार और आत्मा प्रस्तुत करती है। इसमें उन मूलभूत सिद्धांतों और मूल्यों का समावेश किया गया है, जो भारत के लोकतंत्र और समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रस्तावना निम्नलिखित सामग्री को प्रदर्शित करता है:

  • भारतीय संविधान के अधिकार का स्रोत– इसमें कहा गया है कि संविधान भारत के लोगों से अपना अधिकार प्राप्त करता है।
  • भारतीय राज्य की प्रकृति- प्रस्तावना भारत को एक समाजवादी, संप्रभु, लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष एवं गणतांत्रिक राज्य के रूप में घोषित करती है।
  • भारतीय संविधान के उद्देश्य- यह उद्देश्यों के रूप में स्वतंत्रता, न्याय, समानता एवं बंधुत्व को निर्दिष्ट करता है।
  • संविधान के अंगीकरण की तिथि: 26 नवंबर 1949।

भारतीय संविधान की विशेषताएं

भारतीय संविधान की विशेषताएं इसे अन्य देशों के संविधान से अलग और विशिष्ट बनाती हैं। यह न केवल भारत की विविधता और सामाजिक संरचना को दर्शाता है, बल्कि नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है. भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  • सबसे लंबा लिखित संविधान
  • विभिन्न स्रोतों से आहरित
  • कठोरता एवं नम्यता का मिश्रण
  • एकात्मक झुकाव के साथ संघीय प्रणाली
  • सरकार का संसदीय स्वरूप
  • संसदीय संप्रभुता एवं न्यायिक सर्वोच्चता का संश्लेषण
  • एकीकृत एवं स्वतंत्र न्यायपालिका
  • मौलिक अधिकार
  • राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत
  • मौलिक कर्तव्य
  • एक धर्मनिरपेक्ष राज्य
  • सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार
  • एकल नागरिकता
  • स्वतंत्र निकाय
  • आपातकालीन प्रावधान
  • त्रिस्तरीय सरकार
  • सहकारी समितियां

भारतीय संविधान की उधार ली गई विशेषताएं

भारतीय संविधान को प्रायः एक उधार लिया गया संविधान कहा जाता है क्योंकि इसकी अनेक विशेषताएं अन्य देशों के संविधान से उत्पन्न होती हैं। ऐसी उधार ली गई विशेषताओं एवं उनके संबंधित स्रोत देश की सूची नीचे दी गई है:

भारतीय संविधान की उधार ली गई विशेषताओं की सूची

स्रोत  विशेषताएं
1935 का भारत सरकार अधिनियम -संघीय योजना,

-राज्यपाल का पद,

-न्यायपालिका,

-लोक सेवा आयोग,

-आपातकालीन प्रावधान एवं

-प्रशासनिक विवरण

ब्रिटिश संविधान -संसदीय सरकार,

-विधि का शासन,

-विधायी प्रक्रिया,

-एकल नागरिकता,

-कैबिनेट प्रणाली,

-विशेषाधिकार रिट,

-संसदीय विशेषाधिकार एवं

-द्विसदनीयता।

अमेरिकी संविधान -मौलिक अधिकार,

-न्यायपालिका की स्वतंत्रता,

-न्यायिक समीक्षा,

-राष्ट्रपति पर महाभियोग,

-सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पद से हटाया जाना

-उपराष्ट्रपति का पद।

आयरिश संविधान – राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत –

राज्य सभा के लिए सदस्यों का नामनिर्देशन एवं

– राष्ट्रपति के निर्वाचन की पद्धति।

कनाडा का संविधान – एक मजबूत केंद्र के साथ संघ,

-केंद्र में अवशिष्ट शक्तियों का निहित होना,

-केंद्र द्वारा राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति,

-सर्वोच्च न्यायालय का परामर्शी क्षेत्राधिकार।

ऑस्ट्रेलियाई संविधान -समवर्ती सूची,

-व्यापार की स्वतंत्रता,

-वाणिज्य एवं समागम, तथा

-संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक।

जर्मनी का वीमर संविधान – आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों का निलंबन।
सोवियत संविधान (यूएसएसआर, वर्तमान रूस) -मौलिक कर्तव्य एवं

-प्रस्तावना में न्याय (सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक) का आदर्श।

फ्रांसीसी संविधान – गणतंत्र एवं स्वतंत्रता के आदर्श,

-समानता एवं

-प्रस्तावना में बंधुत्व

दक्षिण अफ्रीका का संविधान -संविधान में संशोधन के लिए प्रक्रिया

-राज्य सभा के सदस्यों का निर्वाचन।

जापान का संविधान विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया

भारतीय संविधान की अनुसूचियां

भारतीय संविधान की अनुसूचियां उसके महत्वपूर्ण घटक हैं, जो संविधान के विभिन्न प्रावधानों और विषयों को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करती हैं। जिनमें विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों को शामिल किया गया है। ये अनुसूचियां विशेष अधिकारों, जिम्मेदारियों और विभिन्न वर्गों के लिए विशेष प्रावधानों को स्पष्ट करती हैं। इसके माध्यम से, संविधान देश की विविधता और जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए समुचित कानूनी ढांचा प्रदान करता है। अनुसूचियों के माध्यम से संविधान नागरिकों के अधिकारों और विकास के लिए मार्गदर्शक सिद्धांतों की स्थापना करता है। भारतीय संविधान में कुल 12 अनुसूचियां हैं जो विभिन्न विषयों से संबंधित हैं।

संविधान में अनुसूचियों की सूची

संवैधानिक अनुसूची विषय वस्तु 
पहली अनुसूची 1. राज्यों के नाम एवं उनके क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र।

2. केंद्र शासित प्रदेशों के नाम एवं उनकी सीमा।

दूसरी अनुसूची निम्नलिखित व्यक्तियों के परिलब्धियों, भत्तों, विशेषाधिकारों इत्यादि से संबंधित प्रावधान:

1. भारत के राष्ट्रपति

2. राज्यों के राज्यपाल

3. लोकसभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष

4.  राज्यसभा के सभापति एवं उपसभापति

5. राज्यों में विधान सभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष

6. राज्यों में विधान परिषद के सभापति एवं उपसभापति

7. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश

8. उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश

9. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक।

तीसरी अनुसूची निम्नलिखित व्यक्तियों के शपथ या प्रतिज्ञान:

1. केंद्रीय मंत्री

2. संसद के निर्वाचन के लिए उम्मीदवार

3. संसद के सदस्य

4. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश

5. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक

6. राज्य मंत्री

7. राज्य विधानमंडल के निर्वाचन के लिए उम्मीदवार

8. राज्य विधानमंडल के सदस्य

9. उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश

चौथी अनुसूची राज्यसभा में राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के लिए स्थानों का आवंटन।
पांचवीं अनुसूची अधिसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन तथा नियंत्रण से संबंधित प्रावधान।
छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा एवं मिजोरम राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित प्रावधान।
सातवीं अनुसूची सूची I (संघ सूची), सूची II (राज्य सूची) एवं सूची III (समवर्ती सूची) के संदर्भ में संघ एवं राज्यों के मध्य शक्तियों का विभाजन। वर्तमान में, संघ सूची में 98 विषय (मूल रूप से 97), राज्य सूची में 59 विषय (मूल रूप से 66) एवं समवर्ती सूची में 52 विषय (मूल रूप से 47) सम्मिलित हैं।
आठवीं अनुसूची संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाएँ। मूल रूप से इसमें 14 भाषाएँ थीं लेकिन वर्तमान में 22 भाषाएँ हैं। वे हैं: असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी (डोंगरी), गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली (मैथिली), मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु एवं उर्दू। 1967 के 21वें संशोधन अधिनियम द्वारा सिंधी को जोड़ा गया; कोंकणी, मणिपुरी एवं नेपाली को 1992 के 71वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया; तथा बोडो, डोंगरी, मैथिली एवं संथाली को 2003 के 92वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया। 2011 के 96वें संशोधन अधिनियम द्वारा उड़िया का नाम बदलकर ‘ओडिया’ कर दिया गया।
नौवीं अनुसूची भूमि सुधार और ज़मींदारी प्रथा के उन्मूलन से संबंधित राज्य विधानसभाओं और अन्य मामलों से निपटने वाली संसद के अधिनियम और विनियम (मूल रूप से 13 लेकिन वर्तमान में 282)। इस अनुसूची को प्रथम संशोधन (1951) द्वारा इसमें शामिल कानूनों को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर न्यायिक जांच से सुरक्षित करने हेतु जोड़ा गया था। यद्यपि, 2007 में, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि 24 अप्रैल, 1973 के पश्चात इस अनुसूची में सम्मिलित कानून अब न्यायिक समीक्षा के लिए खुले हैं।
दसवीं अनुसूची दल-बदल के आधार पर संसद एवं राज्य विधानसभाओं के सदस्यों की निरर्हता से संबंधित प्रावधान। इस अनुसूची को 1985 के 52वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था, जिसे दल-बदल विरोधी कानून भी कहा जाता है।
ग्यारहवीं अनुसूची पंचायतों की शक्तियों, अधिकारों एवं उत्तरदायित्व को निर्दिष्ट करता है। इसके अंतर्गत 29 विषय हैं। यह अनुसूची 1992 के 73वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ी गई थी।
बारहवीं अनुसूची नगर पालिकाओं की शक्तियों, अधिकार एवं उत्तरदायित्व को निर्दिष्ट करता है। इसके अंतर्गत 18 विषय हैं। यह अनुसूची 1992 के 74वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ी गई थी।

 

मूल अधिकार (अनुच्छेद 12-35)

भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रताओं की रक्षा करने के लिए स्थापित किए गए हैं। ये अधिकार संविधान के भाग III में वर्णित हैं और इनका उद्देश्य सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और न्याय सुनिश्चित करना है। मूल अधिकार (अनुच्छेद 12-35) नस्ल, धर्म, लिंग इत्यादि के आधार पर विभेद के बिना लागू होते हैं।

  • मूल अधिकारों के बारे में: भारत के संविधान के तहत प्रत्याभूत मूल अधिकार अपनी प्रकृति में मौलिक हैं क्योंकि उन्हें भूमि के मौलिक कानून में शामिल किया गया है।
  • अधिकारों का शाब्दिक अर्थ उन स्वतंत्रताओं से है जो व्यक्तिगत कल्याण के साथ-साथ समुदाय  के कल्याण हेतु आवश्यक हैं।
  • मूल अधिकारों का प्रमुख अधिदेश: भारत में राजनीतिक लोकतंत्र के आदर्शों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से भारतीय संविधान में मूल अधिकार प्रदान किए गए हैं।
  • भारतीय संविधान का भाग: भारतीय संविधान के भाग- III के तहत मूल अधिकार (अनुच्छेद 12-35) का उल्लेख किया गया है।
  • मूल अधिकार (अनुच्छेद 12-35) को भारत का मैग्नाकार्टा भी कहा जाता है।
  • मूल अधिकारों के स्रोत: भारतीय संविधान के मूल अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स/FRs) की उत्पत्ति अमेरिकी संविधान (संयुक्त राज्य अमेरिका के बिल ऑफ राइट्स) से हुई है।

मूल अधिकार (अनुच्छेद 12 से 35) – छह मूल अधिकारों की सूची

मूल रूप से, भारत के संविधान ने सात मूल अधिकारों का प्रावधान किया था, हालांकि, 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम ने मूल अधिकारों की सूची से ‘संपत्ति के अधिकार’ को हटा दिया एवं इसे विधिक/कानूनी अधिकार (अनुच्छेद 300-ए) बना दिया हैं। नीचे छह मूल अधिकारों की सूची प्रदान की गई है-

  1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18): विधि के समक्ष समता, धर्म, जाति, जाति, लिंग अथवा जन्म स्थान के आधार पर विभेद का निषेध एवं रोजगार के मामलों में अवसर की समानता ।
  2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22): वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सम्मेलन, संगम अथवा संघ, आवागमन, निवास का अधिकार एवं किसी पेशे या व्यवसाय का अभ्यास करने का अधिकार।
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24): शोषण के विरुद्ध अधिकार, सभी प्रकार के बलात  श्रम, बाल श्रम और मानव तस्करी पर रोक। धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28): अंतःकरण की स्वतंत्रता एवं धर्म के स्वतंत्र व्यवहार, अभ्यास एवं प्रचार का अधिकार।
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28): यह अधिकार नागरिकों को अपने धर्म का पालन करने, उसे प्रचारित करने, और धार्मिक प्रथाओं को अपनाने की स्वतंत्रता देता है।
  5. शैक्षिक एवं सांस्कृतिक अधिकार (अनुच्छेद 29-30): अपनी संस्कृति, भाषा या लिपि के संरक्षण के लिए नागरिकों के किसी भी वर्ग का अधिकार एवं अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षिक संस्थानों की स्थापना एवं प्रशासन का अधिकार; तथा
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32): यह अधिकार नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार प्रदान करता है।

 

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FAQs

भारतीय संविधान में कितनी अनुसूचियां हैं?

भारतीय संविधान में कुल 12 अनुसूचियां हैं।

भारतीय संविधान में कितने भाग हैं?

भारतीय संविधान में कुल 22 भाग हैं।

क्या प्रस्तावना भारतीय संविधान का अंग है?

प्रस्तावना को भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भारतीय संविधान का हिस्सा घोषित किया गया है।

44 वें संविधान संशोधन अधिनियम के अनुसार, 'संपत्ति के अधिकार' के संबंध में क्या परिवर्तन किया गया है?

44 वें संविधान संशोधन अधिनियम ने 'संपत्ति के अधिकार' को मूल अधिकारों की सूची से हटा दिया और इसे एक विधिक/कानूनी अधिकार में परिवर्तित कर दिया। अब यह अधिकार अनुच्छेद 300-ए के तहत परिभाषित किया गया है, जिसमें संपत्ति का अधिकार केवल कानून द्वारा संरक्षित किया गया है, न कि मौलिक अधिकार के रूप में।