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भारत का कृषि निर्यात- यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 3: भारतीय कृषि- कृषि उपज का परिवहन एवं विपणन और मुद्दे तथा संबंधित बाधाएं।
- भारत में खाद्य प्रसंस्करण और संबंधित उद्योग- कार्यक्षेत्र और महत्व, स्थान, ऊर्ध्वप्रवाह (अपस्ट्रीम) एवं अधः प्रवाह (डाउनस्ट्रीम) आवश्यकताएं, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन।
भारत का कृषि निर्यात- पृष्ठभूमि
- भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्वकर्ता बनने की क्षमता है। भारत सरकार 2022 तक 60 बिलियन डॉलर के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु कृषि निर्यात को प्रोत्साहित कर रही है।
- वर्तमान स्थिति: 2015-16 से 2019-20 तक, कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य का मूल्य 8 अरब डॉलर से बढ़कर 20.65 अरब डॉलर हो गया है।
भारत का कृषि निर्यात- कृषि निर्यात बास्केट में परिवर्तन
- प्राथमिक से माध्यमिक कृषि में परिवर्तन: जहां विभिन्न प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग उच्च आर्थिक विकास की संभावना की संभावना प्रकट करता है एवं आकर्षक लाभ अर्जित करता है।
- भारत के कृषि-निर्यात बास्केट में परिवर्तन: उदाहरण के लिए अनेक परिवर्तन हुए हैं-
- बासमती चावल से गैर-बासमती चावल के निर्यात तक: 2020-21 में, भारत ने 09 मिलियन टन गैर-बासमती चावल (4.8 बिलियन डॉलर) का निर्यात किया, जो विगत पांच वर्षों में औसतन 6.9 मिलियन टन (2.7 बिलियन डॉलर) था।
- हाल के वर्षों में भारतीय भैंस के मांस की मांग में व्यापक वृद्धि: विशेष रूप से वियतनाम, हांगकांग और इंडोनेशिया जैसे देशों में।
- 2020-21 में, मुर्गी, भेड़ एवं बकरी के मांस, काजू गिरी / दाना, मूंगफली, ग्वार गोंद एवं कोको उत्पादों का निर्यात मूल्य तथा कुल मात्रा के मामले में नीचे चला गया।
भारत का कृषि निर्यात- कृषि-निर्यातकों के समक्ष चुनौतियां
- भारत के सकल निर्यात में अल्प योगदान: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय बताता है कि भारत के कुल निर्यात में कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों का योगदान 11% है।
- भारत के कृषि-निर्यात में प्रमुख रूप से प्राथमिक प्रसंस्कृत कृषि जिंसों की प्रधानता है।
- भारतीय प्रसंस्कृत खाद्य निर्यातकों के समक्ष उत्पन्न होने वाली कठिनाइयाँ: उनमें से कुछ नीचे सूचीबद्ध हैं-
- अन्य देशों द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाए गए गैर- प्रशुल्क उपाय।
- निर्यात निरीक्षण एजेंसी द्वारा अनिवार्य नौ भार-पूर्व परीक्षण जटिल एवं महंगी होना;
- अल्प मात्रा में मसाले युक्त तैयार खाद्य (रेडी टू ईट) उत्पादों के लिए भी अनिवार्य मसाला बोर्ड प्रमाणन की आवश्यकता;
- अधिकांश राज्यों द्वारा निर्यात की रणनीतिक योजना का अभाव;
- निजी क्षेत्र द्वारा निवेश को हतोत्साहित करने वाली पूर्वानुमेय एवं सुसंगत कृषि नीति का अभाव;
- अधिकांश विकसित देशों में मांस एवं डेयरी आधारित उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध;
- भारत से प्रसंस्कृत खाद्य के आयात हेतु यू.एस. द्वारा वरीयता के सामान्यीकृत प्रणाली (जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस) को वापस लेना;
- यू.एस. को निर्यात शिपमेंट हेतु अतिरिक्त स्वास्थ्य प्रमाणपत्र की आवश्यकता; तथा
- जैविक उत्पादों के लिए विकसित देशों के साथ सादृश्य समझौते का अभाव।
कृषि में सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका
भारत का कृषि निर्यात- आगे की राह
- कुल निर्यात में कृषि निर्यात की वृद्धिमान हिस्सेदारी: यह प्राथमिक प्रसंस्कृत कृषि वस्तुओं के स्थान पर मूल्य वर्धित प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों पर अधिक ध्यान केंद्रित करके किया जा सकता है।
- कृषि निर्यात नीति को पुनः परिभाषित करके: नीति का मुख्य उद्देश्य निर्यात करंड (बास्केट) में विविधता लाना एवं उसका विस्तार करना है ताकि प्राथमिक उत्पादों के स्थान पर विकारी खाद्य उत्पाद एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों सहित उच्च मूल्य की वस्तुओं का निर्यात बढ़ाया जा सके। केंद्र सरकार को चाहिए कि-
- खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों का पोषण करे,
- उत्पादन की न्यून लागत एवं वैश्विक खाद्य गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करना, एवं
- प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने हेतु एक सहयोगी वातावरण सृजित करना।
- प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों को बढ़ावा देना: प्रतिष्ठित भारतीय ब्रांडों को विश्व स्तर पर प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के निर्यात के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि वे संहिता (कोडेक्स) के वैश्विक मानक का अनुपालन कर सकते हैं।
- भारतीय कंपनियों को लागत प्रतिस्पर्धात्मकता, वैश्विक खाद्य गुणवत्ता मानकों, प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और वैश्विक प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात बाजार का दोहन करना चाहिए।
- भारत को विभिन्न कृषि वस्तुओं में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्राप्त हैं जिन्हें प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर वहन किया जा सकता है।